समर्पण ध्यान का संस्कार मनुष्यता जगाए
श्रीलंका की बात आयी, तो श्रीलंका के प्रधानमंत्री के साथ मेरी काफी लंबी चर्चा हुई, काफी लंबी मीटिंग हुई। उनको मैंने बताया, "आप नहीं , प्रत्येक देश का प्रशासक, प्रत्येक देश का प्रधानमंत्री, प्रत्येक देश का राष्ट्रपति चाहता है कि मेरे देश के अंदर कोई जाति के विवाद न हों। मेरे देश में कोई भाषा के विवाद न हों, मेरे देश में कोई धर्म के विवाद न हों, सब सुख-शांति से रहें तो मेरे देश की प्रगति हो सकती है। ऐसा प्रत्येक शासक चाहता है लेकिन आपके पास में कोई मार्ग नहीं है, आपके पास में कोई रास्ता नहीं है। लेकिन मेरे गुरु के पास में रास्ता है। समर्पण ध्यान का संस्कार एक ऐसा संस्कार है जो मनुष्य के अंदर की मनुष्यता जगाता है। फिर जाति, धर्म, देश, रंग, भेद सब हट जाते है।"
परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
समर्पण ग्रंथ - १६४
(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।) पृष्ठ:९४
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