सीढी पर बैठे हुये है ।
आपने ध्यान दिया या नही दिया मुझे
पता नही है । लेकीन ५०/६० साल तक सन्यास लिये भी अभी भटक रहे है ।अभीतक भी पहुचे नही है ।
इसलीये आप ध्यान दे जहॉ मेरा जाना होता है । वहॉ के संन्यासी मुनी साधु
मुझे मीलने आते है । वास्तव मे वह मुझे मीलने नही आते खोजने को आते है । जो खोजने नीकले थे ।दुसरी मैने आपको कभी कहॉ क्या की मुझे कीसी भी संत से मिलना है । कभी भी
नही क्योकी हिमालय के गुरूऔ ने इतना दिया है । जो बांटा नही जा पा रहा है । इसीलीये मंगलमुती्यो का
निमाेण करना पड रहा है ।यह सब
गुरूकृपा ही है ।अन्यथा मै तो आपके जैसा ही गृहस्थ हु।
आपका बाबा स्वामी
२३/६/२०१९
राजकोट
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