Father's Day Special Message...

अगर हम केवल माँ के बारेमे ही जानेंगे यह "बाप" के साथ अन्याय होगा | माँ-बाप ये दोनों ही शब्द साथ-साथ होते हैं | जब की माँ की चर्चा सभी कवी करते हैं , लेकिन बाप की चर्च कोई नहीं करता हैं | बीना दिये के ज्योति थोड़ी ही जल सकती हैं ? लेकिन ज्योति प्रकाश देती हैं इसलिए ज्योति की चर्चा होती हैं |
बाप वह दिया हैं जो ज्योति के लिए तेल संभालकर रखता हैं | बाप वह हैं जिसके स्वयम के कपडे भले ही फटे हो, बच्चो को नये नये कपड़े लाकर देता हैं | घर की सब से अधिक चिंता बाप को ही होती हैं | बच्चे भले ही माँ-बाप का मजाक उड़ाते हो , वह बच्चे के भले के लिए ही सदैव प्रयत्नशील रहता हैं | अनादी बाप के बच्चे भी पढ़े-लिखे होते हैं | अपने से अधिक अपने बच्चे पढ़े, जो कष्ट मुझे मेरे जीवनमे भोगना पड़े वह कष्ट मेरे बच्चो को न भोगना पड़े , सदैव इसका वह प्रयत्न करता हैं | इसीलिये वही घर का "कर्ता" कहलाता हैं | कर्ता याने घर के लिए ही करनेवाला | जब जीवनमे कोई बड़ा संकट आता है , तब भी माँ नहीं बाप ही याद आता हैं | बाप का हृदय बहुत विशाल होता हैं | वह बड़े संकटों से भी अपने परिवार की रक्षा हँसते-हँसते करता हैं , और संकटों का आभास भी अपने बच्चो को होने नहीं देता हैं | बाप का ध्यान सदैव अपने कमजोर बच्चे पर होता हैं | बाप सदैव उसे भी अच्छी स्थिति में देखना चाहता हैं |
बच्चे की नौकरी के लिए दुसरो के सामने बाप ही गिडगिडाता हैं | अपनी बच्ची के लिए अच्छा लड़का खोजने के लिए बाप ही दूसरों की चौखट पर जाता हैं | जिस घर में बाप नहीं होता उस घर के सदस्यों को पूछो की बाप क्या होता हैं !! बाप की उसके जीवनकाल के बाद ही याद आती हैं | उसका डांटना, चिल्लाना, गुस्सा करना केवल 'अपने बच्चोंको अच्छे संस्कार हो' इसीलिए होता हैं |
"बाप सदैव अपने बच्चो के माध्यम से दूसरा जिवन जीता है |"
उसके बच्चे सुखी हैं, खुश हैं, प्रसन्न हैं तो वह भी खुश हैं, सुखी हैं | वह सदैव अपनी औलाद प्रगति करे यहीं चाहता हैं | उसके लिए वह अपने सुखो को भी अपने बच्चो पर निछावर कर देता हैं | वह सभी को समान प्रेम करता हैं , लेकिन जो अतृप्त बच्चे होते हैं , वे उस पर आरोप लगाते हैं की 'आप मुझे प्रेम नहीं करते हैं, दुसरे बच्चे को अधिक प्रेम करते हैं |' वास्तव में, यह सोचना अतृप्ति के भाव के कारण होता हैं | बाप के शब्द बच्चो के अंतरमन तक पहुँचते हैं | इसीलिए प्राय: बाप के न रहने पर वह शब्दों और तरंगो के माध्यम से अपने बच्चो के पास सदैव रहता हैं | ( बाबूजी ऐसा कहाँ करतें थे...!!)
"माँ-बाप" एक ही शब्द हैं | हम बेकार में उसे अलग-अलग रखकर देखते हैं |
बाप को घर का "छत्र" यूँ ही नहीं कहा हैं | माँ की जब बात आयी तो बाप का भी उल्लेख करना आवश्यक हैं , क्योकि बाप बेचारा सदैव उपेक्षित ही रहता हैं |

~परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
~संदेश  पुष्प "माँ"
~दिनांक : ११-०२-२०१६

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