दीक्षा का महत्व
1. गुरुदीक्षा सामान्य कर्मकांड नहीं, एक सूक्ष्म आध्यात्मिक संस्कार है उसके अंतर्गत शिष्य अपनी श्रद्धा और संकल्प के सहारे गुरु से समर्थ व्यक्तित्व के साथ जुड़ता है। कर्मकांड उस सूक्ष्म प्रक्रिया का एक अंग है।
2. दीक्षा में समर्थ गुरु के विकसित प्राण का एक अंश शिष्य के अंदर स्थापित करता है। यह कार्य समर्थ गुरु ही कर सकता है। उन्ही प्राणानुदान दीक्षा लेने वालों को मिलता है, कर्मकांड करानेवाला स्वयंसेवक मात्र होता है।
3. व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से आगे बढ़ता है यह उसी प्रकार ठीक है ऐसे पौधा अपनी ही जड़ो से जीवित रहता है और बढ़ता है, किन्तु यह भी सत्य है कि वृक्ष की टहनी प्राणानुदान के रूप में स्थापित की जाती है। साधक इसका अनुपम लाभ उठा सकते है उदाहरण स्वरूप एक खट्टे आम के पेड़ के ऊपर जब मीठे आम की टहनी लगाई जाती है, तब आगे चलकर यही खट्टे आम के पेड़ के ऊपर मीठे आम लगना शुरू हो जाते है। इसी तरह शिष्य एक खट्टे आम का पेड़ है। लेकिन जब गुरु अपने मीठे आम की टहनी इसके ऊपर लगा देता है तब वह वृक्ष मीठे आम देना शुरू कर देता है। एक बड़े जहाज़ के साथ हम अपनी छोटी नॉव की रस्सी बांध देते है। तब छोटी नॉव को भी जहाज़ की गति पाई जाती है। इसी तरह जब हम गुरुरूपी बड़े जहाज़ के साथ हम समर्पण रूपी रस्सी बांध लेते हैं तब शिष्य को भी गुरुरूपी बड़े जहाज़ की गति प्राप्त हो जाती है।
4. पात्रता (सींहनी का दूध) कुछ भी प्राप्त करने के लिए पात्रता जरूरी है जिस तरह सिंहनी का दूध प्राप्त करने के लिए सोने का पात्र चाहिए। इस तरह हमे भी गुरुशक्ति का प्रसाद प्राप्त करना है तो अपनी पात्रता बढ़ानी चाहिए। पात्रता बढ़ाने के लिए सबसे पहला नियम: हमे नियमित ध्यान करना चाहिए। ध्यान करते समय अपना चित्त गुरुचरण पर रखना चाहिए। गुरुचरण पे चित रखने का मतलब होता है गुरु के ऊपर पूर्ण विश्वास, गुरु के प्रति समर्पण भाव, शिष्य अगर अपना समर्पण भाव बढ़ा लेता है तो गुरुशक्तिया अपने आप प्रवाहित हो जाती है। जिस तरह एकलव्य की कहानी हम सब को मालूम है जिस के गुरु द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था फिर उसने हार नहीं मानी और गुरु द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और मूर्ति को ही गुरु मानकर उनके सानिध्य में धनुर्विद्या प्राप्त कर ली। हम भी अगर इस तरह समर्पित हो सकते है तो हम भी गुरु की चेतना प्राप्त कर सकते है। गुरुपूर्णिमा नजदीक आ रही है, जो भी साधक गुरुदीक्षा प्राप्त करने वाले हैं उसके लिए यह संदेश है। आज ही हम इसकी तैयारी शुरू करें हररोज़ ध्यान से गुरुदीक्षा के योग्य बनने के लिए गुरुदेव से प्राथना करे, *"गुरुदेव,* *कृपया हमें गुरुदीक्षा के योग्य बनाये, हम शरीरभाव से* **आत्मभाव तक की यात्रा कर पाए ऐसी करुणा और कृपा बरसाए।"*
गुरु द्रोणाचार्य पांडव के लिए आदर्श विधा का स्त्रोत और कौरव के लिए सामान्य शिक्षक।
गुरुकृपा मैं आप सब गुरुदीक्षा के योग्य बने यही गुरुचरण प्राथना।
*रामभाई पटेल*
*समर्पण आश्रम, दांडी*
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