गुरुतत्व

"गुरुतत्व परमात्मा की शक्ति का एक प्रवाह होता है जो निरंतर बहते रहता है, जो अनादिकाल से अविरत बह ही रहा है। वह गुरुतत्व का प्रवाह कल के युग मे भी विद्यमान था, आज के वर्तमान युग मे भी विद्यमान है और आनेवाले कल के युग मे भी बहता रहेगा। यह शाश्वत व सत्य प्रवाह है। सत्य सदैव एक होता है। सत्य अविनाशी है। इस सत्य को बहना ही पड़ता है। गुरुतत्व कोई शरीर नही है जो नाशवान हो। गुरुतत्व शाश्वत होता है। वह समय समय पर परिस्थितियों के अनुसार अपना माध्यम बदलते रहता है। इस माध्यम का चुनाव भी गुरुतत्व नही करता, माध्यम गुरुतत्व का चुनाव करता है। जो भी शरीरधारी आत्मा अपने अस्तित्व को मिटाने के लिये तैयार हो जाये, जो भी अपने "मैं" के अहंकार को छोड़ने के लिए राजी होता है, गुरुतत्व उसमे बहने के लिए राजी होता है।"

~परम पूजनीय सद्गुरु श्री 
    शिवकृपानन्द स्वामीजी
~समर्पण ध्यान योग

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