गंगा का अवतरण
हे गुरुदेव ! उन्हें समझाईये *ये उन्हें आसानी से नहीं मिला है , आसानी से मिला ऐसा लगता है पर वास्तव में ऐसा है नहीं। जन्मों जन्मों की तपस्या के बाद मिला है। और ऐसी दिव्य अनुभूति को पाकर भी वह उसे आत्मसात् नहीं कर पा रहे हैं।* उन्हें बस वह निवाला निगलना है। हे परमात्मा उन्हें वह दिव्य अनुभूति का निवाला निगलने की बुद्धि दे , बस और क्या! अभी भी वे ख़ोज रहे हैं , क्या ख़ोज रहे हैं , पता नहीं। अभी भी वे देख रहे हैं , क्या देख रहे है, पता नहीं। अभी भी वह सोच रहे हैं , क्या सोच रहे हैं पता नहीं। हे परमात्मा ! उनकी दृष्टि को बदल। उनके चित्त की दिशा को बदल। *हे ईश्वर , अब या तो उन्हें उनका पूर्वजन्म याद करा या तो मुझे मेरा पूर्वजन्म भुला दे। यह तेरा न्याय कैसा है ? मुझे सब जन्म याद है , और वह केवल मुझे ही क्यों याद हैं ? या तो मेरे साधकों को याद दिला दे या तो मुझे सब कुछ भुला दे।* सब कुछ याद रखकर चलना बड़ा कठिन है। सब जान कर अंजान बनना बड़ा कठिन है। यह अंजान बनने का नाटक मैं कब तक करूँ ? दस सालों से यह नाटक कर रहा हूँ। इसलिए उन्हें उनके पूर्वजन्म का एहसास करा दे ताकि ईश्वरीय अनुभूति का महत्व उनको समझ में आ जाएगा। *और यह सब करने में तेरी कुछ मज़बूरी हो तो एक कार्य कर , मुझे यह सब कुछ भूला दे। यह तेरा न्याय कैसा , चकोर को याद है , चाँद को नहीं ? या तो दोनों को याद करा दे या फिर दोनों को ही भूला दे।* या तो मेरे साधक को इस जगत के मायाजाल से बाहर निकाल या तो फिर उस मायाजाल में मुझे डाल दे। मैं कम से कम उनके साथ तो रहूँगा। *या तो उनके लिए स्वर्ग के द्वार खोल या मुझे नर्क में डाल दे। मैं नर्क में तो साधकों के साथ रहूँगा। एक दिन हम वहाँ भी स्वर्ग का निर्माण कर लेंगे।*
मैं सदैव उनके साथ उनके जैसा रहने का , उनके स्तर पर रहने का , उन्हें समझे ऐसी बातें करने का प्रयास करते रहता हूँ। *क्या मैं ही उनके स्तर पर जाऊँगा , वह मेरे स्तर पर आयेंगे ही नहीं ? मैं नीचले स्तर पर जा जा कर अब थक गया हूँ।* हे परमात्मा , तू एक एक साधक की मुझे संपूर्ण जानकारी देता है , सारा पूर्वजन्म का लेखा-जोखा बताया है। इतना सब कुछ जब एक क्षण में करता है , तो , मेरे साधक को , जीवन भर में भी एहसास नहीं कराता , वह कौन है , और किन जन्मों को ले वह आया है , और मेरा और उसका क्या सम्बन्ध है ? *सारे जन्मों के सम्बन्ध क्या मैं ही याद रखु ? उसे एक जन्म की तो याद करा दे , मुझे तो उसके आठ जन्मों का हिसाब बताया है। जब तू उसे एक जन्म की याद नहीं करा सकता तो मुझे क्यों उसके आठ जन्मों का हिसाब बताते रहता है ? या तो उसे कम से कम एक जन्म की तो भी याद करा दे या फिर मुझे उनके पूर्वजन्मों का बताना छोड दे। यह तेरा एक तरफा प्यार सहन नहीं होता है।* गुरुदेव , कितना कठिन है , ऐसे वातावरण में रहना कि आप उसके आठ जन्मों को जानते हो , और सामने वाला है कि वह आपको पहचानता भी नहीं है। इसलिये *अब या तो उन्हें याद करा दे या मुझे भूला दे।* मुझे इस समाज में आये सालों हो गये लेकिन अभी भी मैं यहाँ के वातावरण से समरस नहीं हो पा रहा हूँ। प्रत्येक क्षण बस यही चलते रहता है। गुरुदेव , प्रत्येक आत्मा गलती दोहराती क्यों है ? एक जन्म में जो गलती की वही गलती वह दूसरे जन्म में भी फिर दोहराती क्यों है ? बार बार आत्मा उसी चक्र पर आकर क्यों अटक जाती है ? *प्रायः देख रहा हूँ कि जो साधक पिछले जन्म में जो गलती करता है वहीं गलती वह फिर दोहराता है , जब कि मैं वह जानता हूँ। उसे उस दोष से सतर्क भी करता हूँ , लेकिन वह उस सतर्कता को गंभीरता से नहीं लेता है और वह गलती वह फिर करता है।* क्या पूर्वजन्म का प्रभाव इस जन्म पर भी उतना ही होता है ? और जब यह बूरा भाव होता है तो साथ - साथ अच्छा भाव क्यों नहीं ? *उसे अच्छी भी बातें याद करवा जिन अच्छी बातों से उसे इस जन्म में यह दिव्य अनुभूति प्राप्त हुई है। दिन-प्रतिदिन समय बीतता जा रहा है और मेरे और साधक में 'अंतर' बढ़ रहा है। मेरे साधक मेरे साथ नहीं चल पा रहे हैं। यह मैं समझ पा रहा हूँ , लेकिन साधक नहीं समझ पा रहे हैं।* इसलिये आपकी कृपा उन पर हो और उनकी गति बढ़े , यही आपके चरणों में प्रार्थना है। और वह संभव न हो तो मेरी गति ही कम कर दे।
*🌹H. H. Swamiji🌹*
*-पूज्य स्वामीजी के आशीर्वचन*
मधुचैतन्य - २०११
जनवरी, फरवरी, मार्च
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