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Showing posts from February, 2021

गहन ध्यानयोग निर्गुण-निराकार है तो आप आपकी मूर्ति रूप में, सगुण रूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं ?

साधक का प्रश्न  :  गहन ध्यानयोग निर्गुण-निराकार है तो आप आपकी मूर्ति रूप में, सगुण रूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं ? स्वामीजी का उत्तर :  मैंने अभी आपको बताया, हमें सेल्फिश (स्वार्थी) नहीं होना है | हमें मिल गया, समाप्त हो गया - ऐसा नहीं | अगर ऐसा ही हमारे गुरु सोचते तो हम तक यह चीज पहुंचती क्या ? नहीं पहुँचती| तो यह आपके लिए है ही नहीं | यह उनके लिए है जो अपने जीवनकाल के बाद में आने वाले हैं और तब हम कोई नहीं रहेंगे | तब वह अनुभूति उन तक पहुँचाने का यह माध्यम है, वह उन तक पहुँचाने का तरीका है | उस तरीके में उसको स्थापित किया हुआ है | तो पहली बार किसी जीवंत गुरु ने अपनी जीवंत शक्तियाँ अपने जीवंत शरीर में स्थापित कीं | ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ | इसलिए हुआ है की इसका उद्देश्य है कि वह अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना है, आगे की पीढ़ियों तक जाना है | आज की पीढ़ी को उसकी कोई आवश्यकता नहीं है | मेरे मरने के बाद खोलना उसको| -  मधुचैतन्य :    अप्रैल,मई,जून-2007   चैतन्य धारा

🌺सच्चा समर्पण🌺

•• जब आपके कार्य हो रहे हैं , तब जो गुरु के प्रति समर्पण होता है , वह सच्चा समर्पण नहीं है। •• सच्चा समर्पण तो तब है , जब आपके कार्य नहीं हो रहे हैं तब भी आपका समर्पण भाव है और आप सोचते हैं , यह कार्य न होना ही मेरे हित में है। यह सच्चा समर्पण भाव है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : आत्मा की आवाज़

कोटि सूर्य-सी गुरु की आभा

  सदगुरु के स्वर्णिम आभामंडल के सानिध्य में साधक का चित्त शुद्ध हो जाता है। उसे स्वयं की अंतर्निहित त्रुटियों का ज्ञान होता है। वह प्रार्थना करता है कि हे गुरुवर, मुझे अपने चरणों की धूल बना लो, तभी मेरा जीवन सार्थक होगा।... 🖋️पूज्या गुरुमाँ

✿ नवयुग की ओर ✿

✿   आप थोड़ा सोचो! केवल पढ़ना , नौकरी या व्यवसाय करना , शादी करना , अपने बच्चों को जन्म देना , बूढ़े होना होना और बाद में अंत , मर जाना! क्या हमने इसी के लिए जन्म लिया है , क्या यही हमारे जीवन का मूल उद्देश्य है ? नहीं !  ✿   हमने जो शरीर धारण किया है , यह सब उस शरीर के जीवन चक्र का केवल अंग मात्र है। लेकिन हमने शरीर धारण किया है , हम शरीर नहीं हैं। 'हम शरीर नहीं हैं' तो फिर यह 'जीवन चक्र' भी हमारा कैसे हो सकता है? ✿   आप सामान्य बच्चे नहीं हो , आत्मसाक्षात्कारी बच्चे हो! तो आपके जीवन का उद्देश्य भी सामान्य नहीं हो सकता है। आपके जीवन का उद्देश्य 'कर्ममुक्त अवस्था' को पाना है।  ✿   वह अवस्था आपको आपके जीवनकाल में ही प्राप्त करना है , उसे ही 'मोक्ष' का स्थिति कहते हैं।  ✿   वह प्राप्त होने पर आप कार्य करते नहीं हो , आपसे कार्य होता है। आपके हाथों से विश्व की 'मनुष्यता' को जोड़ने का - वह मनुष्यता को जगाने का कार्य होने वाला है। ✿   'मोक्ष' की स्थिति पाना ही आपके जन्म लेने क एकमात्र उद्देश्य हैं।  ─━━━━━━✿━━━━━━─    श्री शिवकृपानन्द स्वामीजी  गहन

🔅 गुरुकार्य या ध्यान ❓🔅

साधक का प्रश्न (15) : स्वामीजी, आध्यत्मिक प्रगति करने के लिए गुरुकार्य और ध्यान, दोनों में से क्या ज्यादा उचित है ? स्वामीजी का उत्तर : गुरुकार्य और ध्यान दोनों ही मार्ग है और दोनों से आखिर में एक ही जगह पहुंचते हैं | आखिर में, अपने आप में भाव जगाने में आप सफल होने चाहिए | जब गुरु के प्रति पूर्ण भाव लाने में अपने-आपको पूरा डुबो दो, अपने अस्तित्व को शून्य कर दो,  तब आप गुरुशक्ति से जुड़ने में सफल हो जाते हो |      अगर गुरुकार्य करने में आपको रुचि हो तो गुरु के लिए जो भी कार्य करो, वह सब गुरु को अर्पित कर दो | जिसे ध्यान नहीं लगता हो, उसे गुरुकार्य करना चाहिए | गुरुकार्य शरीर से होता है, पर कार्य करते समय चित्त गुरु पर हो तो आखिर में गुरु से जुड़ जाओगे | गुरु के माध्यम से, आगे ऊपर का रास्ता है जो सामूहिकतामें पार करना है |       जिस तरह किसी ऐतिहासिक स्थान पर अगर जाओगे, तो उस स्थान की सही जानकारी पाने के लिए गाईड की मदद लोगे | तो स्थान और गाइड दोनों अलग-अलग चीजें हैं | जब गाइड आपको माहिती (जानकारी) देगा, तब आपका पूरा ध्यान गाईड के शब्दों पर होगा | तब आप उस स्थान को सही मायने में जान पाओग

◆ चित्त से गुरु कार्य ◆

◆  अगर आपकी स्थिती गुरुकार्य करने की नही है, तो चित्तसे गुरुकार्य करो। यानी सदैव  गुरुकार्य विकसित हो इसलिये प्रार्थना करो, तो भी गुरुशक्तियां किसी और सशक्त माध्यम से वो कार्य करा लेंगी या आपको ही इतनी शक्ती और सामर्थ्य देंगी की आपसे हि गुरुकार्य घटित हो जाये।  ◆  आपके जेब में एक रुपया भी नही हो और आप सौ रुपये का गुरुकार्य करने कि ईच्छा रखते हो तो आप के जेब में सौ रुपये आ जायेंगे, यह मेरा अनुभव है।  ◆  सदैव बडा सोचो तो बडा होगा। अब क्या कहु? आप सभी कि सोच खूब खूब बडी हो यही प्रभूसे प्रार्थना है।  ◆  आप सभी को खूब खूब आशीर्वाद।  ──────⊱◈◆◈⊰──────      श्री शिवकृपानंद स्वामीजी                 गहन ध्यान अनुष्ठान 2012 ──────⊱◈◆◈⊰──────

✿ गहन ध्यान अनुष्ठान ✿

✿   गहन ध्यान सबके लिए खुला है। आप सभी जुड़ीये पुराने साधक नए साधक सबके लिए खुला है। ✿   45 दिनों में कम से कम एक दिन के लिए गहन ध्यान में शामिल होना चाहिए। ✿   मैं सभी को चित्त में लेके गहन ध्यान करता हु। गहन ध्यान दौरान मुझे सभी साधको के पास जानेका मौक़ा मिलता है। सबकी स्थिति का पता चलता है। ✿   जो साधक नियमित ध्यान नहीं करते वो भी गहन ध्यान दौरान नियमित ध्यान करते है।  ✿   गहन ध्यान दरमियान आश्रम में एक अच्छा वातावरण निर्माण हो जाता है। वहां पे हम जाते है तो एक स्थिति अनायास ही निर्माण हो जाती है। वो स्थिति प्राप्त करने के लिए कोई प्रयत्न करना नहीं पड़ता है। ✿   मैं जिस स्थिति में होता हूं साधक अनायास ही उस स्थिति में चले जाते जाते है। मैं अंदर क्या महसूस कर कर रहा हु, उसकी जानकारी बाहर भी हो। मैं अंदर क्या मिठाईयां खा रहा हु कम से कम बहार उसकी खुशबु तो जाये।  ✿   गहन ध्यान दरमियान मेरी पतंग बहुत ऊपर तक जाती है। ये गुरु माँ है कि मुझे नीचे ले आती है।        ✿   जब से मैं समाज में आया हु, तब से एक  इच्छा रहती थी, छोटा सा साधको का समूह बन जाए जिनको लेके उस सात चक्रों के परे की यात्रा कर

🌺माध्यम🌺

गुरुशक्तियों ने आपके सामने मेरे शरीर के रूप में एक आदर्श मॉडल दिया है। आपको कैसा बनना है , वह आप इस मॉडल को देखकर अपने-आप में बदलाव कर सकते हो। आदर्श मॉडल का लक्ष्य आपके सामने है। 'माध्यम' का आदर्श सामने रखकर भी आप अपने-आप को बदल सकते हैं। *(१) 'माध्यम' नियमित ध्यान करता है* ...और यह पिछले कई सालों से चला आ रहा है। यह नियम कभी भी टूटा नहीं है। *(२) 'माध्यम' ने सभी को क्षमा किया हुआ है* माध्यम भी समाज में रहता है , तो समाज के अच्छे और बुरे अनुभव उसे भी आए हैं। लेकिन उसने सभी को क्षमा कर दिया है। *(३) सामूहिकता में ध्यान* सामूहिकता में जहाँ भी विश्व में ध्यान हो रहा हो , माध्यम वहाँ होता ही है *(४) माध्यम ने अपना भूतकाल अपने गुरुदेव को पूर्णतः समर्पित कर दिया है* माध्यम ने जीवन की बुरी घटनाएँ , बुरे व्यक्ति अपने भूतकाल के साथ गुरुदेव को समर्पित कर दिया है। *(५) माध्यम का बाँटने का स्वभाव है* माध्यम कभी भी किसी भी वस्तु का अकेला आनंद नहीं लेता। वह जीवन में सदैव बाँटते चला आया है *(६) माध्यम सदैव अपनी आत्मा को प्रसन्न रखता है* माध्यम सदैव ही ऐसे कार्य करते रहत