सभी धर्मों का उदेश परमात्मा की प्राप्ति

जिस प्रकार से , मान लो सामने मिट्टी का ढेर पड़ा हुआ है। अब उस ढेर में कुछ मिट्टी लेकर एक मनुष्य राम की मूर्ति बनाता है तो दूसरा गौतम बुद्ध की ओर तीसरा उसी मिट्टी से जीजस की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से करता है। लेकिन मिट्टी तो एक ही है , उस एक ही स्वरूप की मिट्टी के तीन अलग- अलग रूप हैं।उस एक ही मिट्टी के स्वरूप को हाथों ने अलग - अलग रूप प्रदान किया है ,  लेकिन मूल तो मिट्टी ही है। और अगर वह तीनो व्यक्ति उन प्रतिमाओं को फिर मिट्टी में मिला देते हैं , तो वह मिट्टी हो जाती है। यानी मिट्टी को जिस प्रकार से हाथ अलग-अगल मुर्तियाँ तैयार करते हैं , ठीक इसी प्रकार से , मनुष्य अपनी मान्यता से ही परमात्मा का निर्माण करता है। आप किसको परमात्मा का माध्यम मानते हैं , यह एक व्यक्तिगत विषय है। प्रत्येक व्यक्ति का परमात्मा का माध्यम अलग-अगल होता है , इतना अलग होता है कि पति का परमात्मा का माध्यम अलग पत्नी का परमात्मा का माध्यम अलग होता है। यानी यह सब कुछ मानने के ऊपर ही है। हमारे शरीर में एक परमात्मा के प्रति भाव की एक जगह होती है। आप जिसे परमात्मा मानने हैं , वह माध्यम आकर उसमें बैठ जाता है या यूँ कहें कि आप आपके चित्त से ही परमात्मा के माध्यम का निर्माण करते हैं। वास्तव में तो सत्य यह है - ऐसा कौनसा स्थान है , जहाँ परमात्मा नहीं है। परमात्मा तो सर्वत्र , वर्तमान में बहने वाली चेतना शक्ति है , वह तो सर्वव्यापी है और निराकार स्वरूप में है। लेकिन उसी निराकार स्वरूप तक पहुँचने के लिए प्रत्येक मनुष्य किसी -न-किसी साकार रूप का सहारा लेता है और जो रूप साकार है , वह सहारा है। जब आप इस एक निराकर , सर्वत्र , सर्वज्ञानी , सर्वत्र  व्याप्त परमात्मा को समझ जाते हैं , तो आपका विराट तत्व का भाव विकसित हो जाता है। फिर आपके भीतर परमात्मा के सभी रूपों के बारे में आदर की भावना आ जाती है। सभी धर्म एक ही हैं , सभी धर्मों का उदेश परमात्मा की प्राप्ति करना ही है , इस प्रकार के विचार आने लग जाते हैं। यानी आपकी सोच का दायरा विकसित हो जाता है। आप अभी बातों की ओर विशाल दायरे से ही देखने लग जाते हैं।

भाग - ६ -२३९/२४०

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