श्रीकृष्ण भगवान उस काल के गुरु थे। वे अपने जीवनकाल में भी पहचाने नहीं गए। बहुत कम लोग उनके जीवनकाल में उनको पहचान पाए थे। किसी ने उन्हें माखनचोर कहा , किसी ने ग्वाला कहा क्योंकि उस काल में भी बहुत कम लोग वर्तमान काल में थे। इसलिए , वर्तमान में ही न हो , तो परमात्मा के वर्तमान स्वरूप को कैसे पहचानेंगे? इसलिए उन्हें भी नहीं जान पाए। वे भी उनके काल के गुरु ही थे। उनके माध्यम से परमात्मा की शक्ति बहती थी। वे भी माध्यम ही हैं , यह वे भी जानते थे , इसलिए उन्होंने कभी अपने-आपको भगवान नहीं कहा। हाँ, गीता वेदव्यासजी ने लिखी है जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं भगवान हूँ , पर वास्तव में , वह श्री वेदव्यासजी का भाव था। धीरे-धीरे श्रीकृष्णजी को मान्यता भगवान के रूप में मिलने लगी और वे भगवान माने गए , पर तब समय बित चुका था। परमात्मा के माध्यम , जो मान्यताप्राप्त होते हैं, उन्हें पहचानना आसान होता है क्योंकि सभी लोग उन्हें जानते हैं। पर वे अपने से तो दूर ही होते हैं। पर ऐसे किसी एक 'भगवान' की भक्ति करके भी भगवान के वर्तमान काल के स्वरूप (माध्यम) तक पहुँचा जा सकता है। *हिमालय का समर्पण योग २