संदेशवाहक
" 'संदेशवाहक' कुछ मनुष्य को पिछले जन्म में दिए आश्वासन के कारण देह धारण करता है और वह लोगो की आंखों से पहचान लेता है। नया जन्म, नया शरीर धारण किया तो भी 'आंखे' तो वही रहती हैं। 'आंखे' आत्मा की पहचान कराती हैं। आंखों के कारण ही लोग अपने संदेश वाहक को भी पहचान लेते है। एक क्षण देखने के बाद ही हमें समज आता है, जिसे मैं जन्मो से खोज रहा था, वह यही है। आंखे मनुष्य की कभी नही बदलती हैं। आंखों से भीतर बसी 'आत्मा' का पता चलता है। आंखों से आत्मा को पहचाना जा सकता है। संदेशवाहक की आंखों में प्रत्येक मनुष्य के प्रति 'करुणा' का एक दिव्य भाव सदैव होता ही है।"
श्री शिवकृपानंद स्वामीजी,
"सत्य का आविष्कार", पेज - 64
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