सितंबर 2020 के संदेश पुष्पों का सारांश

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     सितंबर 2020 के संदेश पुष्पों 
                   का सारांश 
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•❁➊❁•  आत्मीक प्रगति के लिये "निर्वीचार" रहने का सतत अभ्यास करना चाहिए । 

•❁➋❁•  "निर्विचारिता" से आशय विचार शून्यता की स्थिति से है l

•❁➌❁•  आप कीतना पुजा पाठ करते है, इसका महत्व नहीं है, कितने आप "निर्विचार" रहते है वह महत्वपूर्ण है l

•❁➍❁•  "निर्विचारीता" आध्यात्मिक प्रगति का द्वार होता है l

•❁➎❁•  "निर्विचारिता" वह पात्र जैसी स्थिति होती है, जिसमे चैतन्य भरा जा सकता है l

•❁➏❁•  "निर्विचार" स्थिति मे ही सद्गुरु की उर्जा शक्ति शिष्य मे प्रवाहित होती है l

•❁➐❁•  "सद्गुरु" की उर्जा शक्ति पाने के लिये उससे आत्मीय संबन्ध बनाना अत्यन्त आवश्यक है l

•❁➑❁•  "सद्गुरु" के प्रति अत्यन्त भाव ही वह संबन्ध बना सकता है l

•❁➒❁•   "अत्यन्त भाव" सदैव केवल एक ही स्थान पर होता है l

•❁➊⓿❁•  आत्मा ने परमात्मा के लिये कीया गया कार्य ही सच्चे अर्थ मे "गुरुकार्य" होता है l

•❁➊➊❁•  आप सभी "गुरुकार्य" तो करते है, फिर भी जैसी "आध्यत्मिक प्रगति" होनी चाहिये वैसी नहीं हो पा रही है l इसलिये आज गुरुशक्तियो ने आप को गुरुकार्य को सही अर्थ मे समझाने के प्रयास मे "गुरुकार्य" पर "श्रृंखला" ही प्रारंभ की है l

अपने गुरु को ही परमात्मा मान कर किया गया कार्य ही "गुरुकार्य" होता है l

•❁➊➋❁•  "गुरुकार्य" सदैव ही आप आत्मा बन कर ही किया करे l

•❁➊➌❁•  आपने क्या "गुरुकार्य" किया वह महत्वपूर्ण नहीं होता किस भाव से किया वह महत्वपूर्ण होता है l

•❁➊➍❁•   "गुरुकार्य" से हमारे पापकर्म नष्ट होते रहते है l

•❁➊➎❁•  "गुरुकार्य" एक ओर निर्विचारीता की स्थिति देता है, वही दूसरी ओर अपने गुरु की ऊर्जाशक्ति से जोड़ता है l

•❁➊➏❁•  अपने गुरु का नाम स्मरण करते हुये "गुरुकार्य" करना चाहिये l

•❁➊➐❁•  "गुरुकार्य" तो आत्मा की परमात्मा की ओर की भाव यात्रा होती है l

•❁➊➑❁•  "गुरुकार्य" तो जिवन काल मे मोक्ष प्राप्ती का मार्ग है l

•❁➊➒❁•  "गुरुकार्य' कोई भी नहीं कर सकता है, क्योंकि वह हो जाता है l

•❁➋⓿❁•  अपने  जीवन के किया गया "गुरुकार्य" ही हमें अंतिम सांस तक काम आने  आने वाला है। 

•❁➋➊❁•  दिखावा करने के लिये किया गया कार्य कभी "गुरूकार्य" नहीं हो सकता है । 

•❁➋➋❁•  स्वार्थ के साथ किया गया कार्य कभी भी "गुरुकार्य" नहीं हो सकता है। 

•❁➋➌❁•  अपेक्षा के साथ किया गया कार्य कभी भी "गुरुकार्य" नहीं हो सकता है। 

•❁➋➍❁•  गुरु को भी सर्वसामान्य मनुष्य मानकर किया गया कार्य कभी भी "गुरुकार्य" नहीं हो सकता है। 

•❁➋➎❁•  टाईम पास करने के लिए किया गया कार्य भी कभी भी "गुरुकार्य" नहीं हो सकता। 

•❁➋➏❁•  बेमन से किया गया कार्य भी कभी भी "गुरुकार्य" नहीं हो सकता है। 

•❁➋➐❁•  "दुःखी" रहकर किया गया कार्य भी कभी गुरुकार्य नहीँ हो शकता है।

•❁➋➑❁•  गुस्से मे रहकर किया गया कार्य भी कभी "गुरु कार्य" नहीं हो सकता है |

•❁➋➒❁•  लालच मे किया गया कार्य भी कभी भी "गुरुकार्य" नहीं हो सकता है l

•❁➌⓿❁•  "शरीर" के स्तर पर किया गया कार्य कभी भी गुरुकार्य नहीं हो सकता है। 

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      आपका अपना बाबा स्वामी 
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