अपेक्षा

"अपेक्षा"
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सभी पूण्यआत्माओं को मेरा नमस्कार .....

'अपेक्षा' एक सामान्य सा लगने वाला शब्द हैं लेकिन इस एक शब्द पर गीता जैसा महान ग्रंथ लिखा गया हैं | क्यों ? सोचने का विषय है क्योंकि 'अपेक्षा' सदैव शरीर की ही होती हैं, 'आत्मा' की कभी कोई 'अपेक्षा' ही नहीं होती हैं | मनुष्य का ध्यान आत्मा के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का प्रयास हैं और यह प्रयास वह करता भी हैं | लेकिन जब वही ध्यान-साधना में कोई भी प्रकार की अपेक्षा आ जाती हैं तो समूची साधना ही व्यर्थ हो जाती हैं क्योंकि 'अपेक्षा' की जाती हैं शरीर से और आत्मसाधना की जाती हैं आत्मा से | इसीलिए कहता हूँ कि दिन के केवल ३० मिनट बिना 'अपेक्षा' के नियमित ध्यान करो, जीवन की सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी | मेरा ध्यान लगना चाहिए , यह भी अपेक्षा मत रखो |

यह तभी संभव हैं जब आप आपके जीवन के ३० मिनट प्रतिदिन नियमित रूप से मुझे दान करें | दान जो किया जाता हैं , वह वापस कभी नहीं लिया जाता | यानि ३० मिनट दान करने के बाद आप उस ३० मिनट में रोज कुछ भी नहीं कर पाएँगे | उस ३० मिनट में आपको आपके जीवन की समस्याओं पर विचार करने का भी हक़ नहीं हैं | क्योंकि वह ३० मिनट मेरे हैं और मैं विचार नहीं करता हूँ | अगर ऐसा आप प्रमाणिकता और भाव से करें तो ध्यान स्वयं ही लग जाएगा |

लिंग का एहसास मनुष्य को सब से अधिक होता हैं | दान किए गए ३० मिनट आप यह भी भूल जाओ की आप पुरुष हो या स्त्री हो | और यह तभी हो सकेगा जब आप ३० मिनट दान करने का संकल्प करें | आपका सारा जिवन ही बदल जाएगा | जिवन में पूर्ण समाधान का अनुभव होगा | जिवन में पाने के लिए ही कुछ बाकि नहीं रहा यह अनुभव होगा | ३० मिनट आप मेरी स्थिति को अनुभव करेंगे | अब यह बताओ, आप यह बिना अपेक्षा ध्यान का संकल्प कब ले रहें हो ? आप सभी को खूब-खूब आशीर्वाद |
-आपका
बाबा स्वामी
सदगुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी..

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