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Showing posts from September, 2019

सशक्त चित्त की सामूहिकता

••◆ जब आप मन की मनोदशा से ऊपर उठते हो , जब आप जीवन में सुख और दुख की स्थिति से ऊपर उठते हो तब आपके चित्त का नवनिर्माण प्रारंभ होता है। ••◆ एक छोटासा विचार आपके जीवन में एक पानी के बुल-बुले के समान आता है और जाता है। ऐसा पानी के बुल-बुले के समान क्षणिक-सा विचार आप के चित्त पर इतना प्रभाव नहीं डालता , लेकिन . . अधिक समय तक रहने वाला विचार आपके चित्त को प्रभावित करता है और ऐसे विचारों से आपका चित्त प्रभावशाली होता है। ••◆ इसलिए ऐसे कई विचार आपके मन में चलते रहते हैं , तो जो ऊर्जा शक्ति आपके चित्त को ग्रहण करनी चाहिए , वह ग्रहण नहीं कर पाता। ••◆ इसलिए चित्त को शुद्ध करने के लिए , चित्त को पवित्र करने के लिए आवश्यक है - सशक्त चित्त की सामूहिक शक्ति। ••◆ कोई भी साधक अपने चित्त को कितना भी सशक्त करना चाहे , कितना भी मजबूत करना चाहे , कितना भी स्ट्रॉन्ग करना चाहे , फिर भी वह स्वयं अकेले नहीं कर सकता। ••◆ अपने चित्त को सशक्त करने के लिए आपको सशक्त चित्तो की सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है। और सामूहिक शक्ति से जुड़ने के लिए , सामूहिक शक्ति के साथ संबंध स्थापित करने के लिए एक ही उपाय है , वह है

🌺नवरात्रि का विशेष संदेश🌺

सभी आजीवन साधकों को मेरा नमस्कार . . . आज से नवरात्रि का उत्सव प्रारंभ होने जा रहा है। *यह उत्सव शक्तियों की 'उपासना' का बड़ा अच्छा अवसर है आपने 'उपासना का मार्ग' गुरुकार्य को माना है। मैंने स्वयं ने भी यही मार्ग चुना था और आज जीवन के उत्तरार्ध में यह महसूस कर रहा हूँ की मेरा यह निर्णय जीवन का 'सर्वश्रेष्ठ निर्णय था।'* अब शक्तियों की उपासना 'गुरुकार्य' को ही सर्वश्रेष्ठ करके ही की जा सकती है। क्योंकि *गुरुकार्य वह 'उपासना' है , जो 'जीव को शिव' से मिलाती है।* इसलिए , गुरुकार्य केवल और केवल आत्मिक स्तर पर ही घटित हो सकता है। *'माँ विश्वशक्ति' आप के भीतर है।* यह गुरुकार्य तो केवल उस तक पहुँचने की प्रक्रिया मात्र है। यह इस प्रकार से हो सकता है : *(१) सर्वश्रेष्ठ कार्य करो :* आप कोई भी कार्य करो , वह सदैव सर्वश्रेष्ठ करने की ही आदत डालो। कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है। *(२) अपनी क्षमता से अधिक कार्य करो :* सदैव अपनी क्षमता से अधिक कार्य करो। मैं बचपन में कुस्ती खेलता था , तो सदैव अपने से बड़े शक्तिशाली पहलवान से खेलता था , त

आत्मिक प्रगति

◆ *अकेला व्यक्ति कभी भी स्वयं की प्रगति , स्वयं की प्रोग्रेस नहीं कर सकता है।* इसलिए मैं बार-बार सेंटरो की , सामूहिकता की बात बताते रहता हूँ। ताकि बार-बार सामूहिकता की बात उठाकर के आपको जाने-अनजाने में संकेत देता रहता हूँ। क्योंकि *बिना सामूहिकता के आत्मिक प्रगति संभव ही नहीं है।* ◆ प्रत्येक क्षण , प्रत्येक समय आवश्यक नहीं कि हम सकारात्मक हों ही , लेकिन जब हम सकारात्मक लोगों के बीच रहते हैं , जब हम सकारात्मक लोगों के सान्निध्य में रहते हैं तो जाने-अनजाने में हमारे भीतर का सकारात्मक भाव स्वयं ही बहने लग जाता है और बहने के बाद कब हम हमारी आत्मिक प्रगति की ओर , हमारे आत्मिक पादान की ओर आगे चले गए , आगे हो लिए , हमें हमारा भी पता नहीं चलता है। ◆ *इसलिए आप ध्यान के ऊपर ध्यान मत दो , ध्यान के ऊपर प्रयत्न मत करो , आप सिर्फ उस अनुभूति के ऊपर एकाग्रता करो , उस अनुभूति पर चित्त रखो , जो अनुभूति आपके जीवन में एक नया बदलाव , एक नया चेंज , एक नया दिन , एक नई दुनिया निर्माण कर सकती है।* *🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹* *गुरुपूर्णिमा महोत्सव - २००४ , नवसारी* मधुचैतन्य (पृष्ठ : १६,१७) जु

🕊मुक्त अवस्था - मोक्ष 🍃

आप अपने पूण्य कर्मों के कारण मेरे तक पहुंचे हो । अब वे समाप्त हो गये है । अब फिर हम जीवन में फिर मिलेंगे या नहीं, इसलिए कहता हूं - अपनी आत्मा को ही गुरु बनाओ तो गुरु के रूप में मैं आपके भीतर ही रहुंगा । जब चाहो, तब आप मुझसे मिल सकते हो । मुझ तक पहुंचना बहुत बड़ा कठीण है क्योंकि मैं शरीर नहीं हु । मैंने शरीर धारण किया है । इसलिए आज पहुंच ही गए हो तो जीवन के इस रहस्य को जान लो और आत्मा के अधीन जीवन जीना प्रारंभ करो । यह सब एकदम नहीं होगा । यह कोई चमत्कार नहीं होगा । आज तो केवल मैंने आपके जीवन को एक नई दिशा दी है । अब अगर इसी दिशा से आप चले तो वहा अपने इसी जीवन में पहुंचोगे, जिस स्थिति को मुक्त अवस्था या 'मोक्ष' कहते हैं । मैंने तो आपको सही दिशा बताने का कार्य किया है। अब मेरा कार्य तो यहां समाप्त होता है। अब आज से आपका कार्य प्रारंभ होगा। आपका बाबा स्वामि HSY - 6/48

🌺 गुरु 🌺

◆ गुरु कोई तुलना करने की चीज नहीं है। दो गुरुओं की तुलना कभी भी नहीं करनी चाहिए। गुरु एक ही होना चाहिए , तब ही चित्त की एकाग्रता एक ही स्थान पर हो सकती है। जिस तरह से मेरे जीवन में एक ही गुरु थे और उन्होंने ही दूसरे गुरु तक पहुँचाया। ◆ गुरु क्या करते हैं , उसके ऊपर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है , क्योंकि वह आपकी समझ से बाहर है। गुरु जो कहते हैं , वह भी आपकी समझ से ऊपर है। इसलिए गुरु सिर्फ अनुभव करने की चीज है। उनके सान्निध्य में आपको क्या अनुभव होते हैं , उन पर ध्यान दीजिए। आपके दोषों को दूर करने के लिए गुरु कुछ भी करते हैं , उस पर ध्यान न देकर उनके सान्निध्य में आपको क्या अनुभव होते हैं , उसी पर ही गौर करें। उसके लिए धीरज और संयम की आवश्यकता है। ◆ गुरु और हमारे बीच बहुत बड़ा आध्यात्मिक अंतर होता है। इसलिए उनकी बात हमें बहुत देर से समझ में आती है। आज तक ऐसा कोई भी साधक नहीं है जो गुरु को पूर्णतः समग्रता से जान सके , क्योंकि उसकी जिस दृष्टिकोण से प्रगति हुई हो , उसी दृष्टिकोण से वह पहचान सकता है। जब उसकी पूर्णता से प्रगति होती है , तब वह उनको समझ सकता है। ◆ शिष्य कोई भी स्थिति में ह

मेरे ऑरा की समस्या

*सभी पुण्यात्माओं को मेरा नमस्कार . . .* आप लोग बार-बार आपकी समस्या लेकर मेरे पास आते हो। *आज पहली बार और आखरी बार मैं मेरी समस्या लेकर आपके पास आया हूँ* क्योंकि इस समस्या का हल आप ही के पास है , क्योंकि यह समस्या भी आप ही के कारण निर्माण हुई है। *"आप ही ने दर्द दिया है। अब आप ही दवा देना ,"* यह सोचकर मैं यह समस्या आपके सामने रख रहा हूँ। मेरी समस्या , ऑरा (आभामंडल) की समस्या है। जब मेरा शरीर आपसे सैकड़ों मील दूर रहता है , तो मुझे शरीर में गर्मी की समस्या नहीं होती है और मैं ठीक रहता हूँ। लेकिन *जब आप लोग मेरे स्थूल शरीर के आसपास रहते हो , तो मुझे गर्मी की तकलीफ शरीर में होने लगती है।* अभी जब मैं लेख लिख रहा हुँ , तब मैं आपसे सैकड़ों मील दूर हुँ , यहाँ मेरे आसपास सैकड़ों मिल तक कोई साधक नहीं है। अभी मैं ठीक हूँ और ऐसा अनेक बार दूर जाने पर अनुभव हुआ है। जैसे सिक्किम - 'नाथूला पास' गया था , तब भी यही अनुभव रहा है। और आज भी यही अनुभव आ रहा है। यहां अच्छा केवड़ा का जंगल है। उसमें मैं ध्यान साधना कर रहा हूँ। इसका सीधा अर्थ है। *आप लोग नियमित ध्यान नहीं करते हैं और दूसरा

साधना

मुझे लगा था, गुरुसानिध्य से मोक्ष प्राप्ति होगी | शायद जानती न थी कि गुरुसानिध्य मोक्ष मार्ग तक हमें पहुँचाता है, *ध्यान साधना करने को प्रेरित करता है किंतु साधना स्वयं करनी होती है  , मोक्ष की स्थिति साधना से ही संभव है......   माँ  पुष्प-२ पृ-२६२

माँ का कर्तव्य

◆ *माँ का कर्तव्य है कि बच्चे को सही रास्ता बताए , सही मार्ग बताए। अन्यथा , भविष्य में अगर कुछ गलत हुआ , तो उसका जिम्मेदार आप नहीं मैं रहूँगा।* इसलिए सही वक्त पर सही बात कहने का आज समय आ गया है। आज वही समय है , इस समय यह बात नहीं कही गई , तो बहुत देर हो जाएगी। ◆ हम देखते है, एखादे बच्चा , एखादे पतरे के खिलौने से खेलते रहता है। और माँ को दिखता है कि मेरा बच्चा पतरे के खिलौने से खेल रहा है , खेलने के बाद मुँह में डाल रहा है। और यह मुँह में डालेगा , इसका होठ कटेगा। मुँह में से खून निकलेगा। तो बच्चा रोता है , फिर भी माँ उस खिलौने को छीन लेती है। ◆ वह रोता है , फिर भी वह खिलौना उसे नहीं देती। क्योंकि वह जानती है - आज यह रोया ठीक है , लेकिन अगर उसको खेलने दिया तो वह जिंदगी भर रोएगा। उसकी जुबान कट जाएगी। ◆ ठीक इसी प्रकार से आज *आपको भी उस खिलौने से दूर होना पड़ेगा* , जिस खिलौने से आपकी जुबान कट सकती है , जिस खिलोने से आपको हानि हो सकती है , जिस खिलौने से आपको नुकसान हो सकता है। चाहे वह खिलौना हटाने के बाद , आपसे दूर करने के बाद आप रोएँगे , आपको तकलीफ होगी। ◆ *लेकिन यह तकलीफ , यह रोना क्षण

ગહન ધ્યાન અનુષ્ઠાન

જય બાબા સ્વામી 🌹 ગહન ધ્યાન અનુષ્ઠાન એ સમય છે કે જ્યારે પરમ પૂજ્ય સ્વામીજી એકાંતમાં ૪૫ દિવસ ધ્યાન કરે છે, આ સમયે ખૂબ જ ચૈતન્ય પૂર્ણ વાતાવરણ દાંડી આશ્રમ તેમજ સર્વત્ર થઈ જતું હોય છે, સમગ્ર ગુરુ શક્તિઓ જાણે હિમાલયમાંથી દાંડીમાં સ્થિત થઈ ગઈ હોય તેઓ તીવ્ર અનુભવ થાય છે...🙏🏻 શિવરાત્રીએ ૪૫ દિવસ પૂરા થાય તે રીતે ગહન ધ્યાન અનુષ્ઠાન નું આયોજન થતું હોય છે, આ સમયે સ્વામીજી કુટીરમાં રહે છે તેની આસપાસ મોટા પતરાની બોર્ડર બનાવવામાં આવે છે અને બહાર એક મોટા ઉત્સવ જેવું વાતાવરણ થતું હોય છે , જેમાં સવારે સાડા ચારથી સાડા પાંચ સામૂહિક મૌન ધ્યાન, છથી સાત મંત્ર ધ્યાન ત્યારબાદ યોગા અને પંડાલ માં શિબિરનું આયોજન થતું હોય છે, સાંજે મંત્ર ધ્યાન તથા દર ગુરુવારે ભજનનું આયોજન થતું હોય છે🙏🏻🙏🏻 સૌથી મહત્વની વાત એ છે કે સમગ્ર સમર્પણ ધ્યાન પરિવારમાંથી આશરે ૧૦૦ જેટલા સાધક સાધિકાઓનું અંદરથી અનુષ્ઠાન માટે સિલેક્શન( ચયન) થતું હોય છે, તેઓ સ્વામીજીના નજીકના ઓરા માં પ્રવેશ કરી ગુરુ કાર્ય ( સિક્યુરિટી ,ભોજન, ગાર્ડનિંગ, ધ્યાનકક્ષ વગેરે ગુરુ કાર્ય )કરી શકે છે. સિલેક્શન થયા પછી ત્યાં રહેવાનું જમવાનું બધું જ નિશુલ્ક હોય છે☺

पंढरीनाथ

◆ महाराष्ट्र में पंढरपुर गाँव में विठ्ठल-कृष्ण का बहुत बड़ा मंदिर है। जहाँ कृष्ण भगवान की मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है। कृष्ण का स्वरूप काले रंग का होने के बावजूद भी उनके भक्त उन्हें पंढरीनाथ (सफेद देव) कह कर बुलाते हैं। ◆ *मूर्ति का रूप काला है , पर भक्त को उनका श्वेतस्वरूप नजर आता है। इसलिए वे पंढरीनाथ कह कर पुकारते हैं* (मराठी भाषा में पांढरा का अर्थ सफेद होता है)। ◆ *भक्त की दृष्टि उनके बाहरी रूप को न देखते हुए उनके भीतरी रूप पर रहती है जो शक्ति का स्त्रोत है। भक्त उस कक्षा में पहुँच जाते हैं कि उनको सिर्फ वह ऊर्जा का स्रोत ही दिखता है।* ◆ भक्त भगवान को चर्मचक्षु से नहीं , पर भीतर की आँख से , जो आत्मा की आँख है उससे देखता है। *आपकी अंदर की आँख जब खुल जाती है तब आपके चर्मचक्षु बंद हो जाते हैं।* ◆ एक बार अगर आपकी भीतर की आँख खुल गई , फिर बाहरी कवच , बाहरी शरीर के दोष हमें दिखते नहीं हैं। बाहरी कवच को देखनेवाली आँख हमें भ्रमित कर सकती है। वे आँख हमें उसका दर्शन कराती है जिसे देखने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है। ◆ पर जब हम आँखों को मूँद लेते हैं , तब हमें यथार्थ दर्शन होते हैं ,

मौन ध्यान

जिस स्थान पर बातें की जाती हैं वहाँ बातों तथा बात करने वालों के अनुसार ऊर्जा संचित होती है कितु जहाँ मौन रहा जाता है वहाँ ऊर्जा का स्तर अच्छा होने की संभावना अधिक होती है। बात-बात में अनेक विषय निकलते हैं तथा विभित्र विषय विभित्र विचारों की जन्म देते हैं। इसके अलावा मौन की अपनी ऊर्जा होती है। जिन स्थानों पर ध्वनितरंगे न हो वहाँ ध्यान करना आसान होता है। श्री   गुरुशक्तिधाम ध्यान करने का स्थान है। वहाँ मौन ध्यान ही किया जाना चाहिए ताकि वहाँ मौन की ऊर्जा बनी रहे। मंगलमूर्ति की ऊर्जा तथा श्री गुरुशक्तिधाम की मौन ऊर्जा मिलकर उस स्थान को ध्यान के लिए श्रेष्ठ स्थान बनाती है। आपकी - पूज्या गुरुमाँ

समर्पण की ट्रेन

समर्पण की ट्रेन में स्टेशन निश्चित करके मत चढ़ो, कोई इच्छा लेकर मत आओ, क्योकि वह इच्छा तो अवश्य पूर्ण होगी पर ध्यान छूट जाएगा। मैं तो गुरु के सानिध्य में रहने के लिए चढ़ा था, तो कोई भी स्टेशन रास्ते मे लगे तो क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि गुरु का तो अंतिम स्टेशन ही लक्ष्य है। इस यात्रा में, रास्ते मे कई सुंदर वातानुकूलित स्टेशन आएंगे, आपको उतारने के लिए आकर्षित भी करेंगे, गुरु आपको भागने का मौका भी देगे, उस सुंदर स्टेशन पर ट्रेन अधिक समय रुकेगी भी। लेकिन उतरना मत। क्योकि यह ट्रेन का रुकना ही तुम्हरी परीक्षा है। आप आपका ध्यान सद्गुरु पर ही बनाये रखो, तो रास्ते में कौन से स्टेशन आ रहे है वह दिखेंगे भी, तो फिर रास्ते में उतरने का प्रश्न ही नही उठता है। पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामी आत्मा की आवाज", पेज-९९