एक नए प्रकार के ज्ञान संक्रमण का अविष्कार

समर्पण ध्यानयोग साधना में *गुरुकार्य* एक विशेष और महत्त्वपूर्ण विषय है।
गुरुकार्य करते वक्त कई सारे नए अनुभव, मुशिकले, अड़चन आती रहती है। लेकिन शायद सभी साधकों का यह अनुभव है कि समर्पण *भाव* द्वारा उसका हल निकल ही जाता है।

लेकिन ऐसी प्रक्रिया का विश्लेषण करें तो उसमें से कई सारे रोचक तथ्य बाहर आते है। जैसे कि हाल ही के एक गुरुकार्य का अनुभव।

गुरुकार्य कोई सा भी अगर आये तो उसे सहर्ष स्वीकार करना हम सभी का भाव रहता है। वैसे ही, मैं भी कोशिश करता रहता हूँ, कि हो सके तब तक गुरुकार्य आए तो मना न करना पड़े।

एक गुरुकार्य करते करते, उसके तकनीकी बारीकियों में तल्लीन होने पे अचानक से यह खयाल जागा।

ख्याल यह था कि जो मेरी शिक्षा व अभ्यास रहा है वह कुछ अलग है। इस गुरुकार्य में उस शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं है। लेकिन जब मैं यह गुरुकार्य कर रहा हूँ और उसके परिणाम आते है तो वे किसी विशेषज्ञ द्वारा किये गए कार्य जैसे ही या उस से भी बेहतर ही आते है। यह मेरा क्षेत्र नही, ना कि मेरा व्यवसाय न कि मेरी शिक्षा इसलिए बस केवल *भाव* के कारण यह कार्य दक्षता आई। इस ज्ञान में सिखाया, पढ़ाया, लिखाया, बताया, वाला कुछ नही है। अनायास है।

तभी याद आई एकलव्य की कहानी। की कैसे उसने भी केवल *समर्पित* हो कर सारा ज्ञान व कार्य दक्षता अनायास प्राप्त कर ली थी।

तभी अचानक उस ख्याल में गहराई आई।

एकलव्य का चित्त धनुर्विद्या के विशेषज्ञ गुरु द्रोण पे था, तभी उसमें (केवल) गुरु द्रोण का ज्ञान संक्रमित हुआ।

अब जब, मैं जो गुरुकार्य कर रहा हूँ, वह करते हुए मेरा चित्त गुरूद्वव पे, शिवकृपानंद स्वामीजी पे है, और मैं यह भी भली भांति जानता हूं कि इस ज्ञान का गुरुदेव के भी निजी जीवन की शिक्षा, व्यवसाय, अनुभव से कोई लेना देना नही है। तत्पस्च्यात केवल गुरुदेव के गुरुकार्य को श्रेष्ठ करना है- यह *भाव* द्वारा, चित्त गुरुदेव पे रख कर, वह ज्ञान की चरम सीमा तक मैं पहुँच पाया।

गुरु द्रोण पे चित्त रखकर एकलव्य, उनमें रहा ज्ञान प्राप्त कर पाया।

गुरुदेव पे चित्त रखकर मैं ऐसा ज्ञान प्राप्त कर पाया कि जो व्यक्तिगत तौर पे गुरुदेव से भी परे है।

एकलव्य के ज्ञान संक्रमण की घटना भी आज के ज़माने में कई सारे लोगो की समझ से परे है। अब तो उस से भी आगे का कुछ आ गया।

तो यह स्तर क्या होगा? गुरुतत्त्व की प्रगति कितनी और कैसे हुई? इसको क्या समझे, जो पहले से कई गुना उन्नत है? यही विचारों में शायद कुछ अविष्कार छुपा है ! 🌷

डॉ. धैवत मेहता

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