एक अंतिम पड़ाव पर पहुँचकर धर्म के बंभन से आत्मा मुक्त हो जाती है ।क्योकि आत्मा का एकही धर्म है " आत्मधार्म "बस ,वही बाकी रह जाता है । ही..का..स..योग [ ५ ]
अब आवश्यकता उस पूर्ण समर्पण स्थिति की है , जिस स्थिति मे जाकर गुरुशक्ति का जिवंत सानिध्य प्राप्त किया जाए । क्योकि संशय की स्थिति , नकारात्मक भाव , अश्रद्धा हमे वहाँ भी कुछ ग्रहण करने नही देगी । आप जितनी श्रद्धा से , जितने भाव से जाएँगे , उतनीही आपके चित्त की ग्रहण करने की स्थिति अच्छी होगी । आप इस स्थान पर जाने की जल्दी न...
वैचारिक प्रदुषण की बीमारी गुप्त हे । लेकिन यह वैचारिक प्रदुषण से होनेवाली हानि छुपी हिई हे । इसलिए इस और ध्यान ही नहीं दिया गया हे । लेकिन एक समय एइसा आएगा जब वैचारिक प्रदुष...
अक्षय तृतीया का वीषेष संन्देश पती पत्नी को सबसे अधीक प्रेम करता है लेकीन तबभी वह सब से अधीक दुरव्यवहार भी पत्नी से ही करता है ऐसा क्यो आत्मचींन्तन करे ब...