jadeja:
"प्रकृति का अपना एक चक्र चलता रहता है और इसी के अधीन एक नया पत्ता फूटता है, बड़ा होता है , विकसित होता है ,पीला होता है , पकता है ।
फिर गिरता है , गिरकर खाद बन जाता है ।
फिर उसी खाद से उस पेड़ को ऊर्जा मिलती है और फिर एक नया पत्ता उस झाड़ पर उगता है ।
इसी प्रकार का मनुष्य का जीवन है । एक छोटे बच्चे के रुप मेँ पैदा होता है । एक बालक बनता है । बालक से युवक बनता है । युवक संपूर्ण मनुष्य बनता है और बाद मेँ वृद्ध होता है और फिर मर जाता है और फिर नया जन्म लेता है और किसी देश मेँ, किसी धर्म मेँ, किसी जाति मेँ,किसी भाषा मेँ याने प्रत्येक जन्म के समय आसपास का सब माहौल बदलते रहता है ।
इस माहौल मे शाश्वत कुछ नहीँ है ।

मनुष्य-योनि परमात्मा ने दी हुई सर्वश्रेष्ठ योनि है । क्योकि यही वह योनि है जिस योनि मेँ प्रकृति से समरस होकर मोक्ष-प्राप्ति संभव है ।
इस प्रकृति के चक्र को चलानेवाली शक्ति परमात्मा है । और परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है यह परमात्मा का रहस्य मनुष्य समज नही पाता है ।"
-H.H.Shivkrupanand Swamiji
From:'Adhyatmik Satya'

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