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ध्यान करना इस वर्ष की अत्यंत आवश्यकता

"ध्यान करना इस वर्ष की अत्यंत आवश्यकता है। ये शब्द मेरे याद रखना। ये आपको बार-बार याद आएँगे। इसीलिए नियमित ध्यान करना , अपने-आपको संतुलित करना , अपने-आपको बेलेंस करना ; ये २०२१ की आवश्यकता है। जिस प्रकार से अन्य चीजें आवश्यक है न , वैसे ये चीज भी अत्यंत आवश्यक है।"  *- परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी*

प्रकृति का अनुभव

मौसम बड़ा ही सुहावना, खुशनुमा तथा गर्मीला था और आसमान भी साफ था! शाम ५ बजे के करीब हमने पूज्य स्वामीजी एवं गुरुमाँ के साथ सैर हेतु समुद्रतट पर जाना निश्चित किया। एक और साधिका, लता मगन भी हमारे साथ थी।   समुद्र किनारे चलते-चलते हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ अमश्लोटी नदी हिन्द महासागर से मिलती है। हमने कुछ देर नीले आसमान तले बैठकर शांत एवं मनमोहक प्रकृति के सान्निध्य का आनंद लिया तथा पुनः विला की ओर प्रस्थान करने लगे।   वापस लौटते समय, रास्ते में स्वामीजी को एक स्थान अच्छा लगा और उन्होंने हम सभी को वहाँ थोड़ी देर बैठने को कहा। हम सब वहाँ बैठ गए और कुछ देर पश्चात स्वामीजी उठकर समुद्र की ओर जाने लगे। वे किनारे पर जाकर खड़े रह गए तथा अपनी हथेलियों को समुद्र के समक्ष खुली रखकर उन्होंने अपना आभामण्डल खोला।   लहरें ऊँची उठने लगीं और ठीक उनके चरणों के पास आकर शांत होकर धीरे से उनके चरणों को स्पर्श करने लगीं। स्वामीजी के खड़े रहते ही, हमने देखा कि आसमान का रंग बदलने लग गया तथा बादलों की भी हलचल शुरू हो गई। लहरों की तीव्रता बढ़ गई तथा वे और ऊँची उठने लगीं किन्तु प्रत्येक लहर स्वामीजी तक...

ऑरा, आभामण्डल काल्पनिक नहीं

•• ऑरा, आभामण्डल काल्पनिक नहीं है। देखिए, आभामण्डल और ऑरा क्या है - मनुष्य का चित्त जितना शुद्ध होगा, मनुष्य का चित्त जितना पवित्र होगा, जितना सशक्त होगा ; उसी सशक्त चित्त का प्रकाश उसके शरीर के आसपास चौबीसों घण्टे विद्यमान रहेगा। •• यहाँ ध्यान रखने की बात है - चौबीसों घण्टे विद्यमान रहेगा। छाया , अगर आप अँधेरे में चले जाते हो तो वो आपका साथ छोड़ देती है लेकिन ये ऑरा, ये आभामण्डल आपका साथ कभी भी नहीं छोड़ता ; चौबीसों घण्टे रहता है और वो चौबीसों घण्टे आपको सुरक्षा प्रदान करता है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - चैतन्य महोत्सव २०२०

गुरुकार्य

•• मैं किसी से भी नहीं मिलता ; जो गुरुकार्य करता है , उससे मिलता हूँ।  •• आप कुछ तो भी कार्य ऐसा करो जिस कार्य के कारण मैं आपकी तरफ खींचकर आऊँ। मेरा और आपका संबंध कार्य का है। •• गुरुकार्य ही शाश्वत है। इसलिए आप गुरुकार्य को पकड़ो। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - युवक-युवती कार्यशाला २००९

प्रार्थना कैसे करनी चाहिए जानिए परम पूज्य स्वामीजी से ...!!

*प्रार्थना कैसे करनी चाहिए जानिए*  *परम पूज्य स्वामीजी से ...!!* *.   प्रार्थना आध्यामिक स्थिति को बढ़ाने के लिए बहुत बड़ी मार्गदर्शक है। लेकिन वो प्रार्थना किसी भय से नहीं होनी चाहिए, कि हे परमात्मा ये मेरा बुरा नहीं हो जाए, हे परमात्मा मेरे साथ ये बुरी घटना नहीं हो जाए! ऐसे भय से कि गयी प्रार्थना सही प्रार्थना नहीं है! क्यूंकि भय का संबंध आपके शरीर के साथ है! तो जब की प्रार्थना का संबंध आपके शरीर के साथ है ही नहीं! दूसरा किसी लालच में कुछ मिलना चाहिए, कुछ पाना चाहिए.. इस भाव के साथ ही कभी कोई प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि पाना, मिलना चाहिए ये सब भाव शरीर का है। तो शरीर के भाव के ऊपर प्रार्थना नहीं की जाती है। आत्मा के भाव के ऊपर की जाती है। तो पूर्ण आत्मा के भाव से मुझे लगता है जीवन में एक ही प्रार्थना करना चाहिए। एक ही प्रार्थना के लिए हमे शब्द इस्तेमाल करना चाहिए। और वो है...* *हे परमात्मा मुझे आत्मसाक्षात्कार करा दो।* *हे परमात्मा मुझे आत्म अनुभूति करा दो।* *हे परमात्मा मुझे आत्म समाधान प्रदान करो।* *ये सब शब्द एक ही जगे, एक ही ओर, एक ही दिशा में आपको ले जाएंगे, आ...

समर्पण

•• 'समर्पण' प्रतिदिन करने की आवश्यकता होती है। •• क्योंकि हमारे आसपास के बुरे विचारों से हमारे समर्पण के भाव पर बुरा प्रभाव पड़ता है। •• 'समर्पण' तो आत्मा का शुद्ध भाव है , उसकी शुद्धता सदैव बनी रहनी आवश्यक है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - हिमालय का समर्पण योग - भाग ४

गुरु को शरीर होते हुए भी 'परब्रह्म' क्यू कहा गया ?

•• गुरु को शरीर होते हुए भी 'परब्रह्म' क्यू कहा गया ? •• गुरु का शरीर परमात्मा नहीं है। गुरु के शरीर से बहनेवाला परम चैतन्य परमात्मा है , वो ही 'गुरुतत्त्व' है। •• हमारा ध्यान गुरु के शरीर के ऊपर नहीं होना चाहिए। हमारा ध्यान गुरु के भीतर से बहनेवाले 'गुरुतत्त्व' पे होना चाहिए। उस परम चैतन्य पे होना चाहिए। तब जाके साक्षात परब्रह्म की अनुभूति होगी। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - महाशिवरात्रि २०२१