आरती
आरती की प्रक्रिया की सूक्ष्म अनुभूति को कैसे जाना जाए और उससे होने वाले लाभोंं पर हम यहाँ गौर करेंगे।
१) अग्नि देवता का महत्व:
आरती के समय हम अग्निदेवता को सामने रख आराध्य देव या गुरु के चित्र के ईर्द-गिर्द घुमाते है। अग्नि का गुणधर्म है - दूषित ऊर्जा को नष्ट करना। आरती के समय हमारा देवता की शक्ति की दैवीशक्ति साथ ऐक्य हो जाता है, यानि कि हम ईशशक्ति के साथ जुड़ जाते है। तब हम ही हमारे सूक्ष्म शरीर जिसे ऑरा या आभामंडल कहते हैं , उसकी दूषित ऊर्जा को दूर करते हैं , इस तरह से अनायास ही अग्नि देवता के सान्निध्य में हमारे ऑरा की सफाई होती है।
२) ध्वनि:
आरती के समय घंटानाद , सूर-ताल , लय वगैरे से ॐकार रुपी ब्रह्मनाद उत्पन्न होता है , जिसे सामूहिकता में एक सूर में गाने के कारण हमारा चित्त एकाग्र होता है और वह सहस्त्रार पर स्थिर हो जाता है। जिसके जरिए हमें अपने आप बिना प्रयत्न के निर्विचारता प्राप्त हो जाती है और आप एक सुख और शांति का अनुभव करते है।
३) सामूहिकता का महत्व:
सामूहिकता: हम सब श्रद्धालु भक्तजन मिलकर आरती करते हैं। जब हम एक ही समय , एक ही देवता की , एक साथ आराधना करते हैं , तब जो सामूहिकता मिलती है उससे अनेक गुना लाभ होता है। और आप शीघ्र ही निर्विचारिता को प्राप्त होते है।
४) पृथ्वी तत्व का सान्निध्य:
आरती के सामय हम नंगे पैरोंं से सीधे पृथ्वीमाता के सान्निध्य में होते हैं, जिसके कारण हमारी शुद्धि होती है। पृथ्वी तत्व का गुणधर्म है कि वह अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से हमारे अंदर की दूषित ऊर्जा को ग्रहण करके हमारी शुद्धता और पवित्रता बढाती है।
५) समय का महत्त्व: हम सामान्य तौर पर सुबह या शाम के समय आरती करते हैं , तब हमें उपयुक्त वातावरण का भी लाभ होता है। इन दोनों समय वातावरण में विचारों का प्रदूषण कम मात्रा में होता है औरत मन प्रसन्न और शान्त होता है।
६) आरती क़े शाब्दिक अर्थ से सूक्ष्मता का भाव प्रकट होना:
आरती के शब्द वैश्विक ईशशक्ति की ओर हमारा ध्यान खींंचते है। हमें अपने अंदर की आत्मचेतना की ओर इशारा करती हैं। उससे हम शब्दों से मौन की सूक्ष्मता का अहसास करते हैं। आरती शब्दों की शक्ति के द्वारा मन में , बुद्धि में एकत्व की ओर दृढ संकल्प कराती हैं।
*मधूचैतन्य अप्रैल २००२ पृष्ठ:७*
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