हम दुनियाभर की खोज करते है , पर अपने -आपको कभी नहीं खोजते है ।
हम दुनियाभर की खोज करते है , पर अपने -आपको कभी नहीं खोजते है । जो खोज करना आवश्यक है , वह छोड़कर बाहर सब खोजते रहते है । औऱ जैसे ही यह प्रश्न जानने का प्रयास करते है , तो हमारी भीतर की यात्रा प्रारंभ हो जाती है । औऱ जब भीतर की यात्रा प्रारंभ हो जाती है , तो हम जानते है -"शरीर औऱ "मैं " अलग -अलग है । "औऱ "मैं " शरीर से अलग हो जाता है औऱ एक आध्यात्मिक क्रांति घटित होती है ।
पूज्य गुरुदेव ...
ही.का.स.योग...खंड १
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