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Posts
माँ-बाप सफल व्यक्ति की जड़े
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जिनके माँ-बाप उनसे प्रसन्न न हों , वे लड़के अपने क्षेत्र में भले ही सफल व्यक्ति बन जाएँ , वे अपने पारिवारिक जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकते हैं। इसलिए कौन मनुष्य कितना सफल व्यक्ति है़ , यह जानने के लिए , वह कितना सुखी है़ , यह देखना आवश्यक है़। सभी सफल व्यक्ति सुखी व्यक्ति नहीं होते हैं क्योंकि उनके , उनके माँ-बाप के साथ अच्छे संबंध नहीं होते हैं। माँ-बाप उस सफल व्यक्ति की जड़े है़। वह बिना माँ-बाप की सहायता से सफल व्यक्ति हो सकता है़ लेकिन वह सुखी व्यक्ति नहीं हो सकता है़। हिमालय का समर्पण योग ५ , पृष्ठ :२८२
चित्त
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•• एक व्यक्ति के ऊपर अगर हम उसके दोषों के ऊपर से चित्त निकालकर उसकी शुद्धता , उसकी पवित्रता की तरफ ध्यान दे तो एक अभ्यास हमारा हो जाएगा और वह अभ्यास करते-करते वह हमारा स्वभाव बन जाएगा। •• जब चित्त अच्छाइयों पर जाएगा तो आपके भीतर भी अच्छाइयाँ आनी शुरू हो जाएगी। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - गुरुपूर्णिमा महोत्सव २०१२
सुख की परिभाषा
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आज समाज में सुख की परिभाषा भी केवल शारीरिक सुविधाओं की मानी जाती है़ जो पैसे से प्राप्त हो सकती हैं और उन्हें पाना ही मनुष्य अपना लक्ष्य बना लेता है़। और जीवन के अंत में जब धरती से विदा होता है़ , तब उसकी समझ में आता है़ - जिस पैसे के पिछे की दौड़ में सबको शामिल होता देख मैं भी शामिल हो गया था , वह पैसा जीवन में मुझे केवल सुविधाएँ दे पाया लेकिन जीवन में कभी सुख मिला ही नहीं। सुख केवल आत्मा से मिल सकता है़। -- श्री शिवकृपानंद स्वामी हिमालय का समर्पण योग ४ , पृष्ठ : १८८ 🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♀🧘🏻♀🧘🏻♀🧘🏻♀🧘🏻♀
गुरु तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ
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🔹गुरु तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ रहता है। 🔹गुरु मिलने के बाद ही हमारा आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ होता है। 🔹सद्गुरु के प्रवचन पहले सुनने चाहिए , फिर मनन करना चाहिए , फिर सोचना चाहिए , फिर ध्यान करना चाहिए और अंत में गुरुकार्य में लग जाना चाहिए। समर्पण ध्यान के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों में बाँटना चाहिए। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : दर्शन शिविर - राजपीपला
चित्तशक्ति का धन
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••◆ मेरे लिए वो लोग कार्य करते हैं - जो मुझसे ज्ञान में श्रेष्ठ है, पोस्ट में श्रेष्ठ है, विद्वता में श्रेष्ठ है; सबकुछ मुझसे अधिक है, फिर भी वो मेरे लिए कार्यरत हैं, मेरे लिए कार्य करते हैं। सिर्फ इसीलिए कार्यरत हैं और इसीलिए कार्य करते हैं क्योंकि मेरे पास चित्तशक्ति का धन है। तो ये चित्तशक्ति का धन आप प्राप्त करलो, चित्तशक्ति के आप भी धनी हो जाव, तो आपसे अधिक विद्वान लोग, आपसे अधिक धनाढ्य लोग, आपसे अधिक पहुँचे हुए लोग आपके लिए कार्य करेंगे। ••◆ यानी आपके पास जीवन में कुछ नहीं हो और आपके पास जीवन में सशक्त चित्त हो, तो वह सशक्त चित्त से आप इस दुनिया में अपनी जगह बना सकते हो। ••◆ सशक्त चित्त सिर्फ गुरुचरण पे चित्त रखके मैंने प्राप्त किया है। कैसी भी परिस्थितियाँ हो, कैसी भी कठिनाइयाँ हो, कैसा भी वातावरण हो, अनुकूल हो, प्रतिकूल हो सभी स्थितियों में वहाँ का कनेक्शन सदैव एक-सा रहा है। गुरुचरण पे चित रखने के बाद दुनिया का समस्त ज्ञान वहीं से प्राप्त हुआ है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : नवयुग का निर्माण
🌺प्रार्थनाधाम🌺
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••◆ 'आत्मधर्म समर्पण महाशिविर' (मराठी) अप्रैल २००८ में गोवा में आयोजित किया गया था। ••◆ वहाँ ४५ दिवसीय अनुष्ठान की पूर्णाहुति के लिए मुझे गोवा जाना था। •••• मेरे साथ सौ. नैमिषा बैन तथा प्रताप भाई शाह भी जाने वाले थे। •••• दिन था सात जून , जिस दिन हमें मुबई से पणजी की हवाई यात्रा करनी थी। ••◆ वर्षा ऋतु के आरंभ का समय था। सुबह से वर्षा हो रही थी। •••• हम लोग दोपहर २.३० बजे हवाई अड्डा पहुँचे। हमारे विमान का उडान समय था शाम ४ बजे। ••◆ गोवा तथा मुबंई दोनों स्थानों पर तेज वर्षा हो रही थी। पता चला विमान १ घंटा देरी से चलेगा। फिर पता चला २ घंटा देरी से। ••◆ आसमान में काले बादलों का घना डेरा था शाम चार-साढ़े चार बजे ऐसा घना अंधेरा-सा था मानो शाम ७.३०-८ बजे हों। •••• लगभग सभी उड़ाने रुकी हुई थीं। न कोई विमान आ रहा था , न जा रहा था। विमानतल यात्रियों से भरता जा रहा था। ••◆ तभी एक ईसाई साध्वी (नन) मेरे पास आकर बैठी उन्हें इंदौर जाना था। वे इथियोपिया (अफ्रीका) से आई थी। •••• हम लोगों की हँसी-ठिठोली चल रही थी पर उन्हें चिंतित देखा तो उनसे बातचीत की। उन्हें भय था कहीं उड़ान रद्द न हो जाए। ••◆