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Showing posts from March, 2017
संपूर्ण योग की स्थिती
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समर्पण ध्यान योग ध्यान की वो योग्य पद्धति है जिस पद्धति से एक संपूर्ण योग की स्थिती आप आपके जीवन में प्राप्त कर सकते है । योग के द्वारा ,आपके पूरे शरीर को संरक्षण प्राप्त होता है । पूर्ण प्रोटेक्शन मिलता है । कभी भी आपके जीवन में कोई दुर्घटना नही होगी । ये जैन मुनियोंको सीखा रहा हूँ क्योकि इनके रास्ते के ऊपर दुर्घटना होते है । तो उनको बोल रहा हूँ ध्यान करो मेडिटेशन करो.......... परम पूज्य स्वामीजी मधु चैतन्य अगस्त [ २०१५ ]
अच्छा कार्य करते हैं तो अच्छा कार्य कराने वाली शक्तियॉ हमारे पीछे हो जाती हैं
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और अगर हम अच्छा कार्य करते हैं तो अच्छा कार्य कराने वाली शक्तियॉ हमारे पीछे हो जाती हैं। और अगर हम बुरा कार्य करते हैं तो बुरा कार्य कराने वाली शक्तियॉ हमारे पीछे हो जाती हैं। ये दोनों शक्तियॉ इस दुनिया में होती हैं। और जीवन में आप पहला कार्य क्या चुनते हो , इस पर आगे आपके हाथ से किस तरह के कार्य सम्पन्न होंगे यह निर्भर करता है। अगर आपने अच्छा कार्य को चुना तो आपके हाथ से अच्छे कार्य होंगे। और अगर आपने ज ीवन में एक बुरा कार्य चुना तो आपके हाथ से बुरे कार्य होते चले जाएँगे।जीवन में पहले कार्य का चुनाव आप स्वयं करते हो और बाद के कार्य आप के हाथ से हो जाते है। केवल प्रथम कार्य चुनने का अधिकार मनुष्य का है। बाद में तो वह उन शक्तियों का माध्यम बनकर रह जाता है। इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य बड़ा (बहुत) सोच-समझकर प्रारंभ करना चाहिए क्योंकि यह प्रथम कार्य ही मनुष्य के हाथ में होता है। मनुष्य भी इन दोनों शक्तियों के बीच ही होता है। वह जीवन में किए गए कर्मों के कारण ही अच्छा या बुरा बनता है। प्रथम कार्य मनुष्य के जीवन का निर्धारण करता है। मनुष्य के कर्म होते हैं संस्क
समर्पण में परमेश्वर को विश्वचेतना के रूप में जाना है
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अनुराग का संदेश
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।। जय बाबा स्वामी ।। आदरणीय साधक भाइयों एवं बहनों, मुझे पिछले कई दिनों से feedback.samarpan@gmail.com एवं फ़ोन पर साधकों, आचार्य एवं प्रमुख आचार्यों से यह सुझाव मिल रहा था की गुरूपूर्णमा का कार्यक्रम सुबह ९ की बजाय दोपहर से शुरू हो जिससे साधकों को आश्रम पर आने में आसानी हो सके । *इसी कारण गुरुदेव एवम गुरूमां के समक्ष आपका सुझाव रखा गया है, गुरुकृपा में इस सुझाव को हरी झंडी दे दी गई है, अतः गुरूपूर्णोमा २०१७ का कार्यक्रम ७ तारीख़ को दोपहर ०२.३० से शुरू होगा । सभी साधकों को सूचित किया जाता है की वे कृपया दोपहर १२ तक समर्पण आश्रम कच्छ में registeration कर दे । * आपका अनुराग
दान
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सत्य अर्थ में दान वही है जो निष्काम भाव से किया जाएँ । " मैने दान दिया " यह भाव आगे जाकर अहंकार को जगाता है । " दान दिया " यह भाव हमे कर्म बंधन में भी बांधता है । जिस प्रकार बादल , धरती , सूर्य , नदियाँ तथा प्रक्रुती से दान प्राप्त कर हम जीवन जीते है वैसे ही निष्काम भाव से किया श्रम , दान , ज्ञान दान , समय दान , धन दान , सेवा दान ही सत्य अर्थ में दान है । प.पूज्या...गुरुमाँ मधूचैतन्य... फरवरी...२०१७
परमात्मा प्रत्येक का दरवाजा एक बार ' अवश्य ' खटखटाता है
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आत्मा अगर सशक्त हुई तो वह शरीर को अपराध करने से रोक सकती है
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आत्मा अगर सशक्त हुई तो वह शरीर को अपराध करने से रोक सकती है । और समर्पण ध्यान आपकी आत्मा को ही सशक्त करता है । और इसीलिए आपके हात से अपराध नही हो पाता है । आत्मा का सशक्त होना अत्यंत आवश्यक है । बुद्धि के विकास के साथ -साथ आत्मीयता कम हो रही है । यह बात अच्छी प्रतीत नही होती । यह समाज में असंतुलन पैदा करेगी । आध्यात्मिक सत्य
सब माध्यम " माध्यम " ही होते है , एक जैसे नही होते है
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"" सब माध्यम " माध्यम " ही होते है , एक जैसे नही होते है । समय और परिस्थिती , प्रक्रुती , संस्क्रुति के अनुसार बदलते रहते है । क्योकि वे वर्तमानकाल के होते है ,इसीलिए वर्तमानकाल के अनुसार ही होते है । उन्हें हमे भी वर्तमानकाल में ही रहकर खोजणा होता है । भूतकाल के माध्यमों का चित्र लेकर वर्तमानकाल का माध्यम खोजा नही जाता "" ही.स..योग..[ ५ ]
जो भी नई खोज होती है ,वह सदैव युवा पिढी के द्वारा ही होती है
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जो भी नई खोज होती है ,वह सदैव युवा पिढी के द्वारा ही होती है । वह कुछ नया करना चाहती है । वह अपने आजके अनुभव और परिस्थिति के अनुसार सीखना चाहती है । विश्व बदल रहा है तो मान्यताओं को भी बदलना आवश्यक है । गुरुकार्य महत्वपूर्ण है , धर्मकार्य महत्वपूर्ण है । बस , वह छुटना नही चाहिए । " ही..स..योग [ ५ ] प्रुस्ठ..[ २१७ ]
गुरुपूर्णिमा २०१७ के साधकों के forms online भरे जाए
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।। जय बाबा स्वामी ।। आदरणीय आचार्यगण, आप सभी को बताते हुए ख़ुशी हो रही है की इस बार से हमारा प्रयत्न है की गुरुपूर्णिमा २०१७ के साधकों के forms online भरे जाए । ऐसा करने से forms का लेखा-जोखा रखना आसान होजाएगा । परंतु यह सुविधा शुरू करने के लिए सर्व प्रथम सभी आचार्य एवं संचालकों को UID रेजिस्टर करना अनिवार्य होगा । UID रेजिस्टर करने के लिए कृपया registration.samarpanmeditation.org पर logon करें एवं फ़ोरम भरे । Form भरते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें - 1. अपना पास्पोर्ट size फ़ोटो की एक scan / digital कापी अपने computer पर तय्यार रखें । ध्यान दे की फ़ोटो copy स्पष्ट हो । 2. अपने election ID कार्ड, ड्राइविंग लयसेंस या आधार कार्ड की सम्पूर्ण digital copy भी टायर रखें । ध्यान दे की scan copy स्पष्ट हो जिससे उसपर लोकि हुई जानकारी स्पष्ट रूप से पढ़ी हंस सके । यदि इलेक्शन कार्ड या आधार कार्ड हो तो उसके आगे और पीछे दोनो तरफ़ की जानकारी वाली एक scan कॉपी बनाए । 3. *आचार्यों से विनती है की कृपया रेजिस्ट्रेशन करते समय आपका personal / व्यक्तिगत ईमेल ऐड्रेस एवं मोबाइल न. ह
शरीर का नियंत्रण
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मुझ पर शरीर का नियंत्रण नही है , इसीलिए शरीर के विकार भी नही है , शरीर की समस्याएँ भी नही है । वह सदगुरुरूपी आत्मा जब तक इस शरीर में है , तब तक ही इस शरीर का महत्व है । वह चली जाने के बाद २४ घंटों तक भी इस म्रुत देह को कोई नही रखेगा । युद्ध समाप्ति के बाद जैसे ही श्रीकृष्ण ने रथ का त्याग किया , रथ जलकर नष्ट हो गया । इससे यह संदेश मिलता है की शरीर रूपी रथ पर जबतक आत्मा रहती है , तभीतक रथ चलता है । आत्मा का शरीर रूपी रथ छोड़ने पर शरीर को भी जलाकर नष्ट किया जाता है । हमारे जीवन ही हमारी आत्मा के कारण ही है , नही तो हम मुर्दा कहलाएँगे । जिस शरीर को हम इतना महत्व देते है , वह तो कुछ है ही नही । जो कुछ है ,वह तो आत्मा ही है ।" ही..स..योग..[ ५ ] प्रुस्ठ..[ २३१ ]
मुस्लिम फकीर
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उन मुस्लिम फकीर को मिले भी सालों बीत गए थे लेकिन वे मेरे भीतर इस प्रकार बैठे हुए थे मानो "अभी-अभी ही मैं उनको मिला हूँ।" उनमें एक प्रकार की ताज़गी थी। और उनके आसपास के कचरे से निकलने वाली गुलाब की सुगंध आज भी मुझे याद है। वह उनके आत्मा के सुगंध थी। मैं अकेला ही आगे चल रहा था, आसपास जंगल था। कभी-कभी बीच में गड्ढे भी आरहे थे जिनमें बरसात में ढ़लान से आया हुआ पानी भी जमा हुआ था। और उन गड्ढे में वह पा नी भी जमा हो रहा था जो पहाड़ों से रिसकरआ रहा था। ये छोटे-छोटे तलाव (पोखर) ही बन रहे थे। बड़ा ही सुंदर वातावरण लग रहा था। गड्ढों का पानी एकदम स्वच्छ था।ऐसे ही एक बड़े गड्ढे के पास आकर मैं रुक गया और तभी मुझे विचार आया कि मैं कभी भी अकेला नहीं होता, गुरूशक्तियाँ सदा मेरे साथ होती ही हैं। जब मैं अकेला रहता हूँ तो उनकी उपस्थिति महसूस भी होती है। और जो गुरू के रूप में जो गुरुशक्तियाँ होती हैं, मन में उनके ही विचार आते हैं, उनकी ही याद आती है। और उनकी यादों का भण्डार मेरे भीतर भरा पड़ा है और वह मेरे जीवन की आवश्यकता से अधिक है तो निश्चित ही मेरे लिए नहीं
अपेक्षा
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"अपेक्षा" ~~~~~~~~ सभी पूण्यआत्माओं को मेरा नमस्कार ..... 'अपेक्षा' एक सामान्य सा लगने वाला शब्द हैं लेकिन इस एक शब्द पर गीता जैसा महान ग्रंथ लिखा गया हैं | क्यों ? सोचने का विषय है क्योंकि 'अपेक्षा' सदैव शरीर की ही होती हैं, 'आत्मा' की कभी कोई 'अपेक्षा' ही नहीं होती हैं | मनुष्य का ध्यान आत्मा के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का प्रयास हैं और यह प्रयास वह करता भी हैं | लेकिन जब वही ध्यान-साधना में कोई भी प्रकार की अपेक्षा आ जाती हैं तो समूची साधना ही व्यर्थ हो जाती हैं क्योंकि 'अपेक्षा' की जाती हैं शरीर से और आत्मसाधना की जाती हैं आत्मा से | इसीलिए कहता हूँ कि दिन के केवल ३० मिनट बिना 'अपेक्षा' के नियमित ध्यान करो, जीवन की सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी | मेरा ध्यान लगना चाहिए , यह भी अपेक्षा मत रखो | यह तभी संभव हैं जब आप आपके जीवन के ३० मिनट प्रतिदिन नियमित रूप से मुझे दान करें | दान जो किया जाता हैं , वह वापस कभी नहीं लिया जाता | यानि ३० मिनट दान करने के बाद आप उस ३० मिनट में
परमात्मा की करुणा की शक्तियों पर संपूर्ण विश्वास रखे
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परमात्मा की करुणा की शक्तियों पर संपूर्ण विश्वास रखे ,क्रुपा स्वयं ही घटित हो जाएगी । क्रुपा नही हो रही है यानी या तो आप संपूर्ण समर्पित नही है या वह कार्य होना भविष्य में आपके हित में नही है । अब आप समझ ही गए होंगे की क्रुपा परमात्मा की क्रुपा है । वह परमात्मा ही कर सकता है । ....... मधु चैतन्य अप्रैल २०१६
स्वामीजी का उद्देश विश्व की सभी आत्माओंका आध्यात्मिक विकास तथा उन्हें जीते जी मोक्ष की स्थिती प्रदान करना है
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परम पूज्य स्वामीजी का उद्देश विश्व की सभी आत्माओंका आध्यात्मिक विकास तथा उन्हें जीते जी मोक्ष की स्थिती प्रदान करना है । इसलिए वे इस अमूल्य ज्ञान को विश्वभर में निःशुल्क बाँट रहे है । स्वामीजी स्वयं चैतन्य सागर है किन्तु स्वयं को गुरु ऊर्जा का माध्यम मात्र मानते है ।उनकी इस सौम्यता -सादगी को शत शत नमन *********************************** सहधर्मचारिणि..... गुरुमाँ..... ही..स..योग..[ ५ ] **********************************
स्वामि जी घ्यान की प्रगती के लिये क्या क्या करना चाहीये और क्या क्या नही करना चाहीये? मार्ग दर्शन किजीये
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Most Important Question Asked in GP 2002 You all Must Read this . Q.1. स्वामि जी घ्यान की प्रगती के लिये क्या क्या करना चाहीये और क्या क्या नही करना चाहीये? मार्ग दर्शन किजीये ...... Ans. 1) सुबह जल्द उठ्ना चाहिये और नहा के ध्यान मे बेठ्ना चाहिये क्योकी सुबह के समय कम लोग जल्द उठ्ते है जीससे वातावरन मे वीचार नही या कम होते है तो ध्यान की एक अच्छी अवस्था प्राप्त हो सकती है । सुबह का ध्यान सर्व श्रेस्ट सबसे अच्छा होता है तब वातावरन मे वैचारीक प्रदुषन नही रहेता । 2) ध्यान करते समय आप के शरीर पर कोई रब्बर, लास्टीक, बेल्ट, पर्श इत्यादी नही होना चाहीये खास करके चड्डीयो मे लास्टीक होते है या कोइ गाठ होती है ये आप के ओरा को, आभामंडल को बाधता है एवं वस्त्र बिलकुल ढीले होने चाहिए । 3) आप दुसरे की कोइभी चीज इस्तमाल ना करे आप के घर के सदस्य की भी नही वो चाहे कोइ चीज हो वस्त्र हो चप्पल , टोवेल, बेल्ट, चस्मा, टोपी, घडी, कंगी जीतना आप अपने को शुध्ध पवीत्र रखेंगे उतनाही ध्यान मार्ग के लीये अच्छा रहेगा । 4) अपने पेर के तलवे हमेसा स्वच्छ रखे. ये अत्याधीक पृथ्वी क
आध्यात्मिक उन्नति और गुरुकार्य
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साधकों की आध्यात्मिक उन्नति और गुरुकार्य हेतु पूज्य गुरुदेव ने अपने -आपको मानो झोंक दिया ।हम साधकोंका कर्तव्य बनता है की हम पूज्य गुरुदेव द्वारा हम पर की जा रही मेहनत पर उसी उत्साह ,लगन और समर्पण से अपनी आध्यात्मिक प्रगती पर ही ध्यान केंद्रित करते हुए [ पर पूज्य गुरुदेव के कहे अनुसार अपनी सांसारिक , दैहिक जीम्मेदारीया निभाते हुए ] उनका साथ दे और जीते जी मोक्ष प्राप्त करे । **************** ****************** मधु चैतन्य मार्च २०१४
आज जैन मुनी शिबीर एक महत्वपुणे चिंन्तन हुआ
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आज जैन मुनी शिबीर एक महत्वपुणे चिंन्तन हुआ समेपण ध्यान योग न पद्धती है न सीस्टम है क्योकी इसमे न सांस पर चित रखना है और न भस्तीका का करना है इस मे साधक कुछ कीया ऐसा कुछ भी नही है लेकीन आत्मा को अच्छा लगा यह अनुभुती है और ऐसा लगता है यह केवल और केवल गुरूकृपा मे मीला आत्मा से आत्मा पर कीया गया ऐक पवीत्र संस्कार है । बाबास्वामी ३/३/२०१७
गुरुदक्षिणा
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_*प्रत्येक शिष्य को 'गुरुदक्षिणा' में अपने आपको पूर्ण समर्पित करना होता है और अपने आपको समर्पित करने के लिए कोई शिष्या फूल का, कोई शिष्या फल का, कोई शिष्या जल का, कोई शिष्य आतमधन का सहारा लेता है। यानी कोई पुष्प को गुरुचरण पर रखकर पुष्प को गुरुदक्षिणा में देवदेटे है। तो कोई फल को गुरुदक्षिणा में देकर आत्मसमर्पण कर्तर है। कोई अपनी आत्मा को ही गुरुदक्षिणा में दे देता है। यानी शिष्य अपनी इच्छा अनुसार गुरुदक्षिणा देता है।*_ _* जय बाबा स्वामी*_ 🌺 🙏🏻 🌺 * HSY. 1 pg 352*_
सत्य मूल्य
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🍀 🌹 🍀 🌹 🍀 🌹 🍀 सदगुरु वह रत्नपारखी है जो हमारे जीवनरुपी ' लाल ' का सत्य मूल्य जानता है ।वह हमे स्मरण करवाता है की जीवन अमूल्य है । वह हमारे दोष दूर करने में तथा आत्मा को पवित्र तथा शुध्द करने में सहायता भी करता है ।आवशकता है तो रत्नपारखी रूपी सदगुरु की बातों को समझने की तथा अपने आपको अमूल्य ' लाल ' बनाने की । 🥀 गुरुमाँ... 🥀 म..चैतन्य.. 🥀 सितंबर २०१४ 🙏 🌹 🙏 🌹 🙏 🌹
ध्यान सेंटर
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🍀 ध्यान सेंटर 🍀 समाज में रहते हुए कभी भी मोक्ष प्राप्ति नही हो सकती ।आपको सामूहिकता में जाना पड़ेगा ।कई बार आदमी जब भटकता है न , तो सबसे पहले सेंटर से छूटता है । और इसको बुद्धि तर्क देती है तू घर जाकर ध्यान कर । तेरा ध्यान आजकल अकेले में बहुत अच्छा लगता है । और धीरे -धीरे वो सेंटर से छूटता जाता है । और जैसे सामूहिकता से छूटा तो धीरे -धीरे सभी में से छूट जाता है । इसलिए सेन्टरोन्को कभी मत छोडो । सेंटर पे नि यमित ध्यान करो ही । तो सामूहिक ध्यान ही मोक्षप्राप्ति का सब से आसान मार्ग है जो समाज में रहके प्राप्त किया जा सकता है । 🥀 म..चैतन्य... 🥀 मार्च..२०११ 🌼 🦋 🌼 🦋 🌼 🦋