सुख की परिभाषा

आज समाज में सुख की परिभाषा भी केवल शारीरिक सुविधाओं की मानी जाती है़ जो पैसे से प्राप्त हो सकती हैं और उन्हें पाना ही मनुष्य अपना लक्ष्य बना लेता है़। और जीवन के अंत में जब धरती से विदा होता है़ , तब उसकी समझ में आता है़ - जिस पैसे के पिछे की दौड़ में सबको शामिल होता देख मैं भी शामिल हो गया था , वह पैसा जीवन में मुझे केवल सुविधाएँ दे पाया लेकिन जीवन में कभी सुख मिला ही नहीं।

सुख केवल आत्मा से मिल सकता है़।

-- श्री शिवकृपानंद स्वामी 
हिमालय का समर्पण योग ४ , पृष्ठ : १८८

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