परमात्मा मिल भी गया तो उस परमात्मा से क्या माँगना है
परमात्मा मिल भी गया तो उस परमात्मा से क्या माँगना है, वह तो आना चाहिए !
वे ऐसे लोग हैं जो, जो माँगना है , वह छोड़कर सब माँगगे जबकि मनुष्यजीवन
में समस्याएँ आती हैं और जाती हैं | हम कितनी सामूहिकता में हैं , इस पर ही
यब निर्भर करता है कि उन समस्याओं का प्रभाव हमारे ऊपर कितना पड़ेगा |
समाज में मनुष्यों का सारा समय और सारे प्रयत्न अपनी समस्याओं को हल करने
में ही जाते हैं | वह यह भी भूल जाता है कि हमने जन्म क्यों लिया है | और
भौतिक जगत की इच्छाओं का तो कोई अन्त ही नहीं है | एक इच्छा
के पूर्ण होने पर वह नई , दूसरी इच्छा को जन्म देती है और यह सिलसिला चलते
रहता है और इसमें ही सारा जीवन चला जाता है | यह सारा ज्ञान होने के लिए
आवश्यक है कि आत्मा हमारी गुरु हो | मनुष्य के साथ सदैव केवल आत्मा होती है
और उसकी संगत में ही वह बोता है | मनुष्य की प्रगति तभी हो सकती है, जब
उसकी आत्मा की प्रगति हो, उसकी आत्मा सशक्त हो | तब वह आत्मा ही उसे सही
मार्ग बताएगी | हि.स.यो-४| पृ-३४७
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