हिमलाय में कुछ गुरुओ के आभामंडल

"हिमलाय में कुछ गुरुओ के 'आभामंडल' इतने शशक्त होते थे कि उनके आपका के पेड़ पौधे भी उनके साथ समरस हो जाते थे। जब उनको आवश्यकता हो, 'पत्ते' गिर जाते थे; उनको आवश्यकता हो तब पेड़ भी स्वयं ही 'फल' गिरा देते थे। उनको मैंने कभी फलो कि तोड़ते नही देखा। वे कहते थे , " मेरी जरूरत पेड़-पौधे भी समजते हैं। जब हम प्रकृति के साथ समरस हो जाते है, तो प्रकृति भी हमारी सारी ही आवश्यकताएं पूर्ण करती है।" और इस बात पर उनका पूर्ण विश्वास था।

श्री शिवकृपानंद स्वामीजी,
सत्य का आविष्कार,
पेज - 48

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