सद्गुरु
" सद्गुरु का सानिध्य सारे विश्व में दुर्लभ होता है, क्योंकि मनुष्य के जन्म से ही उसका चित्त बाहर की ही यात्रा करता है, दुसरो को जानने का प्रयास करता है। लेकिन अपने आपको जानने का प्रयास इसलिए नही कर पाता क्योंकि मनुष्य का चित्त अंतर्मुखी होता ही नही है। सारे विश्व मे केवल इनके सानिध्य में ही मनुष्य का चित्त अंतर्मुखी होता है। ये 'युग पुरुष' होते है, इनके युग मे अन्य कोई माध्यम नही होता है। ये दिखने मे सामान्य मनुष्य जैसे ही होते है, बातचीत भी सामान्य मनुष्य जैसी हि करते हैं। ये बाहर से सामान्य व भीतर से असामान्य होते है। उनका शरीर असामान्य नही होता , उनके भीतर से बहनेवाला *"परमात्मा का चैतन्य"* असामान्य होता है।
श्री शिवकृपानंद स्वामीजी,
सत्य का आविष्कार,
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