आध्यात्मिक क्षेत्र में पवित्रता को बड़ा महत्त्व
इसीलिए आध्यात्मिक क्षेत्र में पवित्रता को बड़ा महत्त्व है। लेकिन मनुष्य शरीर स्तर पर होने के कारण पवित्रता का अर्थ केवल शरीर की शुद्धता जैसे नहाना , धोना आदि से लगाता है। पवित्रता कस अर्थ बड़ा विशाल है। आपके विचार , आपका चित्त यह सभी पवित्रता के ही क्षेत्र में आता है। तो प्रथम पवित्रता अपने भीतर पूर्ण स्थापित करें। यह आज्ञाचक्र वह चक्र है , जहाँ पहुँचकर मनुष्य के विचार बंद हो जाते हैं। यानी मनुष्य एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है , जब उसे निर्विचारिता की स्थिति प्राप्त हो जाती है । यह स्थिति कई प्रकार से प्राप्त हो सकती है। योगासन करने से भी प्राप्त होती है। यानी साँस लेते हुए यह आसन करो और साँस छोड़ते हुए यह आसन करो। यानी आसन करते समय आपका चित्त अगर साँस ले रहे हैं और साँस छोड़ रहे हैं इससे ऊपर हो तो भी मनुष्य के विचार बंद हो जाते हैं। या आप अगर अच्छे वादक हैं , तो वाद्य बजाते -बजाते भी उस निर्विचारिता की स्थिति तक पहुँच सकते हैं। या आप अगर किसी भगवान का भाव के साथ भजन करते हैं , तो भी आपको भजन गाते - गाते या सुनते - सुनते भी यह स्थिति प्राप्त हो जाती है। या आप किसी समाधि के स्थान पर जाते हैं और तो उस समाधि की समूहित शक्ति के कारण भी आपको एक सामुहिकता प्राप्त हो जाती है। यानी कई मार्ग हैं जिससे इस स्थान तक पहुँचा जा सकता है। इस स्थान पर पहुँचकर एक निर्विचारिता की स्थिति मनुष्य को प्राप्त हो जाती है। लेकिन यह निर्विचारिता की स्थिति याने ध्यान की स्थिति नहीं है।
भाग - ६ - २४६/२४७
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