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Showing posts from August, 2019

श्री गुरूशकती धाम - महुडी

शिघ्र से शिघ्र "श्री गुरूशकती धाम" का निँमाण कायँ प्रारंभ हो यह गुरूशकतीयो की इच्छा है। अापका अपना बाबा स्वामी १२/१०/२०१८

आशीर्वाद

        *"प्रत्येक "स्त्री" शक्ति का स्वरुप है, आप प्रत्येक "स्त्री" में उस शक्ति के दर्शन करो,* "अरे बाबा पत्नी  भी क्षणभर की प्रेयसी व्h. अनंतकाल की माता ही होती है l" स्त्री से पवित्र सम्बंध बनाओ और *माँ से पवित्र कोई सम्बंध इस दुनिया में नहीं है l* आप 45 दिन करके तो देखो *प्रत्येक स्त्री में "माँ कुंडलिनी" नज़र आयेगी,* जब यह दर्शन में कर सकता हूँ तो आप क्यों नहीं ? *स्त्री का शरीर शक्ति का सुचालक है,* वह शक्ति केवल ग्रहण ही नहीं करता संझौता है, निर्माण करता है और प्रसारित करता है l स्त्री शक्ति पर रखी गई तुम्हारी अच्छी या बुरी दृष्टि तुम्हे बना या बिगाड़ सकती है l स्त्री शक्ति स्वरूपा थी, है, और रहेगी l *"बांटना स्त्री का मूल स्वभाव है",* वह खाने से ज्यादा परोसने में ही आनंद प्राप्त करती है, यह प्रत्येक स्त्री में नैसर्गिक रूप से होता है l *सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी* *गहन ध्यान अनुष्ठान 2008*

जो अच्छा है वह आपको आत्मा हमेशा संस्कार के रूप में याद दिलाती है। और जो बुरा है , देह उसकी याद दिलाती है।

यह हमारी वर्षों की साधना है। पूर्वजन्म का असर हम पर रहता है ऐसा गुरुदेव हमेशा कहते हैं - कि जैसे पूर्वजन्म में हमारे अंदर कुछ दोष थे , क्योंकि प्रत्येक जन्म में हम थोड़ा-थोड़ा सुधरते-सुधरते-सुधरते-सुधरते यहाँ पहुँचे हैं। तो वे पूर्वजन्म के जो दोष थे , वे तो लेकरके ही हम जन्में हैं। यदि पूर्वजन्म में हम झूठ बोलते थे तो हम इस जन्म में भी वो झूठ बोलने का गुण लेकर ही चले हैं। गुण याने दुर्गुण। *यदि हम पिछले जन्म में कुछ और गलत कार्य करते रहे तो उसके साथ जन्मे लेकिन उसके साथ-साथ हमारी आत्मा के जो अच्छे कर्म थे , जो अच्छे संस्कार थे , वे भी लेके चले हैं।* तो इसीलिए आप दोनों चीजों का एक मिश्रण हैं और इस मिश्रण के साथ ही आपको आगे बढ़ना पड़ेगा। तो जो मिश्रण है , *जो अच्छा है वह आपको आत्मा हमेशा संस्कार के रूप में याद दिलाती है। और जो बुरा है , देह उसकी याद दिलाती है।* *🌹परम वंदनीय गुरुमाँ🌹* *गुरुपूर्णिमा महाशिविर , समर्पण आश्रम , दांडी - २०१३* मधुचैतन्य (पृष्ठ ३३) जुलाई, अगस्त, सितंबर - २०१३

चितशक्ति का युग

आने  वाला  युग  , आनेवाला  समय  चितशक्ति  का युग  होगा  और  चितशक्ति के युग मैं  अपना  अस्तित्व  बनाए  रखने के लिए  , सुरक्षित रखने के लिए सामूहिक  चितशक्ति की आवश्यकता होगी  । भविष्य की  संभावनाएँ  देखते  हुए  , भविष्य की  आवश्यकताएँ  देखते हुए समाज  को एक दिशा देने का ,  समाज को एक मार्ग देने का प्रयास  हम लोग  कर रहे है  और  इस प्रयास में सफल होने के लिए आवश्यक हैं आप दो बातों  का ध्यान रखें -- एक तो सतत अच्छा कार्य  करना ।सतत  अच्छा कार्य से मेरा आशय  केवल  शारीरिक कर्म सें  नहीं  हैं,  शारीरिक क्रियाओं सें नही हैं  , शारीरिक कार्य  से नहीं हैं  । सतत  चित से भी अच्छा करने  का  ! अब सतत चित से अच्छा करना यानी  क्या  ?   सतत चित से अच्छा कार्य करना यानी  सबके बारे मैं अच्छा सौचना , सब के प्रति आपके मन में अच्छा भाव रखना  ।  आपके  अनुकूल  या  आपके प्रतिकूल  कैसी भी परिस्थितियाँ  हों  ,  दोनों हीं परिस्थिति मैं  अपना संतुलन बनाए रखना  और  कोई भी व्यक्ति आपसे  कैसा भी बर्ताव करे  ,  आपके  मन मैं उसके प्रति  ईर्षा  , आपके मन मैं  उसके प्रति दुर्भावना नहीं  आनी चाहिए  क्योंकि  ये  दोष

પ્રાર્થનાધામનો ઇતિહાસ

પરમ પૂજ્ય સ્વામીજીની પ્રથમ શિબિરનું આયોજન ૮ જાન્યુઆરી, ૨૦૦૦ના રોજ અરવિદ આશ્રમ, નવસારીમાં પ્રાણિક હીલિગ ફાઉન્ડેશન. નવસારી દ્વારા થયું હતું. એ શિબિરમાં અંદાજે ૨૦૦થી પણ વધાર સાધકો આસપાસનાં ગામડાં અને નવસારી શહેરથી આવ્યા હતા. આ પૂજ્ય સ્વામીજીની સૌથી પહેલી મોટી શિબિર હતી કે જેમાં એમના દ્વારા આટલી મોટી સંખ્યામાં એકસાથે સાધકોનાં ચક્રોનું શુદ્ધિકરણ તથા કુંડલિની શક્તિની જાગૃતિ થઈ રહી હતી. સ્વામીજી સૌની દૂષિત અને રોગિષ્ટ ઊર્જા ગ્રહણ કરતા હતા, તો એ ઊર્જાને કિંલયર કરવા માટે અમે સ્વામીજીને સવારે દાંડીના દરિયાકિનારે લઈ જતા હતા. ત્યાં આગળ પૂજ્ય સ્વામીજી ખારા પાણીમાં બે બે કલાક ઊભા રહીને પોતાને કિલયર કરતા હતા. એમના શરીરની ગરમી ઓછી થાય એ માટે અમે રાત્રે એમના પગના તળિયે ગાયનું ધી વસતા હતા. ત્યાર પછી પૂજ્ય સ્વામીજી પાછા મુંબઈ ગયા અને પછીથી તો લગાતાર શિબિરો પર શિબિરો ચાલતી ગઈ. પૂજ્ય સ્વામીજી એમના સ્વાસ્થ્યની ચિતા કર્યા વગર પોતાના ગુરુના કાર્યમાં મગ્ન હતા. આવા સમયે કરમસદમાં શિબિરનું આયોજન થયું હતું. પૂજ્ય સ્વામીજી નવસારી આવ્યા. મારી સાથે નૈમિષાબેન અને રામભાઈ કારમાં નવસારીથી કરમસદ આવી રહ્યાં હતાં. રસ્તામા

आरती

आरती की प्रक्रिया की सूक्ष्म अनुभूति को कैसे जाना जाए और उससे होने वाले लाभोंं पर हम यहाँ गौर करेंगे। १) अग्नि देवता का महत्व: आरती के समय हम अग्निदेवता को सामने रख आराध्य देव या गुरु के चित्र के ईर्द-गिर्द घुमाते है।  अग्नि का गुणधर्म है - दूषित ऊर्जा को नष्ट करना। आरती के समय हमारा देवता की शक्ति की दैवीशक्ति  साथ ऐक्य हो जाता है, यानि कि हम ईशशक्ति के साथ जुड़ जाते है। तब हम ही हमारे सूक्ष्म शरीर जिसे ऑरा या आभामंडल कहते हैं , उसकी दूषित ऊर्जा को दूर करते हैं , इस तरह से अनायास ही अग्नि देवता के सान्निध्य में हमारे ऑरा की सफाई होती है। २)  ध्वनि: आरती के समय घंटानाद , सूर-ताल , लय वगैरे से ॐकार रुपी ब्रह्मनाद उत्पन्न होता है , जिसे सामूहिकता में एक सूर में गाने के कारण हमारा चित्त एकाग्र होता है और वह सहस्त्रार पर स्थिर हो जाता है। जिसके जरिए हमें अपने आप बिना प्रयत्न के निर्विचारता प्राप्त हो जाती है और आप एक सुख और शांति का अनुभव करते है। ३)  सामूहिकता का महत्व: सामूहिकता: हम सब श्रद्धालु भक्तजन मिलकर आरती करते हैं। जब हम एक ही समय , एक ही देवता की , एक साथ आराधना करते हैं ,

गुरुकार्य ही मेरे जीवन का उद्देश है - बाबा स्वामी

जीन्हे मेरी शरीर की होने वाली तकलीफो की और पीडा की जानकारी है वह कहते है की इतनी तकलीफ उठाकर क्यो बाहर घुमते हो अब उन्हे कैसे समझाऊ की गुरुकार्य ही मेरे जीवन का उद्देश है वही अगर नही रहा तो मै जीकर क्या करूगा वह तो मै रोक ही नही सकता क्यो वह मै करता नही हु हो जाता है रही बात शरीर की तकलीफो की तो वह मेरे भोग नही है वह कीसी और के होते है उनके वह भोग नष्ट कीये बीना आत्म साक्षात्कार संभव ही नही है  कोई भोग नष्ट नही हो सकता रूपान्तरीत हो सकता है बाबा स्वामी 27.8.17

श्री गणेश

श्री गणेश का रूप बहोत ही मोहक है। श्री गणेश की सूंड बताती है कि प्रत्येक वस्तु की अनुभूति लो, अनुभूति पर ही विश्र्वास करो। संवेदनशील बनो, संवेदनाओ से विश्र्वको जानो। उसका बडा मस्तक बताता है - सदैव शांतचित्त रहो, सभी  परिस्थितियों में से मनुष्य शांति से निकल सकता है। अपनी मन की शांति बनाए रखो। श्री गणेश की आँखे बारीक हैं। यानी मनुष्य को अपनी दृष्टि सदैव पैनी रखनी चाहीए।सदैव सूक्ष्म दृष्टि ही मनुष्य को सत्य का दर्शन करी सकता है। सूक्ष्म दृष्टि से ही आभामंडल को जाना जा सकता है। श्री गणेश के बडे बडे कान बताते हैं - मनुष्य को अधिक सुनने की आदत डालनी चाहीए।। सदैव अच्छा अधिक से अधिक सुनो। श्री गणेश का बडा पेट उदारता का प्रतिक है, समाधान का प्रतिक है। समाधान मनुष्य का पेट बडा होता है, क्योंकी वह तृप्त होता है। श्री गणेश का बडा शरिर शक्तियों का प्रतिक है। मनुष्य को सदैव शक्तिशाली होवा चाहिए। दुसरा महत्वपूर्ण बात है - उनके शरिर की संरचना चैतन्य का निर्माण करती है। वास्तवमें यह आकार चैतन्य ग्रहण करने के लिए ही हुआ है। यह आकार पृथ्वी के चैतन्य को ग्रहण करता है। श्री गणेश पवित्रता के देवता हैं। ब

श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण भगवान उस काल के गुरु थे। वे अपने जीवनकाल में भी पहचाने नहीं गए। बहुत कम लोग उनके जीवनकाल में उनको पहचान पाए थे। किसी ने उन्हें माखनचोर कहा , किसी ने ग्वाला कहा क्योंकि उस काल में भी बहुत कम लोग वर्तमान काल में थे। इसलिए , वर्तमान में ही न हो , तो परमात्मा के वर्तमान स्वरूप को कैसे पहचानेंगे? इसलिए उन्हें भी नहीं जान पाए। वे भी उनके काल के गुरु ही थे। उनके माध्यम से परमात्मा की शक्ति बहती थी। वे भी माध्यम ही हैं , यह वे भी जानते थे , इसलिए उन्होंने कभी अपने-आपको भगवान नहीं कहा। हाँ, गीता वेदव्यासजी ने लिखी है जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं भगवान हूँ , पर वास्तव में , वह श्री वेदव्यासजी का भाव था। धीरे-धीरे श्रीकृष्णजी को मान्यता भगवान के रूप में मिलने लगी और वे भगवान माने गए , पर तब समय बित चुका था। परमात्मा के माध्यम , जो मान्यताप्राप्त होते हैं, उन्हें पहचानना आसान होता है क्योंकि सभी लोग उन्हें जानते हैं। पर वे अपने से तो दूर ही होते हैं। पर ऐसे किसी एक 'भगवान' की भक्ति करके भी भगवान के वर्तमान काल के स्वरूप (माध्यम) तक पहुँचा जा सकता है। *हिमालय का समर्पण योग २

શ્રી ગુરુશક્તિ ધામ

👉🏻 પ્રકૃતિનું પોતાનું એક ચક્ર છે. અને તે ચક્ર અનુસાર સૃજન, સંગોપન (વિકાસ/પોષણ) અને સંહાર થતાં રહે છે. અને તે ચક્ર મુજબ આપણો જન્મ થાય છે, સંગોપન થાય છે, અને આપણું મૃત્યુ થાય છે. 👉🏻 મૃત્યુ સમાપ્તિ નથી. ફરી બીજા જન્મ માટે આવશ્યક છે, નવા જન્મની શરૂઆત છે.અને આ પ્રકૃતિના ચક્રને ચલાવનાર શક્તિ પરમાત્મા છે. 👉🏻 મૃત્યુ પણ પ્રકૃતિનું આગળ વધતું પગલું માત્ર છે. મૃત્યુનું કારણ કંઇપણ હોઈ શકે. પરંતુ તેનો સમય નિશ્ચિત છે. તે સમયની પહેલાં કે સમય પછી નથી આવતું. 👉🏻 આ પ્રકૃતિના ચક્રની અંતર્ગત જે આત્માઓ પરમાત્મા સાથે જોડાયેલા હોય છે, તેમના માધ્યમથી આ ધરતી પર સમયે સમયે પરમાત્મા અવતરિત થયા રહે છે, અને પોતાના વિશે તે માધ્યમોના માધ્યમ દ્વારા જાણકારી આપતાં હોય છે. પોતાના જ રહસ્યોને ખોલતા રહે છે. 👉🏻 જે આત્માઓ માધ્યમ બનીને આવે છે, તેઓ પોતાની સાથે અપાર ઉર્જાશક્તિ લાવે છે, અને પોતાની સાથે પાછી લઈ જાય છે. કારણ, બહુ ઓછા સુપાત્ર આત્માઓ તે ઉર્જા ગ્રહણ કરવા માટે તૈયાર હોય છે, અને આ ચક્ર પણ યુગો યુગોથી ચાલતું આવ્યું છે. 👉🏻 આ રીતે ઘણા સંતોના માધ્યમથી તે ઉર્જાશક્તિ અવતરિત થઈ, અને તેના જીવનકાળ પછી તેમની સાથે જ

Values of Guru-karya, these are the ‘Simplest’ Values

ॐ 21.8.2019 Values of Guru-karya, these are the ‘Simplest’ Values My Salutations to all Pious Souls…….                                                                 We had seen the audio cassettes of the earlier times; we  could record and keep whatever songs we  wanted and whenever we  wanted, we  could insert the cassette  into the tape-recorder and by pressing the delete button we could  also delete all the recorded songs, and then we would record new songs again. Meaning, to delete the songs on the tape, we had to use the tape-recorder. Today, you all must be wondering why Swamiji is telling us all this, we too know all this already – with this example, I want to explain something to you. This morning when I was in contact with the Guru-energies during meditation, I obtained the knowledge that each person has a tape (recording) of the values of his previous birth, and he takes birth along with them. The way in which the physical body has good or bad habits, in the same way t

परमात्मा के अलावा कहीं भी जुड़ोगे तो वही दुःख का कारण होगा।

आप कहीं भी हो , किसी के साथ भी हो, किसी भी स्थान पर हो लेकिन चित्त से., 'सद्गुरु' के माध्यम से., परमात्मा के साथ रहो। विश्वचेतना के साथ रहो तो जीवन कब बीत गया उसका एहसास भी नहीं होगा। 'परमात्मा 'के अलावा कहीं भी जुड़ोगे तो वही दुःख का कारण होगा। क्योंकि सभी अशाश्वत है। केवल परमात्मा ही शाश्वत है। 'सद्गुरु' को पकड़ो मत। उसे सीढ़ी बनाओ और परमात्मा तक पहूँचो। "सद्गुरु" माध्यम है। "सद्गुरु" परमात्मा नहीं है। पर "सद्गुरु" के  बिना  परमात्मा की प्राप्ति असंभव है।    आप सभी को परमात्मा की प्राप्ति हो        इसी शुद्ध इच्छा के साथ.......          ~ बाबा स्वामी

गुरू से सूक्ष्म में जुडें, स्थूल रूप से मिलने की ज़िद ना करें ।

आज सुबह चार बजे कतार गाम सूरत की एक पूर्व साधिका अपने पिताजी के साथ बाबाधाम मोगार आईं थी । उन्होंने यहाँ सुबह के ध्यान के शांत समय में बहुत शोर मचाया । बाद में पता चला कि वे मानसिक रूप से अस्वस्थ थीं । पिछले दो वर्षों से उन्होंने न तो ध्यान किया है और न ही वे ध्यान केंद्र ही गई हैं । मुझे उसकी इस मानसिक अवस्था के लिए सहानुभूति है । आज की घटना के परिप्रेक्ष्य में सर्वसाधारण सभी साधकों से मैं कुछ कहना चाहती हूँ । स्वामी जी हमारे गुरु हैं औंर उनका अधिकांश समय गुरूकार्य में ही बीतता है। हम सभी के साथ बहुत कम समय वे रह पाते हैं । जितना समय वे हमें ( परिवार जनों को)दे रहे हैं उस समय में भी सुबह जैसी घटना का होना निंदनीय है । गुरू तो छोड़ो किसी आम आदमी को भी इतनी स्वतंत्रता तो मिलती ही है कि वह कुछ समय स्वयं को दे सके, या वह किससे मिलना है कब मिलना है, मिलना भी है या नहीं ये वह स्वयं चुने । किंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि कई बार हमारे साधक भी मिलने की ज़िद करते हैं । सभी एक ही निवेदन है कि गुरू से सूक्ष्म में जुडें, स्थूल रूप से मिलने की ज़िद ना करें । आपकी गुरूमाँ