गुरुचरण

वैसे ही मन ही मन मैंने भी मेरे जीवन के भूतकाल और आसक्त्ति को पुष्प समझकर गुरुदेव के चरणों पर रख दिया और अनायस ही मेरा चित भी उनके श्रीचरणों पर चला गया और मेरी आँखें बंद हो गई , मनो ये गुरुचरण मैं मेरे-मंदिर में भर लेना चाहता हूँ। और जब आँखे खोर्ली तो गुरुदेव मुस्करा रहे थे ।
ही.स.यो.-१

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