अच्छा कार्य करते हैं तो अच्छा कार्य कराने वाली शक्तियॉ हमारे पीछे हो जाती हैं
और अगर हम अच्छा कार्य करते हैं तो अच्छा कार्य कराने वाली शक्तियॉ हमारे
पीछे हो जाती हैं। और अगर हम बुरा कार्य करते हैं तो बुरा कार्य कराने वाली
शक्तियॉ हमारे पीछे हो जाती हैं। ये दोनों शक्तियॉ इस दुनिया में होती
हैं। और जीवन में आप पहला कार्य क्या चुनते हो , इस पर आगे आपके हाथ से
किस तरह के कार्य सम्पन्न होंगे यह निर्भर करता है। अगर आपने
अच्छा कार्य को चुना तो आपके हाथ से अच्छे कार्य होंगे। और अगर आपने जीवन में एक बुरा कार्य चुना तो आपके हाथ से बुरे कार्य होते चले जाएँगे।जीवन में पहले कार्य का चुनाव आप स्वयं करते हो और बाद के कार्य आप के हाथ से हो जाते है। केवल प्रथम कार्य चुनने का अधिकार मनुष्य का है। बाद में तो वह उन शक्तियों का माध्यम बनकर रह जाता है। इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य बड़ा (बहुत) सोच-समझकर प्रारंभ करना चाहिए क्योंकि यह प्रथम कार्य ही मनुष्य के हाथ में होता है। मनुष्य भी इन दोनों शक्तियों के बीच ही होता है। वह जीवन में किए गए कर्मों के कारण ही अच्छा या बुरा बनता है। प्रथम कार्य मनुष्य के जीवन का निर्धारण करता है। मनुष्य के कर्म होते हैं संस्कारों के कारण और संगत मिलती है पिछले जन्म के कर्मों के कारण।
यानी घूम-फिरकर कर्म के ऊपर ही बात आ जाती है। उस मुस्लिम फकीर ने केवल यह एक
बात जीवन में याद रखने के लिए कही थी कि पहला कर्म क्या करना है, इसका अधिकार
तुम्हारा है क्योंकि आगे के कर्म तो शक्तियाँ स्वयं ही करवा लेंगी। और प्रथम कर्म तुम क्या
करते हो, इस पर ही निर्भर होगा कि तुम्हारे पीछे कैसी शक्तियाँ कार्यरत होंगी। अच्छी या बुरी, शक्तियाँ दोनों ही तैयार रहती हैं; आप आपके कर्म के द्वारा उन्हें आमंत्रित करते हो।..
हि.स.यो-४
पुष्ट-६८
अच्छा कार्य को चुना तो आपके हाथ से अच्छे कार्य होंगे। और अगर आपने जीवन में एक बुरा कार्य चुना तो आपके हाथ से बुरे कार्य होते चले जाएँगे।जीवन में पहले कार्य का चुनाव आप स्वयं करते हो और बाद के कार्य आप के हाथ से हो जाते है। केवल प्रथम कार्य चुनने का अधिकार मनुष्य का है। बाद में तो वह उन शक्तियों का माध्यम बनकर रह जाता है। इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य बड़ा (बहुत) सोच-समझकर प्रारंभ करना चाहिए क्योंकि यह प्रथम कार्य ही मनुष्य के हाथ में होता है। मनुष्य भी इन दोनों शक्तियों के बीच ही होता है। वह जीवन में किए गए कर्मों के कारण ही अच्छा या बुरा बनता है। प्रथम कार्य मनुष्य के जीवन का निर्धारण करता है। मनुष्य के कर्म होते हैं संस्कारों के कारण और संगत मिलती है पिछले जन्म के कर्मों के कारण।
यानी घूम-फिरकर कर्म के ऊपर ही बात आ जाती है। उस मुस्लिम फकीर ने केवल यह एक
बात जीवन में याद रखने के लिए कही थी कि पहला कर्म क्या करना है, इसका अधिकार
तुम्हारा है क्योंकि आगे के कर्म तो शक्तियाँ स्वयं ही करवा लेंगी। और प्रथम कर्म तुम क्या
करते हो, इस पर ही निर्भर होगा कि तुम्हारे पीछे कैसी शक्तियाँ कार्यरत होंगी। अच्छी या बुरी, शक्तियाँ दोनों ही तैयार रहती हैं; आप आपके कर्म के द्वारा उन्हें आमंत्रित करते हो।..
हि.स.यो-४
पुष्ट-६८
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