'समर्पण परिवार' का निर्माण समाज में से हुआ


मैं बार-बार कहता हूँ और आज फिर से कह रहा  हूँ कि मेरी स्थिति गंगा नदी जैसी है जिसमें अच्छे , स्वच्छ और 'पवित्र घाट' भी हैं , और गंदे और प्रदूषित घाट  भी हैं। गंगा नदी को स्वीकार करना ही पड़ता है। ठीक इसी प्रकार से , 'समर्पण परिवार' का निर्माण समाज में से हुआ है , इसमें भी वे सभी बुराइयाँ होंगी जो समाज में हैं। यह एक समाज का 'प्रतिनिधित्व' करता है लेकिन इसमें आनेवाले लोग वे लोग हैं जिनके अच्छे कार्य आरंभ होने वाले हैं , जिनकी दिशा 'आध्यात्मिक प्रगति' की ओर है लेकिन हुई नहीं है , होने वाली है। किसी की इस जनम में होगी तो किसी की 'अगले जनम' में। 'आत्मसाक्षात्कार' का महत्व किसी को अभी 'समझ' में आएगा तो किसी को देहत्याग करते समय 'समझ' में आएगा। लेकिन इसी जीवन में समझ में आएगा 'अवश्य', यह याद रखें।

सद्गुरु के हृदय से(२)/२८

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