गुरू से सूक्ष्म में जुडें, स्थूल रूप से मिलने की ज़िद ना करें ।
आज सुबह चार बजे कतार गाम सूरत की एक पूर्व साधिका अपने पिताजी के साथ बाबाधाम मोगार आईं थी । उन्होंने यहाँ सुबह के ध्यान के शांत समय में बहुत शोर मचाया । बाद में पता चला कि वे मानसिक रूप से अस्वस्थ थीं । पिछले दो वर्षों से उन्होंने न तो ध्यान किया है और न ही वे ध्यान केंद्र ही गई हैं । मुझे उसकी इस मानसिक अवस्था के लिए सहानुभूति है ।
आज की घटना के परिप्रेक्ष्य में सर्वसाधारण सभी साधकों से मैं कुछ कहना चाहती हूँ । स्वामी जी हमारे गुरु हैं औंर उनका अधिकांश समय गुरूकार्य में ही बीतता है। हम सभी के साथ बहुत कम समय वे रह पाते हैं । जितना समय वे हमें ( परिवार जनों को)दे रहे हैं उस समय में भी सुबह जैसी घटना का होना निंदनीय है ।
गुरू तो छोड़ो किसी आम आदमी को भी इतनी स्वतंत्रता तो मिलती ही है कि वह कुछ समय स्वयं को दे सके, या वह किससे मिलना है कब मिलना है, मिलना भी है या नहीं ये वह स्वयं चुने । किंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि कई बार हमारे साधक भी मिलने की ज़िद करते हैं । सभी एक ही निवेदन है कि गुरू से सूक्ष्म में जुडें, स्थूल रूप से मिलने की ज़िद ना करें ।
आपकी
गुरूमाँ
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