ध्यान का बीज
पूर्वजन्म के अच्छे कर्मो से आपको 'सद्गुरु' के माध्यम से परमात्मा ने ध्यान का 'बीज' दिया है | वह बीज पाकर भी आप अगर उसे वृक्ष न बना पाए, तो आपके जैसा दूर्भाग्यशाली कोई व्यक्ति नही है | आप जो कुछ समय गवां रहे हो, यह अंतिम क्षणों मे कुछ भी काम नही आयेगा | धन, सम्पत्ति, सभी घरवार, रिश्तेदार छोडकर अकेला...अकेले 'आत्मा' के साथ अंतिम सफर करना होगा | जब तक शरीर मे आत्मा है, तभी तक सब कुछ है | बाद में तो अपने सगे वाले चंद घण्टों में शरीर फूंक देंगे | क्योंकि आत्मा के बिना तो शरीर भी 'बदबू' मारने लग जाता है | अभी भी जाग जाओ और केवल अपने दिन की १४४०(1440) मिनिट मे से ३० मिनिट अपने आपको देना प्रारंभ करें |
जैसे मैं कहता हूं, आप आपके केवल 30 मिनिट मुझे दान करो | क्या है, जो वस्तू दान की जाती है, उस पर हमारा कोई अधिकार ही नही रहता | आप अगर ३० मिनिट दान करोगे, उन ३० मिनिट पर आपका कोई अधिकार ही नहीं होगा | फिर आपका दिन २३|| (साढे तेईस) घण्टे का ही होगा | आप केवल 30 मिनिट मुझे दान करके शांत बैठो | आगे का सब गुरूशक्तियाँ कर लेंगी | हाँ ! कोई भी 'अपेक्षा' के साथ मत बैठो | 'अपेक्षा' ध्यान साधना को अपवित्र करती है |...
✍..श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
मधुचैतन्य
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