समर्पण में परमेश्वर को विश्वचेतना के रूप में जाना है

समर्पण में परमेश्वर को विश्वचेतना के रूप में जाना है । निराकार के स्वरूप को बताया गया है । सदगुरु के सानिध्य में उस परमेश्वर की अनुभूति प्राप्त की है । फिर निराकार की अनुभूति को प्राप्त करने के बाद मूर्ति की क्या आवश्यकता है ? इसका क्या औचित्य है ?

आध्यात्मिक सत्य 

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