समाधि

४१.  इस सूक्ष्म शरीर का कार्य  - जो सदगुरु के बताए मार्ग पर चलेगा, उसकी मदद करना है ताकि उसका किया गया कार्य ( सदगुरु का कार्य) जारी रख सके।
४२.  शरीर के छूट जाने के साधारणतः 25 साल बाद यह सूक्ष्म शरीर निर्मित होता है। गुरुशक्ति के साथ पहली बार ऐसा हुआ है कि जीवंत शरीर होते हुए भी सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो गया है।
४३.  जो सर्वत्र प्रकट होते रहता है।
४४.  सूक्ष्म शरीर से जुडे हुए साधक हों और अनुभूति प्रबल हो तो साधकों की ग्रहण करने की क्षमता के कारण यह स्पष्ट आकार भी ले सकता है।
४५.  और आकार इतना स्पष्ट होता है, उसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वास्तव में उसका रूप चैतन्य का ही होता है। लेकिन साधक की संपूर्ण आस्था के कारण चैतन्य उस रूप में दृश्यमान होता है।
४६.  याने सूक्ष्म शरीर का आकार और प्रगटरूप साधकों की ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर है।
४७.  सामान्यतः अच्छे चैतन्य के रूप में या चंदन या गुलाब की खुशबू के रूप में वह अपनी उपस्थिति की अनुभूति करता है। उस समय वातावरण से सब विचार समाप्त हो जाते हैं।
४८.  एक आनंद और उत्सव का वातावरण सारे वातावरण में बन जाता है। प्रसन्नता लगती है। और समय का पता भी नहीं चलता और हमारी आत्मा पुलकित है जाती है।
४९.  एक तृप्ति का अनुभव होता है। सबकुछ प्राप्त हो गया, ऐसा एहसास होता है। आत्मा की आँख खुल जाती है. और इसी कारण हमारी शरीर की आँखें बंद होने लगती हैं क्योंकि हम शरीर की कक्षा से आत्मा की कक्षा मैं प्रवेश कर जाते हैं।
५०.  आत्मा को जो आनंद मिलता है, उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है, बस आत्मा से ही अनुभव किया जा सकता है। और जो अनुभव करते हैं, वे भी अभिव्यक्त करने की स्थिति में नहीं होते हैं।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. १५४-१५५.

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