प्रकृति का अपना एक नियम है

मैंन उसे समझाया, " प्रकृति का अपना एक नियम है - एक नई कोंपल फूटती है, बड़ी होकर पत्ता बनती है और बाद में एक पीला पत्ता बनकर गिर जाती है फिर उसी माटी में मिल जाती है जिस माटी से वह पैदा हुई थी । इसी प्रकृति के चक्र के तहत हमारा जन्म होता है और मृत्यु होती है। अब हो सकता है, मैं तुझे जीवन में कभी नहीं मिलूँ । लेकिन जो क्षण तेरे साथ बिताए हैं, वे स्मृतियाँ तो सदैव तेरे साथ रहेगीं ही ; उन्हें सँभालकर रखना। और आज मैं कोई देहत्याग थोड़े ही कर रहा हू्ँ ? स्थानत्याग कर रहा हूँ और स्थान का मेरे जीवन में कोई महत्त्व नहीं है। मैंने जीवन में समय - समय पर कई स्थान बदले हैं। मेरा स्थान की ओर उतना ध्यान नहीं होता क्योंकि मैं जीवन में मेरे गुरु का ज्ञान बाँटने निकला हूँ। वे जहाँ ले जाते हैं, जाता हूँ। वे जहाँ रखते हैं, रहता हूँ। वे जहाँ भेजते हैं,
वहाँ जाता हूँ। मेरा अपना न तो जीवन है और न ही स्थान ! अब कोई और एक सुमा मेरे जीवन में आने वाला होगा, कोई और स्थान मेरे जीवन में आने वाला होगा । रही बात गुरु के शरीर के मोह की तो वह तो कभी न समाप्त होने वला है। गुरु के शरीर का अपना एक आकर्षण होता है और उसका सान्निध्य जितना मिले, उतना कम ही लगता है।
हि. स.यो-४

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