विशुद्धि चक्र

यह विशुद्धि चक्र पर विराट तत्त्व हिता है। जब तक आप आपके भीतर परमात्मा एक है यह भाव नहीं ला पाते , आपको आपके जीवन में यश नहीं मिलता है। परमात्मा एक ही है , यह भाव आपके भीतर स्थापिक हो जाने के बाद ही आपका विराट तत्त्व खुलता है। आध्यात्मिक प्रगति तो आत्मानुभूति पर ही निर्भर करती है। जब तक यह विराट भाव हमारे भीतर स्थापित नहीं होता , हमे आनुभूति ही नहीं हो सकती है। अनुभूति होना इस ध्यानमार्ग की प्रथम पादान है। फिर प्राप्त अनुभूति को ही हम साधना करके विकसित कर सकते हैं। लेकिन जिनका यह चक्र पकड़ा होता है  , उनमें संवेदनशीलता का अभाव होता है और इसी कारण शरीर में जड़त्व होता है और उन्हें आनुभूतिय अनुभव ही नहीं होता है। जिस प्रकार से बीज बोने के बाद कुछ दिनों बाद अंकुरित होता ही है , ठीक इसी प्रकार से , आनुभूति कराने के बाद आनुभूति नहीं हो रही है , यह यही चक्र की खराबी के कारण होता है। दूसरा , धार्मिक कट्टरता भी इस चक्र को खराब करती है। आप परमात्मा के एक रूप को मानते हो और अन्य रूप को नहीं। वास्तव में , परमात्मा का तो कोई रूप ही नहीं है , स्वरूप है। वह भी विश्वचेतना के स्वरूप में। जो भी रूप हम मानते हैं , वो भी हमने ही निर्माण किया हुआ है।

- भाग - ६ -२३९

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