जिवंत गुरु का आगमन - आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत

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       जिवंत गुरु का आगमन -
आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत
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💠  जब तक जिवंत गुरु अपने जीवन में नहीं आता, तब तक आध्यात्मिकता की कोई शुरुआत ही नहीं होती।

💠   जब मैं गुरु के पास पहुँच गया, तब से मेरे लिए गुरु की खोज बंद हो गई। जो आपको अंतर्मुखी कर दे, वही आपका गुरु है। वास्तव में, गुरु आपके बाहर नहीं है, आपके अंदर है। आपकी आत्मा ही आपका गुरु है।

💠   जब तक हमें पहुँचे हुए गुरु नहीं मिलते हैं, हमारे जीवन में हमें भीतर की ओर मोड़नेवाले गुरु नहीं मिलते हैं, तब तक हमें अपने-आपका चेहरा नहीं दिखता हैं। हमें अपने-आपका चेहरा नहीं दिखता है और उसे दिखने के लिए हमें मिरर (आईने) के पास जाना पड़ता है। गुरु वह मिरर है जो हमें अपने-आपसे मिलाता है।

💠  सुख अलग है, सुविधाएँ अलग है। सुख आपके अंदर ही है और सुविधाएँ बाहर हैं।

💠  नकारात्मक विचारों का तोड़ (निदान) सकारात्मक विचार कभी नहीं हो सकता क्योंकि आप विचार करते हो तो आपकी ऊर्जा नष्ट होगी ही। पर उसका तोड़ है, निदान है - निर्विचारिता की स्थिति।

💠  पहले शक्ति का युग था, उसके बाद अब बुद्धि का युग है और आगे चित्तशक्ति का युग आएगा। जिस व्यक्ति का चित्त जितना मजबूत होगा, वह व्यक्ति उतना ही सफल होगा।

💠  पैसा और लक्ष्मी में बहुत अंतर है।
पैसा आने से आपका अहंकार बढ़ेगा और लक्ष्मी आने से घर में शांति आती है , संतोष आता है।

💠  परिवार के अगर एक भी व्यक्ति ने ध्यान किया तो आपके परिवार में कोई दुःखी नहीं होगा।

💠  बुरी आदते शरीर की होती हैं। शरीर का नियंत्रण बुरी आदतों पर होता है। और आत्मा का नियंत्रण शरीर पर हो जाए तो ये सब छूट जाती है।

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    श्री शिवकृपानंद स्वामी जी
   आत्मधर्म समर्पण महशिबिर,
                    अजमेर
मधुचैतन्य अक्टूबर २००८,पृष्ठ:२९
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