कोटि सूर्य-सी गुरु की आभा
सदगुरु के स्वर्णिम आभामंडल के सानिध्य में साधक का चित्त शुद्ध हो जाता है। उसे स्वयं की अंतर्निहित त्रुटियों का ज्ञान होता है। वह प्रार्थना करता है कि हे गुरुवर, मुझे अपने चरणों की धूल बना लो, तभी मेरा जीवन सार्थक होगा।...
🖋️पूज्या गुरुमाँ
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