आत्मानंद
मनुष्य का चित मूलत: शुद्ध और पवित्र ही रहता है। मनुष्य उस चित् को दूसरोँ मे डालकर दूषित कर लेता है। और मेरे जीवन मे जो खराब परिस्थितियाँ आई बुरी घटनाएँ घटी, बुरे व्यक्ति आए या सँकट आए तो इन सबके उपाय स्वरूप मैने एक कछुए के जैसे अपना सारा अँग (चित) अपने भीतर कर लिया और आत्म स्वरूप हो गया । आत्मा की तो कोई परेशानी ही नही होती है। वह सदैव परमात्मा मे लीन होती है और इसी कारण जीवन मे आयी बुरी परिस्थितियोँ का सामना करने के लिए मुझे आत्मबल मिला और भीतर एक ही आवाज होती थी की परमात्मा स्थाई है। ये बुरी परिस्थितियां बुरे व्यक्ति अस्थाई है, आज है कल नही होगे तो क्यों अस्थाई बातो पर ध्यान देकर अपना वर्तमान समय खराब करें ? आत्मा के सानिध्य मे वर्तमान समय का महत्व जाना क्योंकि "आत्मा का आनंद" भी वर्तमान में रहकर ही प्राप्त हो सकता है।
~आपका अपना बाबा स्वामी
~ परम पूज्य सद्गुरु श्री शिवकृपानंद
स्वामीजी
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