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Showing posts from June, 2019

गुरुपूर्णिमा

•• संपूर्ण सालभर में_, मैं तो गुरुपूर्णिमा के दिन को ही याद रखता हूँ , जब मेरे सभी गुरु मेरे साथ होते हैं। - उन सभी की सकारात्मक ऊर्जा मुझे प्राप्त होती है_ - उनके 'आशीर्वाद' मुझे प्राप्त होते हैं। •• हर साल नया 'गुरुकार्य' मिलता है। और वह गुरुकार्य करते समय मैं अपने आपको गुरुओं के 'सानिध्य' मैं पाता हूँ। और गुरुकार्य करने में कब साल चला गया इसका पता भी नहीं चलता है। •• और दूसरी 'गुरुपूर्णिमा' आ जाती है। •• और इस प्रकार शरीर से 'गुरुपूर्णिमा' का उत्सव एक ही दिन का होता है , लेकिन मैं 'चित' से तो सालभर 'गुरुपूर्णिमा' का उत्सव ही मनाते रहता हूँ। •• और यह हो पाता है 'चित' के कारण। •• तो इसी मेरे अनुभव से कह सकता हूँ की 'गुरुपूर्णिमा का उत्सव' एक दिन का शरीर का , और सालभर का 'चित्त' का उत्सव होता है। और इसलिए सालभर ही चित में एक उत्सव का वातावरण रहता है। •• आप जिस साल 'गुरुपूर्णिमा' के उत्सव में शामिल हुए , वह साल का अनुभव आप याद करो तो मेरी बात आपके समझ में आ जाएगी। क्योंकि उस उत्सव का प्रभाव स

सद्गुरु का सानिध्य

" सद्गुरु का सानिध्य सारे विश्व में दुर्लभ होता है, क्योंकि मनुष्य के जन्म से ही उसका चित्त बाहर की ही यात्रा करता है, दुसरो को जानने  का प्रयास करता है। लेकिन अपने आपको जानने का प्रयास इसलिए नही कर पाता क्योंकि मनुष्य का चित्त अंतर्मुखी होता ही नही है। सारे विश्व मे केवल इनके सानिध्य में ही मनुष्य का चित्त अंतर्मुखी होता है। ये 'युग पुरुष' होते है, इनके युग मे अन्य कोई माध्यम नही होता है। ये दिखने मे सामान्य मनुष्य जैसे ही होते है, बातचीत भी सामान्य मनुष्य जैसी हि करते हैं। ये बाहर से सामान्य व भीतर से असामान्य होते है। उनका शरीर असामान्य नही होता , उनके भीतर से बहनेवाला *"परमात्मा का चैतन्य"* असामान्य होता है। श्री शिवकृपानंद स्वामीजी, सत्य का आविष्कार, पेज - 49

सदगुरु वह ग्वाला है

सदगुरु वह ग्वाला है जो अपनी गायों को तेज दौडने भी नहीं देता है या धिरे-धीरे चले, तो डंडा भी मारता हैI इधर - उधर चले तो जाने भी नहीं देता है, पर बीच की सडक पर चलाता है| प्रत्येक समय उसको सांभालता है , उसपर उसका पुरा ध्यान रहता है| मधुचैतन्य जनवरी २००४/१७

आभारपत्र

🌼 *जय बाबा स्वामी* 🌼           💗 *आभारपत्र* 💗 *दिनांक : 28 जून -2019 ,शुक्रवार के शुभदिन पर सौराष्ट्र समर्पण आश्रमकी पावन भूमि पर परम पूज्य गुरुदेव के करकमलों से श्री गुरुशक्तिधाम के खातमूहर्त हुआ ।* *इस ऐतिहासिक दिव्य घटना के साक्षी बनने का सुनहरा अवसर कई भाग्यवान एवमं पुण्यशाली आत्माओं को गुरुकृपा में प्राप्त हुआ ।* *पूज्य गुरुदेवने आशीर्वचनके माध्यम से श्री गुरुशक्तिधाम के निर्माण बारेमें समजाया  और श्री गुरुशक्तिधाम जल्द से जल्द हो ऐसी प्रार्थनाकी बादमे आश्रमकी बड़ी टेकरी पर सभी साधको को बुलाकर श्री गुरुशक्तिधाम के खात मूर्हत किया। हमारे लिए चैतन्यपूर्ण इस समग्र घटनाएं  अविस्मरणीय बन गई।* 💐💐💐💐💐💐💐💐💐 *उनके लिए हम सभी साधकों परम पूज्य गुरुदेवका ह्र्दयसे खुब खुब आभारी हैं।* 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 *दूसरा , आप  सभी बहुत बड़ी समुहिकतामे इस कार्यक्रममें शांति और शिस्तसे उपस्थित रहे, आप सभी  पुण्यात्माओं का ह्र्दयसे खूब खूब आभार ।* *इस कार्यक्रममे जिन जिन लोगोने आयोजन एवमं सुंदर व्यवस्थाकी उन सभी को ह्र्दयसे खूब खूब आभार।* *श्री गुरुशक्तिधाम निर्माण कार्यमे सौराष्ट्र के

संदेशवाहक

     " 'संदेशवाहक' कुछ मनुष्य को पिछले जन्म में दिए आश्वासन के कारण देह धारण करता है और वह लोगो की आंखों से पहचान लेता है। नया जन्म, नया शरीर धारण किया तो भी 'आंखे' तो वही रहती हैं। 'आंखे' आत्मा की पहचान कराती हैं। आंखों के कारण ही लोग अपने संदेश वाहक को भी पहचान लेते है। एक क्षण देखने के बाद ही हमें समज आता है, जिसे मैं जन्मो से खोज रहा था, वह यही है। आंखे मनुष्य की कभी नही बदलती हैं। आंखों से भीतर बसी 'आत्मा' का पता चलता है। आंखों से आत्मा को पहचाना जा सकता है। संदेशवाहक की आंखों में प्रत्येक मनुष्य के प्रति 'करुणा' का एक दिव्य भाव सदैव होता ही है।" श्री शिवकृपानंद स्वामीजी, "सत्य का आविष्कार", पेज - 64

२०१७ की सुबह दांडी आश्रम मे नये साल के महाध्यान के परम पुज्य स्वामीजी के प्रवचन के कुछ अंश :

🌹जय बाबा स्वामी🌹 २०१७ की सुबह दांडी आश्रम मे नये साल के महाध्यान के परम पुज्य स्वामीजी के प्रवचन के कुछ अंश : ⚫ नियमित ध्यान से अपना आभामंडल का कमरा बनाओ। ⚫ संयम का दुसरा नाम ही समर्पण है। संयम कर सकते है वही समर्पण कर सकते है। ⚫ संयम ही आत्मा की पूजा है। संयम  शरीर, मन, बुध्दि और चित्त पर क्रमशः होता है। ⚫ नियमित आधा घंटा अकेले मे और आधा घंटा सामुहिकता मे ध्यान करो। ⚫ प्रयत्नों के बाद भी समर्पण क्यों नहीं हो रहा है? ⚫ समर्पण करने के लिए मेरा अनुकरण करो। गहन ध्यान के ४५ दिन अनुकरण का नाटक करो, (१) किसीके प्रति दुर्भावना मत रखो। (२) कुछ भी पाने की इच्छा मत रखो। (३) अपेक्षा के साथ ध्यान मत करो। (४) ध्यान लगने की भी अपेक्षा मत करो l (५) नियमित ध्यान करो, खाना नही खाया चलेगा, नहाया नही तो चलेगा, कम सोया तो भी चलेगा लेकिन ध्यान में नियमित रहो। (६) जो कुछ आपके पास है उसे बाटो। (७) विश्व के प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करने का नाटक ही करो, धीरे धीरे सही में प्रेम हो जायेगा । ✍..सदगुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी

सद्गुरु

" सद्गुरु का सानिध्य सारे विश्व में दुर्लभ होता है, क्योंकि मनुष्य के जन्म से ही उसका चित्त बाहर की ही यात्रा करता है, दुसरो को जानने  का प्रयास करता है। लेकिन अपने आपको जानने का प्रयास इसलिए नही कर पाता क्योंकि मनुष्य का चित्त अंतर्मुखी होता ही नही है। सारे विश्व मे केवल इनके सानिध्य में ही मनुष्य का चित्त अंतर्मुखी होता है। ये 'युग पुरुष' होते है, इनके युग मे अन्य कोई माध्यम नही होता है। ये दिखने मे सामान्य मनुष्य जैसे ही होते है, बातचीत भी सामान्य मनुष्य जैसी हि करते हैं। ये बाहर से सामान्य व भीतर से असामान्य होते है। उनका शरीर असामान्य नही होता , उनके भीतर से बहनेवाला *"परमात्मा का चैतन्य"* असामान्य होता है। श्री शिवकृपानंद स्वामीजी, सत्य का आविष्कार, पेज - 49

हिमलाय में कुछ गुरुओ के आभामंडल

"हिमलाय में कुछ गुरुओ के 'आभामंडल' इतने शशक्त होते थे कि उनके आपका के पेड़ पौधे भी उनके साथ समरस हो जाते थे। जब उनको आवश्यकता हो, 'पत्ते' गिर जाते थे; उनको आवश्यकता हो तब पेड़ भी स्वयं ही 'फल' गिरा देते थे। उनको मैंने कभी फलो कि तोड़ते नही देखा। वे कहते थे , " मेरी जरूरत पेड़-पौधे भी समजते हैं। जब हम प्रकृति के साथ समरस हो जाते है, तो प्रकृति भी हमारी सारी ही आवश्यकताएं पूर्ण करती है।" और इस बात पर उनका पूर्ण विश्वास था। श्री शिवकृपानंद स्वामीजी, सत्य का आविष्कार, पेज - 48

श्री गुरुशक्तिधाम

विश्व के कोने कोने में 'श्री गुरुशक्तिधाम' की स्थापना की जा रही है । श्री मंगलमूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की जा रही है । परमात्मा एक ही है और वो सभी में विद्यमान है , लेकिन जब तक हम अंतर्मुखी नही होते , हमें उसका अनुभव नही होता है । यह सभी श्री मंगलमूर्तियों के सानिध्य में जो भी आएगा , वह एक अंतरमुखी अवस्था को प्राप्त कर आत्मसाक्षात्कार पा सकता है । ~सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी    १३ - ०२ - २०१८

सीढी पर बैठे हुये है ।

आपने ध्यान दिया या नही दिया मुझे पता नही है । लेकीन ५०/६० साल तक सन्यास लिये भी अभी भटक रहे है ।अभीतक भी पहुचे नही है । इसलीये आप ध्यान दे जहॉ मेरा जाना होता  है । वहॉ के संन्यासी मुनी साधु मुझे मीलने आते है । वास्तव मे वह मुझे मीलने नही आते खोजने को आते है । जो खोजने नीकले थे ।दुसरी मैने आपको कभी कहॉ क्या की मुझे कीसी भी संत से मिलना है । कभी भी नही क्योकी हिमालय के गुरूऔ ने इतना दिया है । जो बांटा नही जा पा रहा है । इसीलीये मंगलमुती्यो का निमाेण करना पड रहा है ।यह सब गुरूकृपा ही है ।अन्यथा मै तो आपके जैसा ही गृहस्थ हु।                        आपका बाबा स्वामी                           २३/६/२०१९                           राजकोट

सदगुरु

        ये गुरु गहरे कुएँ जैसे होते है अगर आपको प्यास लगी है और आपको पानी चाहिए तो "आपको " ही रस्सी और बाल्टी लेकर उस गहरे कुएँ से पानी निकालना होगा और प्रयत्न नही किया तो पानी दिखेगा पर मिलेगा नही । इस मार्ग में साधक की इच्छाशक्ति ही महत्त्वपूर्ण होती है , आपकी कितनी तीव्र इच्छा है , वह महतवपूर्ण होता है । ये गुरु अपनी ही मस्ती में मस्त रहते है ।                                   *ही.का.स.योग.*                                        *4/234*

गुरु का ऋण

"गुरु के ऋण से.., ना तो कोई मुक्त हुआ है.., और ना होगा..। जिस प्रकार माँ के ऋण से कोई मुक्त  नहीं है सकता...ऐसे ही.., गुरु के ऋण से भी कोई.., मुक्त नहीं हो सकता है। पुत्र कभी मां  को छोड़ सकता है.., पर- मां कभी भी पुत्र को नहीं छोड़ सकती.. ठीक इसी प्रकार..., शिष्य.., गुरु को छोड़ सकता है..., पर गुरु शिष्य को.., कभी नहीं छोड़ सकता है"।। ~सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी    समर्पण ध्यान योग

गुरुपूर्णिमा महाशिबीर 2011

पूज्य गुरुदेव का प्रवचन: 14 जुलाई 2011 📍 पिछले12 सालों में आपने जो जो मांगा , सब मिला है। तृप्त हो गये। अब आन्तरिक विकास की आवश्यकता है।आत्मा के विकास की, आत्मा के प्रगति की आवश्यकता है। ‼फॉर्म भरते समय बराबर आपका लक्ष्य निश्चित हो जाना चाहिए कि आपको गुरुपूर्णिमा में जाना है । 📍जितना उत्साह फॉर्म भरने में है, उतना उत्साह गुरुपौर्णिमा में जाने का भी होना चाहिए । ‼ अपने स्थान पर पहुंचने के बाद फिर कोई मायना नहीं रहता कि आप कहां से आये, कौन से रास्ते से आये। 📍 यहां पहुंचने के बाद शरीर को धन्यवाद तो दे, चित् को पवित्र करें, और अपने आपको क्षमा करें। ‼कोई भी धार्मिक कार्य में चित् शुद्ध किए बिना वह कार्य सफल नहीं होता। 📍 अपने चित् में 3 दिनों तक कोई नहीं होना चाहिए। ‼ गुरुशक्तियां दया का सागर है, वे आपको क्षमा करेंगे ही। 📍 क्षमा मांग कर अपने आप को शुद्ध करो , अपने आप को पवित्र करो। ‼क्षमा मांगने का अधिकार उसी व्यक्ति को है जो क्षमा कर सके। 📍अनुभूति वह मार्ग है जिससे मोक्ष तक पहुंचा जा सकता है। ‼आपकी एकाग्रता एक जगह रखो, वह लक्ष्य है मोक्ष। 📍अगर आपको मोक्ष पाना है तो आपको

ब्रह्मनाद

प्रकृति का भी एक नाद है। उस नाद को जानना होगा, उसे सुनना होगा। जब वह सुनायी देना चालू हो जाए तो वही नाद भीतर भी बजना प्रारम्भ होता है। जब आपका चित भीतर होता है तो वह नाद निकलना प्रारम्भ हो जाता है। उस नाद को ब्रह्मनाद कहते है। बाबा स्वामी HSY 1 pg 155

साकार से निराकार

परमात्मा  निराकार  है । उसका  कोई  रूप  नही  है । पर  "निराकार " कॉलेज  का  ज्ञान  है । वहाँ   तक  पहुँचने  के  लिए  "मूर्तिपूजा '' के  प्रार्थमिक  ज्ञान  की  कक्षा  से  जाना  पड़ता  है। साकार  से  निराकार की आध्यात्मिक यात्रा  होती  है। बाबा स्वामी आध्यात्मिक सत्य 

आत्मपरीक्षण

     केवल आध्यात्मिक प्रगति की बात इसलिए कर रहां हूँ ,क्योकि एक योगी के सामने तो "समृद्धि "हाथ जोड़े सदैव खड़ी ही रहती है । योगी की आवश्यकता के पूर्व "समृद्धि "आवश्यकता को पूर्ण करती है । तो अभी एक लंबा ध्यान साधना का सफर आपको करना बाकी है । यह जानकर सफर पर चल पड़िए । जीवन ' के हर मोड़ पर आप मुझे अपने भीतर ही पायेगे । क्योकि अब "मै "मेरा न रहा हूँ । आपका सर्वस्व हो हो चुका हूँ । यह मै अनुभव कर रहा हूँ । आप भी कभी अनुभव करके देखे । इसी आशीर्वाद के साथ                आपका               बाबा स्वामी

दीक्षा का महत्व

1. गुरुदीक्षा सामान्य कर्मकांड नहीं, एक सूक्ष्म आध्यात्मिक संस्कार है उसके अंतर्गत शिष्य अपनी श्रद्धा और संकल्प के सहारे गुरु से समर्थ व्यक्तित्व के साथ जुड़ता है। कर्मकांड उस सूक्ष्म प्रक्रिया का एक अंग है। 2. दीक्षा में समर्थ गुरु के विकसित प्राण का एक अंश शिष्य के अंदर स्थापित करता है। यह कार्य समर्थ गुरु ही कर सकता है। उन्ही प्राणानुदान दीक्षा लेने वालों को मिलता है, कर्मकांड करानेवाला स्वयंसेवक मात्र होता है। 3. व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से आगे बढ़ता है यह उसी प्रकार ठीक है ऐसे पौधा अपनी ही जड़ो से जीवित रहता है और बढ़ता है, किन्तु यह भी सत्य है कि वृक्ष की टहनी प्राणानुदान के रूप में स्थापित की जाती है। साधक इसका अनुपम लाभ उठा सकते है उदाहरण स्वरूप एक खट्टे आम के पेड़ के ऊपर जब मीठे आम की टहनी लगाई जाती है, तब आगे चलकर यही खट्टे आम के पेड़ के ऊपर मीठे आम लगना शुरू हो जाते है। इसी तरह शिष्य एक खट्टे आम का पेड़ है। लेकिन जब गुरु अपने मीठे आम की टहनी इसके ऊपर लगा देता है तब वह वृक्ष मीठे आम देना शुरू कर देता है। एक बड़े जहाज़ के साथ हम अपनी छोटी नॉव की रस्सी बांध देते है। तब छोटी नॉव को भी जह

आत्मा को सशक्त कैसे करें?

आत्मा को सशक्त कैसे करें? १) नियमित ध्यान करके उसके सान्निध्य में रहे। २) आत्मा का सदैव एहसास करें। ३) ऐसा कार्य नियमित करें जिससे आत्मा प्रसन्न होती हो। ४) अपनी आत्मा को प्रसन्नता मिले केवल और केवल इसके लिए 'दान' करें। ५) सदैव सभी के कल्याण व शांति के लिए मन से प्रार्थना करें। *मधुचैतन्य मई २०१९/४*

लंडन में घटी एक अद्भुत घटना - 2006

ये अद्भुत घटना हाल हि में लंडन में घटित हुयी l पूज्य स्वामीजी ने वीनस टीवी लंडन पर एक अद्भुत इंटरव्यू दिया इसका उदेश्य यह था की विश्व के सारे लोगो को ये ख्याल आ सके की ध्यान करने से चित्त कितना शक्तिशाली बन सकता है l वीनस टीवी द्वारा स्वामीजी को ऐसा वक़्त दिया गया जिस वक़्त टीवी देखने वाले बहोत कम हो ( वो उन लोगो के बिज़नेस का ऑफ टाइम कहलाता है ) l पूज्य स्वामीजी टीवी पर 20.09.2006 के दिन उपस्थित हुवे l एक दिन पहले टीवी पर बताया गया था की पुरे विश्व से कोइ भी व्यक्ति स्टूडियो पर उस समय के दौरान फोन करके स्वामीजी को प्रश्न पूछ पाएंगे और एक अद्भुत और अद्वितीय घटना ने आकर लिया l इन दो घंटो के दौरान अनेको लोगो ने ऑनलाइन प्रश्न पूछे और समस्या बताई, और उन लोगो की अंगत बाते स्वामीजी ने उसी मिनिट फोन पर बताई और समाधान भी बताया l उसमे से काफ़ी लोगो ने अपने नाम भी नहीं बताये थे l इंटरव्यू  लेने वाले श्री अनवर राजा जब ये देख कर दिग्मूढ़ हो गए तब पूज्य स्वामीजी ने अत्यंत सरलता से बताया की जैसे हर व्यक्ति के अंगूठे की छाप अलग होती है वैसे हर व्यक्ति का ओरा यानि आभामंडल अलग होता है, और उसका अध्ययन करने

संत ज्ञानेश्वर

" संत ज्ञानेश्वर ने कहा - आठ सौ साल के बाद आत्मज्ञान का 🌄सूर्योदय होगा । 🌀👍🌀👍🌀 उन्होनें सिर्फ कहा ही नहीं , उन्होनें संकल्प भी किया कि सूर्योदय हो -🌄 जब कुंडलिनी जागृति का कार्य सामूहिकता में हो सके । 💧✨💧✨💧 एक आत्माने संकल्प को लेकर इस दिशा में अपना प्रवास शुरू किया । 👉❄🎆❄ उसने अपना ज्ञान अपने शिष्य को दिया - उसने अपने शिष्य को दिया । ✨8⃣0⃣0⃣✨ शिष्य से शिष्य - ऐसे आठ सौ वर्षों तक चलता रहा । 💧❄💧❄💧 आत्मा इच्छाशक्ति के साथ बार बार पुनर्जन्म ले रही थी और संकल्प साकार करने के सही समय का इंतजार कर रही थी । 👍❄🌀💧✨ लेकिन संकल्प को लिए सिर्फ इच्छाशक्ति ही पर्याप्त नहीं थी । आवश्यकता थी की उसे क्रियाशक्ति का साथ मिले । 💧🔹💧🔹💧 इसके बीच के समय में आत्मा ने अलग-अलग जाति, धर्म, रंग और स्थानों पर जन्म लिया । 👉👣🌟👣🌟👣 वह उस उषाकाल का इंतज़ार कर रही थी जब इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति का मिलन हो । वह आत्मा नवयुग के सूर्योदय का इंतज़ार कर रही थी क्योंकि शिव का शक्ति के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं है । 🌟🌀👣🌟👣🌀🌟 इच्छाशक्ति और क्रियाश

जिंदगी फूल भी है कांटे भी

जिंदगी फूल भी है कांटे भी। जिंदगी गीत भी है आहे भी। उस दिन मैं बहोत खुस थी। सुबह ही मा(सास) ने कहा,  पास की प्राथमिक शाला में वॉक-इन-इंटरव्यू है। बेटी साक्षात्कार केलिए जा रही है, तुम जाना चाहती हो तो जा सकती हो। पर अनुराग को कौन संभालेगा? अभी तो वाज दो-सवा  दो महीने का है। मैन पूछा तो हस्ते हुए उन्होंने कहा। अरे साक्षात्कार तो दो। यदि चुन ली गई तो देखना स्कूल का समय क्या है कितना  है? फिर सहज रूप से संभव हो तो करना वरना मत करना। चार पांच घण्टे तो हैम भी संभाल लेंगे। नोकरी करू या न करू , मेरा कोई निश्चित विचार या योजना नही थी, किन्तु मेरी सासु मा ने मेरे विषय मे सोचा, अपनी बेटी में और मेरे में कोई फर्क नही किया यह मेरे लिए विशेष बात थी।    अनुराग की तेल मालिश और नहलाना भी बाकी था।  झटपट  थोड़ा तिल का तेल लिया, हल्का गरम किया और गैस पर दो पतीले  पानी गरम  करने के लिए रखे। चादर बिछा कर बैठ गई, फिरयाद आया कमरे का दरवाजा  खुला था, उसे बंद किया। अनुराग को लेकर सामने पैर फैलाकर बैठ गई, पैरो पर अनुराग को लेटाया, उसके कपड़े उतारे और  हल्के गरम तेल में हाथ डाला थोड़ा सा तेल पहले  धरती माँ क