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Showing posts from March, 2021

माँ-बाप सफल व्यक्ति की जड़े

जिनके माँ-बाप उनसे प्रसन्न न हों , वे लड़के अपने क्षेत्र में भले ही सफल व्यक्ति बन जाएँ , वे अपने पारिवारिक जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकते हैं। इसलिए कौन मनुष्य कितना सफल व्यक्ति है़ , यह जानने के लिए , वह कितना सुखी है़ , यह देखना आवश्यक है़। सभी सफल व्यक्ति सुखी व्यक्ति नहीं होते हैं क्योंकि उनके , उनके माँ-बाप के साथ अच्छे संबंध नहीं होते हैं। माँ-बाप उस सफल व्यक्ति की जड़े है़। वह बिना माँ-बाप की सहायता से सफल व्यक्ति हो सकता है़ लेकिन वह सुखी व्यक्ति नहीं हो सकता है़।  हिमालय का समर्पण योग ५ , पृष्ठ :२८२

चित्त

•• एक व्यक्ति के ऊपर अगर हम उसके दोषों के ऊपर से चित्त निकालकर उसकी शुद्धता , उसकी पवित्रता की तरफ ध्यान दे तो एक अभ्यास हमारा हो जाएगा और वह अभ्यास करते-करते वह हमारा स्वभाव बन जाएगा। •• जब चित्त अच्छाइयों पर जाएगा तो आपके भीतर भी अच्छाइयाँ आनी शुरू हो जाएगी। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - गुरुपूर्णिमा महोत्सव २०१२

सुख की परिभाषा

आज समाज में सुख की परिभाषा भी केवल शारीरिक सुविधाओं की मानी जाती है़ जो पैसे से प्राप्त हो सकती हैं और उन्हें पाना ही मनुष्य अपना लक्ष्य बना लेता है़। और जीवन के अंत में जब धरती से विदा होता है़ , तब उसकी समझ में आता है़ - जिस पैसे के पिछे की दौड़ में सबको शामिल होता देख मैं भी शामिल हो गया था , वह पैसा जीवन में मुझे केवल सुविधाएँ दे पाया लेकिन जीवन में कभी सुख मिला ही नहीं। सुख केवल आत्मा से मिल सकता है़। -- श्री शिवकृपानंद स्वामी  हिमालय का समर्पण योग ४ , पृष्ठ : १८८ 🧘🏻‍♂🧘🏻‍♂🧘🏻‍♂🧘🏻‍♂🧘🏻‍♂🧘🏻‍♀🧘🏻‍♀🧘🏻‍♀🧘🏻‍♀🧘🏻‍♀

गुरु तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ

🔹गुरु तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ रहता है। 🔹गुरु मिलने के बाद ही हमारा आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ होता है। 🔹सद्गुरु के प्रवचन पहले सुनने चाहिए , फिर मनन करना चाहिए , फिर सोचना चाहिए , फिर ध्यान करना चाहिए और अंत में गुरुकार्य में लग जाना चाहिए। समर्पण ध्यान के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों में बाँटना चाहिए। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : दर्शन शिविर - राजपीपला 

चित्तशक्ति का धन

••◆ मेरे लिए वो लोग कार्य करते हैं - जो मुझसे ज्ञान में श्रेष्ठ है, पोस्ट में श्रेष्ठ है, विद्वता में श्रेष्ठ है; सबकुछ मुझसे अधिक है, फिर भी वो मेरे लिए कार्यरत हैं, मेरे लिए कार्य करते हैं। सिर्फ इसीलिए कार्यरत हैं और इसीलिए कार्य करते हैं क्योंकि मेरे पास चित्तशक्ति का धन है। तो ये चित्तशक्ति का धन आप प्राप्त करलो, चित्तशक्ति के आप भी धनी हो जाव, तो आपसे अधिक विद्वान लोग, आपसे अधिक धनाढ्य लोग, आपसे अधिक पहुँचे हुए लोग आपके लिए कार्य करेंगे। ••◆ यानी आपके पास जीवन में कुछ नहीं हो और आपके पास जीवन में सशक्त चित्त हो, तो वह सशक्त चित्त से आप इस दुनिया में अपनी जगह बना सकते हो। ••◆ सशक्त चित्त सिर्फ गुरुचरण पे चित्त रखके मैंने प्राप्त किया है। कैसी भी परिस्थितियाँ हो, कैसी भी कठिनाइयाँ हो, कैसा भी वातावरण हो, अनुकूल हो, प्रतिकूल हो सभी स्थितियों में वहाँ का कनेक्शन सदैव एक-सा रहा है। गुरुचरण पे चित रखने के बाद दुनिया का समस्त ज्ञान वहीं से प्राप्त हुआ है।  - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : नवयुग का निर्माण

🌺प्रार्थनाधाम🌺

••◆ 'आत्मधर्म समर्पण महाशिविर' (मराठी) अप्रैल २००८ में गोवा में आयोजित किया गया था। ••◆ वहाँ ४५ दिवसीय अनुष्ठान की पूर्णाहुति के लिए मुझे गोवा जाना था। •••• मेरे साथ सौ. नैमिषा बैन तथा प्रताप भाई शाह भी जाने वाले थे। •••• दिन था सात जून , जिस दिन हमें मुबई से पणजी की हवाई यात्रा करनी थी। ••◆ वर्षा ऋतु के आरंभ का समय था। सुबह से वर्षा हो रही थी। •••• हम लोग दोपहर २.३० बजे हवाई अड्डा पहुँचे। हमारे विमान का उडान समय था शाम ४ बजे। ••◆ गोवा तथा मुबंई दोनों स्थानों पर तेज वर्षा हो रही थी। पता चला विमान १ घंटा देरी से चलेगा। फिर पता चला २ घंटा देरी से। ••◆ आसमान में काले बादलों का घना डेरा था शाम चार-साढ़े चार बजे ऐसा घना अंधेरा-सा था मानो शाम ७.३०-८ बजे हों। •••• लगभग सभी उड़ाने रुकी हुई थीं। न कोई विमान आ रहा था , न जा रहा था। विमानतल यात्रियों से भरता जा रहा था। ••◆ तभी एक ईसाई साध्वी (नन) मेरे पास आकर बैठी उन्हें इंदौर जाना था। वे इथियोपिया (अफ्रीका) से आई थी। •••• हम लोगों की हँसी-ठिठोली चल रही थी पर उन्हें चिंतित देखा तो उनसे बातचीत की। उन्हें भय था कहीं उड़ान रद्द न हो जाए। ••◆

ध्यान करना इस वर्ष की अत्यंत आवश्यकता

"ध्यान करना इस वर्ष की अत्यंत आवश्यकता है। ये शब्द मेरे याद रखना। ये आपको बार-बार याद आएँगे। इसीलिए नियमित ध्यान करना , अपने-आपको संतुलित करना , अपने-आपको बेलेंस करना ; ये २०२१ की आवश्यकता है। जिस प्रकार से अन्य चीजें आवश्यक है न , वैसे ये चीज भी अत्यंत आवश्यक है।"  *- परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी*

प्रकृति का अनुभव

मौसम बड़ा ही सुहावना, खुशनुमा तथा गर्मीला था और आसमान भी साफ था! शाम ५ बजे के करीब हमने पूज्य स्वामीजी एवं गुरुमाँ के साथ सैर हेतु समुद्रतट पर जाना निश्चित किया। एक और साधिका, लता मगन भी हमारे साथ थी।   समुद्र किनारे चलते-चलते हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ अमश्लोटी नदी हिन्द महासागर से मिलती है। हमने कुछ देर नीले आसमान तले बैठकर शांत एवं मनमोहक प्रकृति के सान्निध्य का आनंद लिया तथा पुनः विला की ओर प्रस्थान करने लगे।   वापस लौटते समय, रास्ते में स्वामीजी को एक स्थान अच्छा लगा और उन्होंने हम सभी को वहाँ थोड़ी देर बैठने को कहा। हम सब वहाँ बैठ गए और कुछ देर पश्चात स्वामीजी उठकर समुद्र की ओर जाने लगे। वे किनारे पर जाकर खड़े रह गए तथा अपनी हथेलियों को समुद्र के समक्ष खुली रखकर उन्होंने अपना आभामण्डल खोला।   लहरें ऊँची उठने लगीं और ठीक उनके चरणों के पास आकर शांत होकर धीरे से उनके चरणों को स्पर्श करने लगीं। स्वामीजी के खड़े रहते ही, हमने देखा कि आसमान का रंग बदलने लग गया तथा बादलों की भी हलचल शुरू हो गई। लहरों की तीव्रता बढ़ गई तथा वे और ऊँची उठने लगीं किन्तु प्रत्येक लहर स्वामीजी तक पहुँचने के ठी

ऑरा, आभामण्डल काल्पनिक नहीं

•• ऑरा, आभामण्डल काल्पनिक नहीं है। देखिए, आभामण्डल और ऑरा क्या है - मनुष्य का चित्त जितना शुद्ध होगा, मनुष्य का चित्त जितना पवित्र होगा, जितना सशक्त होगा ; उसी सशक्त चित्त का प्रकाश उसके शरीर के आसपास चौबीसों घण्टे विद्यमान रहेगा। •• यहाँ ध्यान रखने की बात है - चौबीसों घण्टे विद्यमान रहेगा। छाया , अगर आप अँधेरे में चले जाते हो तो वो आपका साथ छोड़ देती है लेकिन ये ऑरा, ये आभामण्डल आपका साथ कभी भी नहीं छोड़ता ; चौबीसों घण्टे रहता है और वो चौबीसों घण्टे आपको सुरक्षा प्रदान करता है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - चैतन्य महोत्सव २०२०

गुरुकार्य

•• मैं किसी से भी नहीं मिलता ; जो गुरुकार्य करता है , उससे मिलता हूँ।  •• आप कुछ तो भी कार्य ऐसा करो जिस कार्य के कारण मैं आपकी तरफ खींचकर आऊँ। मेरा और आपका संबंध कार्य का है। •• गुरुकार्य ही शाश्वत है। इसलिए आप गुरुकार्य को पकड़ो। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - युवक-युवती कार्यशाला २००९

प्रार्थना कैसे करनी चाहिए जानिए परम पूज्य स्वामीजी से ...!!

*प्रार्थना कैसे करनी चाहिए जानिए*  *परम पूज्य स्वामीजी से ...!!* *.   प्रार्थना आध्यामिक स्थिति को बढ़ाने के लिए बहुत बड़ी मार्गदर्शक है। लेकिन वो प्रार्थना किसी भय से नहीं होनी चाहिए, कि हे परमात्मा ये मेरा बुरा नहीं हो जाए, हे परमात्मा मेरे साथ ये बुरी घटना नहीं हो जाए! ऐसे भय से कि गयी प्रार्थना सही प्रार्थना नहीं है! क्यूंकि भय का संबंध आपके शरीर के साथ है! तो जब की प्रार्थना का संबंध आपके शरीर के साथ है ही नहीं! दूसरा किसी लालच में कुछ मिलना चाहिए, कुछ पाना चाहिए.. इस भाव के साथ ही कभी कोई प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि पाना, मिलना चाहिए ये सब भाव शरीर का है। तो शरीर के भाव के ऊपर प्रार्थना नहीं की जाती है। आत्मा के भाव के ऊपर की जाती है। तो पूर्ण आत्मा के भाव से मुझे लगता है जीवन में एक ही प्रार्थना करना चाहिए। एक ही प्रार्थना के लिए हमे शब्द इस्तेमाल करना चाहिए। और वो है...* *हे परमात्मा मुझे आत्मसाक्षात्कार करा दो।* *हे परमात्मा मुझे आत्म अनुभूति करा दो।* *हे परमात्मा मुझे आत्म समाधान प्रदान करो।* *ये सब शब्द एक ही जगे, एक ही ओर, एक ही दिशा में आपको ले जाएंगे, आपको ऐसे माध्यम

समर्पण

•• 'समर्पण' प्रतिदिन करने की आवश्यकता होती है। •• क्योंकि हमारे आसपास के बुरे विचारों से हमारे समर्पण के भाव पर बुरा प्रभाव पड़ता है। •• 'समर्पण' तो आत्मा का शुद्ध भाव है , उसकी शुद्धता सदैव बनी रहनी आवश्यक है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - हिमालय का समर्पण योग - भाग ४

गुरु को शरीर होते हुए भी 'परब्रह्म' क्यू कहा गया ?

•• गुरु को शरीर होते हुए भी 'परब्रह्म' क्यू कहा गया ? •• गुरु का शरीर परमात्मा नहीं है। गुरु के शरीर से बहनेवाला परम चैतन्य परमात्मा है , वो ही 'गुरुतत्त्व' है। •• हमारा ध्यान गुरु के शरीर के ऊपर नहीं होना चाहिए। हमारा ध्यान गुरु के भीतर से बहनेवाले 'गुरुतत्त्व' पे होना चाहिए। उस परम चैतन्य पे होना चाहिए। तब जाके साक्षात परब्रह्म की अनुभूति होगी। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - महाशिवरात्रि २०२१

माध्यम का सान्निध्य का लाभ

•• हमें माध्यम का कितना सान्निध्य मिला वह महत्त्वपूर्ण नहीं है, हमने उस सान्निध्य का क्या लाभ लिया वह महत्वपूर्ण है। अगर हम सान्निध्य में रहकर भी बहस करें, व्यवस्था की बातें करे, झगड़ों की बातें करे, शिकायतें करे, निंदा करें, समस्याओं की चर्चा करें और दूसरों के दोषों की बातें करें, उससे हम जो पुण्यकर्म करके सान्निध्य प्राप्त कर रहे हैं, उसका सदुपयोग नहीं होगा। •• जीवंत माध्यम का एक-एक क्षण महत्वपूर्ण होता है। अगर हम सदुपयोग नहीं करते, तो वे क्षण हमने औरों के लिए छोड़ देने चाहिए। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : आत्मा की आवाज़

आप आपके ही गुरु बनो

•• जीवन में त्याग में ही प्राप्ति है , देना ही जीवन है। •• आप आपके ही गुरु बनो , यह मेरी इच्छा है। और नियमित ध्यान साधना से ही यह संभव है। •• सतत अच्छे कार्य से जुड़े रहना ही हमें अच्छा बना सकता है। और मुझे विश्वास है , आप निच्छित अच्छे साधक बनोगे ही !! - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - दिनांक : २८/०२/२००८

🌺महाशिवरात्रि🌺

•• ये अर्धनारीनटेश्वर, जो शिवजी का स्वरूप बताया गया है, वात्सव में प्रतीकात्मक है। •• प्रतीकात्मक है याने ? ये आत्मा का प्रतीक है। कोई भी पुरुष संपूर्ण पुरुष नहीं होता, उसमें स्त्री होती ही है। और कोई भी स्त्री संपूर्ण स्त्री नहीं होती, उसमें पुरुष होता ही है। •• और आत्मा में स्त्री और पुरुष ऐसा कोई भेदभाव नहीं है। आत्मा आत्मा है, न वो पुरुष का है न स्त्री का है। एक स्तर के ऊपर जाने के बाद में फिर स्त्री और पुरुष ये भेद ही समाप्त हो जाता है। •• महाशिवरात्रि के दिन आप साक्षात शिव और पार्वती स्वयं बनो यही गुरुदेव की इच्छा है। तभी गणेश का जन्म हो सकेगा। •• पूरे सालभर में महाशिवरात्रि के दिन अपनी भागदौड़ वाली जिंदगी से ब्रेक लगा करके, थोड़ा ठहर करके अपना खुद का ही अवलोकन करो। खुद का एनालिसिस करो कि हम उस महाशिवरात्रि से इस महाशिवरात्रि तक कहाँ तक पहुँचे हैं !! - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - महाशिवरात्रि २०११

३० मिनीट ध्यान

" ३० मिनीट अकेले ध्यान करो। आप अकेले बैठोग तो भी चित्त में ५० लोग होंगे. कभी बैठे हो मेरे साथ अकेले ? ३० मिनीट केवल आप और मै होना चाहिए। अपने बीच तीसरा कोई भी नहीं चाहिए। आधा घंटा आत्मा बन कर मेरे साथ बैठो ।  फिर देखो आपको कहाँ से कहाँ पहुंचाता हुँ।  कैसी कैसी अनुभूतियाँ करवाता हूँ। " - बाबा स्वामी गुरुपौर्णिमा २०१६

युवाशक्ति और चित्त

•• मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की नींव 'पवित्रता' से रखी गई है। अपने चित्त को पवित्र रखे, तो मन और शरीर भी पवित्र होगा। मैंने मेरे जीवन में जो भी पाया, वह सब पवित्र चित्त के कारण ही हो सका। •• चित्त पवित्र रखने के लिए मुझे प्रार्थना करें, मेरी सामूहिक शक्ति के सामने रोए, गिड़गिड़ाए; यह रोना और गिड़गिड़ाना आपके भीतर के 'मैं' के अहंकार को चूरचूर कर देगा। और आपका चित्त शुद्ध हो जाएगा, आप स्वयं भी हलका महसूस करेंगे। गुरुचरण पर चित्त रखकर की गई प्रार्थना ही चित्त को शुद्ध कर सकती है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - युवाशक्ति और चित्त - २००८