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Showing posts from June, 2018

समर्पण ध्यान का अर्थ

      हमने कितने अर्थ सही अर्थ में लिए है, कितनी बातों को समझा है। तो पहले 'समर्पण ध्यान' को ही समझिए, जो इसका नाम है। 'समर्पण ध्यान' में ही 'समर्पण ध्यान' का अर्थ, 'समर्पण ध्यान' की पध्दति सब कुछ उसी के भीतर है, उसी के अंदर है। सिर्फ सब बातें हम शरीर लेवल (स्तर) पर लेते हैं। इसलिए उसके गूढ़ अर्थ में, उसके भीतर के छिपे हुए अर्थ तक हम नहीं पहुँच पाते है। हमारे पास जो कुछ है उसमे से कुछ भाग देना ये अर्पण हो जाता है। लेकिन साथ में ' मैं ' विद्यमान है ही - ' मैने मेरे पास का ये अर्पण किया। ' बाबा स्वामी मधुचैतन्य २०१४           

महत्वपूर्ण सुचना

१) कृपया , ध्यान दें कि प्रार्थनाधाम के पुराने टेलिफोन नं.६५०५५५ और ६५१५५५ अब सेवा में नहीं हैं। २) अब से www.samarpanmeditation.org वेबसाईट पर २४*७ PRAYER CENTRE पर प्रार्थना दर्ज की जा सकती है। ३) फिलहाल , प्रार्थना सिर्फ हिंदी या अंग्रेजी भाषा में ही दर्ज की जा सकती है। ४) कृपया , अपनी प्रार्थना दिन में केवल एक बार ही दर्ज  करें। एक ही प्रार्थना , कृपया , बार-बार दर्ज ना करें। ५) *आपातकालीन स्थिति (Emergency) में* मोबाईल नं. *(+९१) ९५७४६५१५५५* पर प्रार्थना दर्ज कराई जा सकती है। ६) किसी समस्या निवारण के लिए १५-१५ दिन के अंतराल से प्रार्थना केवल तीन बार ही दर्ज करें। प्रार्थना का सफल होना आपके संपूर्ण विश्वास और श्रद्धा पर निर्भर करता है। ७) वेबसाईट पर फीडबैक लिंक पर कृपया अपने सुझाव और प्रार्थना होने के बाद अपना प्रतिभाव अवश्य दें। प्रार्थना दर्ज करने के बाद समस्या के समाधान के विषय में आप अपना अनुभव भी फिडबैक में लिख सकते हैं या edit.madhuchaitanya@gmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं। ८) वर्ष २०१७ में कुल मिलाकर ८३,११९ प्रार्थनाएँ दर्ज हुई थीं जिसमें से ५५०९ आपातकालीन प्रार्थनाएँ

दान का अर्थ

लोगों को अभी भी "दान"का अर्थ ही पता नहीं है या "दान"का सही अर्थ ही समझाया गया नहीं है। दान तो जो मनुष्य जीवनभर पाने की दौड़ में लगा है उससे हटकर वह कुछ ऐसा कर रहा है जिससे उसे कुछ भी मिलने वाला नहीं औऱ कुछ भी पाने की लालच में नहीं कर रहा है, किसी को दिखाने के लिए नहीं कर रहा है। दान करने से एक आत्मिक शांति अनुभव कर रहा है। जो पाने की दौड़ में लगा है, वह दौड़ गलत दिशा में हो रही हैं, यह जानकर एक सही दिशा में दौड़ ने लिए अपनी पाने की दौड़ छोड़कर कुछ न पाने के लिए दे रहा है। ऐसे शुद्ध भाव के साथ कोई व्यक्त्ति दान करता है तो वह " दान " मधुचैतन्य मई-जून २०१८ पन्ना ०३

Samarpan Video Player

Today, on the auspicious occassion of  Poornima (full moon day) a video player has been launched under the Samarpan Literature banner at Shree Baba Swami Dham. This video player will be very useful for conducting the following - 1. Centre conduction 2. Shibir conduction 3. Live telecast 4. Power Point presentation All sadhaks involved in prachar (propagation) and especially all the centres should definitely take this player. Your own Baba Swami 28/6/18

Satguru Kabir's Samadhi

Today, Satguru Kabirji's samadhi has completed 500 years, and I got darshan of his samadhi due to the celebration which was held in Maghar, U. P. and was broadcasted on TV. I got the spiritual experience of very good consciousness, and the devotees and volunteers of Kabirji over there are truly praiseworthy for maintaining the consciousness of the samadhi for 500 years. After the Satguru attains samadhi, it is the volunteers who have to maintain and keep the place clean and pure, just like a mother keeps her little child. Many thanks to all those volunteers once again.                   Your own,                  Baba Swami                      28/6/18

समपेण विडीयो प्लेयर

आज पोणिेमा के शुभ अवसर पर समपेण साहीत्य के अंन्तरगत एक समपेण विडीयो प्लेयर का श्री बाबा स्वामी धाम पर विमोचन सपन्न् हुआ। १  सेन्टर का संचालन २ शिबीर का संचालन ३ लाईव्ह प्रसारण ४ पावर पाईन्ट प्रेझेन्टेशन के लिये यह विडीयो प्लेयर बहुउपयोगी होगा।प्रत्येक प्रचारको ने और ख़ास तौर पर हर एक सेन्टर ने तो इसे अवश्य लेना चाहिए ।                       आपका अपना बाबा स्वामी 28/6/18

सदगुरू कबीर समाधी

आज  सदगुरू कबीर जी के समाधी को 500 साल पुणे हुये और जो वहॉ उत्सव मनाया गया। उसके कारण आज मगहर यु पी. मे उनके समाधी के दशेन टी वी पर हुये और खुब अच्छे चैतन्य की अनुभुती हुयी और 500 साल तक समाधी के चैतन्य को बना कर रखने के लीये वहॉ के कबीर पंथी और सेवाधारी सचमुच प्रंशसा के पात्र है। क्योकी सदगुरू के समाधीस्त होने के बाद उस स्थानय की साफ सफाई और पवीत्रता सेवाधारीयो को ही ठीक वैसी ही रखना पडती है। जैसी एक मॉ अपने नन्ने शिशु की रखती है। फीर से उन सभी सेवाधारीयो को धन्यवाद।                       आपका अपना                     बाबा स्वामी                         28/6/18
अच्छा दूसरा ना, मेरे नाम पे ठोकना चालू मत करो।नहीं,वो मेरेको तुम्हारी खूब कम्प्लेंट(फरियाद) आती है। तुम्हारे मन में जो कुछ रहता है ना वो बोल देते है 'स्वामीजी ने कहा है!गुरुमां ने कहा है!" अरे! माने, मेरा क्या कहना है, तुम बोलो ना 'ये मैंने कहा है, ये मेरेको लगता है'। तुम इतने डरपोक हो क़ि तुम तुम्हारा नाम बचाना चाहते हो? ऐसा कायको बोलते हो? माने, जैसे तुम्हारे एक जेब में स्वामीजी पडे हो,एक जेब में गुरुमाँ पड़ी है! इधर से निकाला- ये ले....,स्वामीजी! ये ले.....,गुरुमाँ निकाली!(साधक हँसते हे) माने एकदम ऐसे दो कौड़ी का मत बनाओ गुरु को। खबरदार किसी ने मेरे नाम पे कुछ बोला तो!(बाद में, पूज्य स्वामीजी हँसते हे।) नहीं, दूसरा ना में साधकों को भी बोल रहा हूँ, पूछो सेंटर आचार्य को स्वामीजी ने ये कौन से प्रवचन में कहा है? कौन से किताब में कहा है? तू तेरे मन की बाते उनके नाम पे मत ठोको। तो कहने का मतलब, ऐसा ये ठोका ठोकी बंद करो।तुम ऐसा मत करो। दूसरा, तुम्हारा भी रिस्पेक्ट कम होता है। वो तो समझ जाता है ना कि ये अपने मन की बात स्वामीजी के नाम पे ठोक रहा है। और दूसरा, तुम भी पाप के भागी

वैरभाव

*गुरुमा!स्वामीजी कहते हैं कि दो साधकों की लड़ाई का परिणाम बहुत बुरा होता है । माँ, किसी साधक से अनबन होना या मतभेद होना आम बात है,तो किसी एक साधक से वैरभाव हो जाए तो क्या होगा?* प्रिय साधक, अनेक आशीर्वाद,जय बाबा स्वामी! बेटा!आप सही कह रहे हैं कि दो साधको में लड़ाई होना,मतभेद होना आम बात है जब तक रूठना...मनाना चल रहा है।जब रूठना,मनाना बंद हो जाता है तब समझ लीजिए कि तब मतभेद मनभेद में तब्दील हो चूका है।यही मनभेद आगे चलकर वैरभाव में तब्दील हो जाता है। गुरुदेव ने प्रत्येक साधक में गुरुशक्तियों के साधना संस्कार का एक बीज स्थापित किया है।जब साधक नियमित ध्यान साधना करता है,तब वह गुरुशक्तियों के सूक्ष्म स्वरुप ही उस साधक को संस्कारित करता है,साधक को सुरक्षा कवच प्रदान करता है। जब दो साधक आपस में वैरभाव रखते हैं तब  उन दोनों के भीतर स्थित गुरुशक्तियाँ आपस में नहीं लड़ सकती क्योंकि वे एक ही हैं तथा सकारात्मक होती हैं।वे साधक को वैरभाव समाप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।यदि साधक गुरुशक्तियों से जुड़ा हुआ होता है तो वह वैरभाव समाप्त करने के प्रयास करता है। किंतु वे साधक यदि वैरभाव समाप्त नहीं कर

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वो एक कहावत है ना "जितनी चदर  हो उतने पैर पसारो" वो कहावत मेरे बारे में उल्टी पड़ती है आप पहले पैर पसार लो चदर मैं ओढा दूँगा जितना फैलाड़ा करना है उतना फैलाड़ा कर लो चदर कहा से आएगी उसकी चिंता मत करो अपना बाप चदर बना रहा है ऊपर!!! तो एहसास करो कि किस के साथ हो किस के सानिध्य में हो। -- बाबा स्वामी

समस्याएँ

समस्याएँ , परेशानियाँ  तो  सभी  कें  जीवन  में  आती  है । बल्कि  मुझे  तो  लगता  है , ईश्वर  मानव  को  जब  सशक्त  बनाना  चाहता  है  तभी  समस्याएँ  देता  है । जब  हम  समस्या  का  समाधान  खोज  लेते  है , तब  हमारे  भीतर  छुपी  शक्ति  का  हमें  एहसास  हो  जाता  है । वंदनीय गुरु माँ  " माँ " पुष्प  1

हम दुनियाभर की खोज करते है , पर अपने -आपको कभी नहीं खोजते है ।

हम  दुनियाभर  की  खोज  करते  है , पर  अपने -आपको  कभी  नहीं  खोजते  है । जो  खोज  करना  आवश्यक  है , वह  छोड़कर  बाहर  सब  खोजते  रहते  है । औऱ  जैसे  ही  यह  प्रश्न  जानने  का  प्रयास  करते  है , तो  हमारी  भीतर  की  यात्रा  प्रारंभ  हो  जाती  है । औऱ  जब  भीतर  की  यात्रा  प्रारंभ  हो  जाती  है , तो  हम  जानते  है -"शरीर  औऱ  "मैं " अलग -अलग  है । "औऱ  "मैं " शरीर  से  अलग  हो  जाता  है  औऱ  एक  आध्यात्मिक  क्रांति  घटित  होती  है । पूज्य गुरुदेव ... ही.का.स.योग...खंड १

प्रकृति सबको बढ़ने का समान अवसर देती हैं

जंगल  में  अच्छे  वृक्ष  भी  होते  हैं , खराब  वृक्ष  भी  होते  हैं । प्रकृति  सबको  बढ़ने  का  समान  अवसर  देती  हैं । कौन  किस  दिशा  में  बढ़ता  हैं , वह  उस  वृक्ष  कें  ऊपर  निर्भर  करता  हैं । इसीलिए  परमात्मा  जब  कृपा  करता  हैं  तो  वह  सब  पर  समान  करता  हैं । उस       की  कृपा  का  कौन  कैसा  उपयोग  करता  है , यह  उस  पर  निर्भर  होता  है । जीवन  में  परमात्मा  सभी  मनुष्यों  को   आध्यात्मिक  प्रगति  कें  समान  अवसर  देता  है , परंतु  मनुष्य  की  लेने  की  स्थितियाँ  अलग -अलग  होती  है । प्रत्येक  मनुष्य  को  जीवन  में  समान  अवसर  प्राप्त  होते  है । - - - - - - 🔱- - - - - - पूज्य ब्रह्मानंद स्वामी ही .का .स .योग .--१

गुरुमंत्र

गुरुमंत्र वह मंत्र है , जो पवित्र गुरुओं ने पवित्र आत्माओं के लिए तैयार किया है। वह मंत्र पवित्र आत्माओं के लिए है , इसलिए जब तक हम पवित्र आत्मा नहीं बन जाते , उस मंत्र की ऊर्जा हमें अनुभव नहीं होगी। धार्मिक ग्रंथों में भी आप एक पवित्र आत्मा हैं , यह मानकर ही सब बातें लिखी होती हैं। अगर आप आत्मा के स्तर तक पहुँचकर ही वह धर्मग्रंथ पठते हैं , तो उसका अर्थ और ऊर्जा आपको प्राप्त होगी , अन्यथा नहीं। अब मैं आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ। श्री ज्ञानेश्वरजी ने कहा है  - देवाचिये द्बारी , उभा क्षणभरी। तेणे मुक्ती चारी साधियेल्या।। यानी तू मंदिर के दरवाजे के सामने खड़ा हो जा तो तुझे मुक्ती मिल जाएगी। अब सर्वसामान्य मनुष्य ने उसका अर्थ यह लगया कि तू एक मंदिर बना और मंदिर के दरवाजे के पास जाकर रोज तू बैठ तो तुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। जबकि उन्होंने सामने वाला एक पवित्र आत्मा है , एक शुद्ध आत्मा है ऐसा मानकर बताया था। लेकिन उनका अर्थ वह नहीं था , जो सामान्य मनुष्य ने समझा था। उनका कहने का अर्थ यह था कि आपका शरीर ही एक मंदिर है और इस मंदिर के दरवाजे पर बैठ यानी इस शरीर रूपी मंदिर का दरवाजा है -सह

शरीर नाशवान है

शरीर नाशवान है। नाशवान पर चित्त रखकर शाश्वत नही पाया जा सकता है। सद्गुरु के शरीर पर चित्त रखकर हम हमारी ही आध्यात्मिक प्रगति को रोक रहे हैं। दुसरा , जिन हजारों साधकों को उस शरीर से आत्मप्रकाश , आत्मचैतन्य मिलता है , उसमें भी हम बाधक बन रहे हैं। तिसरा नुकसान हम उस सद्गुरू के शरीर का भी कर रहे है , जो सब दोष , बीमारीया लेने के लिए बाध्य है। क्योंकि वह शरीर इतना संवेदनशील है कि लेना या न लेना उसके हाथ में नहीं है, वह शरीर तुरंत दोष ग्रहण कर ही लेता है और साधकों के दोषो का, साधकों की बीमारियों का खामीयाजा सद्गुरू के शरीर को उठाना ही पडता है। इसलिए सद्गुरु के शरीर से उचित अंतर बनाए रखने की आवश्यकता है , अन्यथा साधक अनजाने में सद्गुरू के शरीर का नाश का कारण बनते हैं। इसलिए आवश्यक है कि साधकों का चित्त उनके शरीर पर नहीं , सूक्ष्म शरीर पर होना चाहिए। इसीमें सभी की प्रगति है।          ----  *पूज्य गुरुदेव* *मधुचैतन्य जुलै २००५*

गुरुशक्ति  धाम

*कोई  भी  गुरुशक्ति  धाम   में  आप  जाते  हो  न , तो  वहाँ  पे  तो  चॉकलेट  का  डब्बा  रखा  हुआ  है । आप  चॉकलेट  का  डब्बा  माँग  लो  और  एक -एक  खाते  बैठो । लेकिन  आप  क्या  करते  हो , वो  डब्बा  नही  माँगते , आप  एक -एक  चॉकलेट  माँगते  हो । तुम  प्रयोग  करके  देखो  न ! तुम  तुम्हारी  कोई  भी  समस्या  लेके  वहाँ  जाओ , दर्शन   करो , ध्यान  करो , वापस  आओ  , समस्या  दूर  हो  जाएगी । समस्या  बताने  की  भी  जरूरत  नही  है*। .  . . 🔱 *परम पूज्य स्वामीजी* 🔱 *महाशिवरात्रि पर्व - २०१३*- ============================

चेतावनी

मेरे जिवन काल मे तो मेरा श्री मंगल मूर्ति की स्थिति पर सतत ध्यान है और उनके वाइब्रेशन थोडे भी कम हो मुझे तुरन्त पता चलता है और वह ठीक भी कर लेता हु। मेरी चिन्ता मेरे जीवन काल के बाद की है क्योकी बाद मे श्री मंगल मूर्ति के गर्भगृह मे जो वातावरण होगा और जीस भाव के साथ पुजा होगी तो सब कुछ उसी पर निभेर होगा। क्योकी बाद मे तो वाइब्रेशन कम हुये है यह जानकारी देने वाला भी कोई नही होगा तब आवश्यक नही की सभी स्थान के वाइब्रेशन एक जैसे हो। मंगल मुती का गर्भगृह वह स्थान है जहां से आश्रम की प्रगती और विकास निर्भर है। बाबा स्वामी 19/6/18

अंन्तरराष्ट्रीय योग दिवस

आज अंन्तरराष्ट्रीय योगदिवस है। इसे प्रांरभ करने मे हमारे देश भारत की और भारतीयो की प्रमुख भुमीका है। “योग” भारतीय सस्कृती का वीश्व को एक उपहार है।“योग” का अथे मनुष्य के शरीर का अपनी आत्मा के साथ विलीन हो जाना। लेकीन आज “योग” का अथे लगाया जा रहा है। केवल योगासन करना जब की योगासन “ समग्र योग” का केवल आठवा हिस्सा ही है। हम भारतीयो को “समपेण ध्यान योग” के माध्यम से समग्र योग का ज्ञान हमे हमारे हिमालय के गुरूओ के माध्यम से मीला है।लेकीन अब यह ज्ञान हमे समस्त विश्व मे बांटना है। यह ज्ञान बांटना हमारा गुरूकाये भी है। और नैतीक जबाबदारी भी है। कयोकी सभी jiहमारे समान भाग्यशाली नही होते की उन्हे समग्र योग का ज्ञान की “अनुभुती” हो सके। अनुभुती का ज्ञान ही सत्य ज्ञान है। पुस्तको का ज्ञान तो केवल जानकारी भर है। आप सभी को “अंन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” पर खुब खुब आशिेवाद आपका अपना बाबा स्वामी शिवकृपानंद स्वामी 21/6/2018

International Yoga Day

Today is International Yoga Day . Our country India and its countrymen have played a prime role in initiating this. 'Yoga' is Indian culture's gift to the world. 'Yoga' means the union of man's body with his own soul; but today the meaning of 'yoga' is taken to be just doing yogasanas, whereas yogasan is just the eighth part of _'samagra yog'_. We Indians have received the knowledge of _samagra yoga_ through the medium of 'Samarpan Dhyanyog' from our Himalayan Gurus; but now we have to spread this knowledge throughout the world. Spreading this knowledge is also our Gurukarya and also our moral responsibility. This is because everyone is not as fortunate as us to be able to obtain the 'spiritual experience' of _samagra yoga_ (the complete yoga). The knowledge of 'spiritual experience' (anubhooti) itself is true knowledge, and the bookish knowledge is only restricted to information. Lots of blessings to you on the occasion
चाय की गर्मी काम कर गई । अगले पंद्रह मिनीट मे बेटे का जन्म हुआ । बेटे की आवाज इतनी तेज थी कि "इन्हे " पूलिया पर बैठे बैठे पता चला , ये तुरंत दवाखाने पहुँचे । २१ जून , भारत का सबसे लंबा दिन ... सूर्यास्त होते -होते ही इसका जन्म हुआ , दिन था " गुरुवार " । " माँ " ने तो पौत्र को गोद मे लिया और कहा , "गुरु दत्तात्रय आए है ।" सामान्य वजन , गेहुँवा वर्ण तथा गाल पर [बाएँ ] एक गोल ,काला -सा जन्म चिह्न ।... ***************** गुरु माँ माँ पुष्प १ जनम दिन कि र्हदय से बधाई

आध्यात्मिक क्षेत्र में पवित्रता को बड़ा महत्त्व

इसीलिए आध्यात्मिक क्षेत्र में पवित्रता को बड़ा महत्त्व है। लेकिन मनुष्य शरीर स्तर पर होने के कारण पवित्रता का अर्थ केवल शरीर की शुद्धता जैसे नहाना , धोना आदि से लगाता है। पवित्रता कस अर्थ बड़ा विशाल है। आपके विचार , आपका चित्त यह सभी पवित्रता के ही क्षेत्र में आता है। तो प्रथम पवित्रता अपने भीतर पूर्ण स्थापित करें। यह आज्ञाचक्र वह चक्र है , जहाँ पहुँचकर मनुष्य के विचार बंद हो जाते हैं। यानी मनुष्य एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है , जब उसे निर्विचारिता की स्थिति प्राप्त हो जाती है । यह स्थिति कई प्रकार से प्राप्त हो सकती है। योगासन करने से भी प्राप्त होती है। यानी साँस लेते हुए यह आसन करो और साँस छोड़ते हुए यह आसन करो। यानी आसन करते समय आपका चित्त अगर साँस ले रहे हैं और साँस छोड़ रहे हैं इससे ऊपर हो तो भी मनुष्य के विचार बंद हो जाते हैं। या आप अगर अच्छे वादक हैं , तो वाद्य बजाते -बजाते भी उस निर्विचारिता की स्थिति तक पहुँच सकते हैं। या आप अगर किसी भगवान का भाव के साथ भजन करते हैं , तो भी आपको भजन गाते - गाते या सुनते - सुनते भी यह स्थिति प्राप्त हो जाती है। या आप किसी समाधि के स्थान पर जाते
jadeja: "प्रकृति का अपना एक चक्र चलता रहता है और इसी के अधीन एक नया पत्ता फूटता है, बड़ा होता है , विकसित होता है ,पीला होता है , पकता है । फिर गिरता है , गिरकर खाद बन जाता है । फिर उसी खाद से उस पेड़ को ऊर्जा मिलती है और फिर एक नया पत्ता उस झाड़ पर उगता है । इसी प्रकार का मनुष्य का जीवन है । एक छोटे बच्चे के रुप मेँ पैदा होता है । एक बालक बनता है । बालक से युवक बनता है । युवक संपूर्ण मनुष्य बनता है और बाद मेँ वृद्ध होता है और फिर मर जाता है और फिर नया जन्म लेता है और किसी देश मेँ, किसी धर्म मेँ, किसी जाति मेँ,किसी भाषा मेँ याने प्रत्येक जन्म के समय आसपास का सब माहौल बदलते रहता है । इस माहौल मे शाश्वत कुछ नहीँ है । मनुष्य-योनि परमात्मा ने दी हुई सर्वश्रेष्ठ योनि है । क्योकि यही वह योनि है जिस योनि मेँ प्रकृति से समरस होकर मोक्ष-प्राप्ति संभव है । इस प्रकृति के चक्र को चलानेवाली शक्ति परमात्मा है । और परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है यह परमात्मा का रहस्य मनुष्य समज नही पाता है ।" -H.H.Shivkrupanand Swamiji From:'Adhyatmik Satya'
21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। सामान्यत: योग का अर्थ आसन और प्राणायाम से ही लगाया जाता है जो कि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है किन्तु शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य एवं सन्तुलन के लिए भी नियमित योगासन करना अत्यंत लाभदायक है।                समर्पण ध्यानयोग परमात्मा की अनुभूति पर आधारित अत्यंत सरल और समग्र योग संस्कार है जिसके माध्यम से  सभी जन अपने अंदर छिपी हुई परमात्मा की शक्ति का अनुभव कर सकते हैं। आज पूरे विश्व के लोग अपने अन्दर की छिपी हुई ईश्वरीय शक्ति का अनुभव कर रहे हैं और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ अपनी सर्वांगीण प्रगति भी कर सकते हैं तथा कर रहे हैं, एक सन्तुलित एवं आनंदमय जीवन जी रहे हैं। समर्पण ध्यानयोग को आज विश्व में कई देशों के लोगों ने अपनी जाति, धर्म, भाषा की सीमा से परे होकर अपनाया है। आज कई देशों के लोग समर्पण ध्यानयोग के माध्यम से आत्मिक रूप से एक दूसरे के करीब आ रहे हैं जिससे वसुधैव कुटुम्बकम की कल्पना साकार होती नजर आ रही है।   समर्पण ध्यानयोग संस्कार को हिमालय के कई ऋषि-मुनियों ने अनेक वर्षों की

मैं शरीर नहीं हूँ

"मैं शरीर नहीं हूँ, मैं एक पवित्र आत्मा हूँ, में एक शुध्ध आत्मा हूँ | मैं शरीर नहीं हूँ, में परमात्मा का एक पवित्र अंश हूँ |" ऐसा अभ्यास कर आत्मा जब अपने शरीर पर नियंत्रण करेगा, तब धीरे-धीरे शरीर को स्वयं का एहसास कम होगा और आत्मा का एहसास अधिक होगा | और जैसे-जैसे शरीर का एहसास कम होगा, शरीर की समस्याएँ भी कम होगीं | शरीर का एहसास है, इसलिए ही शरीर की समस्या है | हि.स.यो-४ .