माँ का कर्तव्य
◆ *माँ का कर्तव्य है कि बच्चे को सही रास्ता बताए , सही मार्ग बताए। अन्यथा , भविष्य में अगर कुछ गलत हुआ , तो उसका जिम्मेदार आप नहीं मैं रहूँगा।* इसलिए सही वक्त पर सही बात कहने का आज समय आ गया है। आज वही समय है , इस समय यह बात नहीं कही गई , तो बहुत देर हो जाएगी।
◆ हम देखते है, एखादे बच्चा , एखादे पतरे के खिलौने से खेलते रहता है। और माँ को दिखता है कि मेरा बच्चा पतरे के खिलौने से खेल रहा है , खेलने के बाद मुँह में डाल रहा है। और यह मुँह में डालेगा , इसका होठ कटेगा। मुँह में से खून निकलेगा। तो बच्चा रोता है , फिर भी माँ उस खिलौने को छीन लेती है।
◆ वह रोता है , फिर भी वह खिलौना उसे नहीं देती। क्योंकि वह जानती है - आज यह रोया ठीक है , लेकिन अगर उसको खेलने दिया तो वह जिंदगी भर रोएगा। उसकी जुबान कट जाएगी।
◆ ठीक इसी प्रकार से आज *आपको भी उस खिलौने से दूर होना पड़ेगा* , जिस खिलौने से आपकी जुबान कट सकती है , जिस खिलोने से आपको हानि हो सकती है , जिस खिलौने से आपको नुकसान हो सकता है। चाहे वह खिलौना हटाने के बाद , आपसे दूर करने के बाद आप रोएँगे , आपको तकलीफ होगी।
◆ *लेकिन यह तकलीफ , यह रोना क्षणमात्र के लिए है , थोड़े समय के लिए है , थोड़े वक्त के लिए है। थोड़े वक्त के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा , सबकुछ अच्छा हो जाएगा।*
◆ आज मेरी अवस्था एक माँ के समान है , जिस माँ को एक बच्चा होता है। माँ बड़े आनंद से , माँ बड़े प्रेम से उस बच्चे को स्तनपान कराती है। और स्तनपान कराकर एक आत्म-अनुभव स्वयं ही प्राप्त करती है। लेकिन छ महीनों के बाद, साल भर बाद, बच्चा स्वयं दूध पीना सीख जाता है। स्वयं अन्नप्राशन करना शुरू कर देता है। अन्न ग्रहण करना शुरू कर देता है।
◆ *लेकिन मेरे अवस्था तो उस माँ जैसी है , जिसका पहला बच्चा भी दूध पी रहा है , दूसरा बच्चा भी दूध पी रहा है , तीसरा बच्चा भी दूध पी रहा है , चौथा बच्चा भी दूध पी रहा है।*
◆ तो आप कल्पना करो , उस माँ की स्थिति क्या होगी , जिसके चारों बच्चे उसके दूध पर ही निर्भर है। कोई भी बच्चा स्वावलंबी नहीं है। *कोई भी बच्चा खुद दूध पीना नहीं सीखा है , पूर्णतः माँ के ऊपर ही निर्भर है। और माँ के देह की एक सीमा है।* उस सीमा से अधिक दूध वह नहीं दे सकती। उसके यहाँ जो व्यवस्था है , वह एक बच्चे के लिए है , चार बच्चों के लिए नहीं। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा हो जाता है , वैसे वह स्तनपान करना बंद कर देता है। खुद अन्नग्रहण करना सीख लेता है।
◆ *लेकिन ऐसा हमारे पंथ में नहीं हुआ है। जो पाँच साल के हैं , वे भी आज चैतन्यरूपी दूध के लिए मुझ पर निर्भर है। चार साल के हैं , वे भी आज चैतन्यरूपी दूध के लिए मुझ पर निर्भर हैं। तीन साल के हैं , वह भी चैतन्यरूपी दूध के लिए मुझ पर निर्भर हैं। दो साल के हैं , वह भी चैतन्यरूपी दूध के लिए मुझ पर निर्भर हैं।*
◆ और *आज जो नन्हा-सा बच्चा है , उसका तो निर्भर रहना स्वाभाविक है। उसका हक है। लेकिन उसका हक यह सारे बच्चे मार रहे हैं।* उसको उतना दूध नहीं मिल पा रहा है जितना दूध मिलने की आवश्यकता है , जितना दूध मिलना चाहिए। इसलिए नहीं मिल पा रहा है - जिनको आवश्यकता नहीं है , वे भी उसी दूध के ऊपर निर्भर है।
◆ तो मेरा कहना यही है कि *आप आत्मनिर्भर बनिए।* आप स्वावलंबी बनिए और स्वावलंबी बनकर खुद विश्वचेतना ग्रहण करना सीख जाईए।
◆ *मुझ पर डिपेंड (निर्भर) मत रहिए। मैं आपके जीवन में आपको सशक्त करने के लिए आया हूँ , आपको मजबूत करने के लिए आया हूँ , आपको स्ट्रॉन्ग करने के लिए आया हूँ , मेरे ऊपर निर्भर करने के लिए नहीं।*
*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
*गुरुपूर्णिमा महोत्सव - २००५ (नवसारी)*
मधुचैतन्य (पृष्ठ : १९)
जुलाई-अगस्त-सितंबर २००५
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