सशक्त चित्त की सामूहिकता
••◆ जब आप मन की मनोदशा से ऊपर उठते हो , जब आप जीवन में सुख और दुख की स्थिति से ऊपर उठते हो तब आपके चित्त का नवनिर्माण प्रारंभ होता है।
••◆ एक छोटासा विचार आपके जीवन में एक पानी के बुल-बुले के समान आता है और जाता है। ऐसा पानी के बुल-बुले के समान क्षणिक-सा विचार आप के चित्त पर इतना प्रभाव नहीं डालता , लेकिन . . अधिक समय तक रहने वाला विचार आपके चित्त को प्रभावित करता है और ऐसे विचारों से आपका चित्त प्रभावशाली होता है।
••◆ इसलिए ऐसे कई विचार आपके मन में चलते रहते हैं , तो जो ऊर्जा शक्ति आपके चित्त को ग्रहण करनी चाहिए , वह ग्रहण नहीं कर पाता।
••◆ इसलिए चित्त को शुद्ध करने के लिए , चित्त को पवित्र करने के लिए आवश्यक है - सशक्त चित्त की सामूहिक शक्ति।
••◆ कोई भी साधक अपने चित्त को कितना भी सशक्त करना चाहे , कितना भी मजबूत करना चाहे , कितना भी स्ट्रॉन्ग करना चाहे , फिर भी वह स्वयं अकेले नहीं कर सकता।
••◆ अपने चित्त को सशक्त करने के लिए आपको सशक्त चित्तो की सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है। और सामूहिक शक्ति से जुड़ने के लिए , सामूहिक शक्ति के साथ संबंध स्थापित करने के लिए एक ही उपाय है , वह है - ध्यान , वह है - मेडिटेशन।
••◆ क्योंकि जब तक आप सामूहिकता में नहीं रहते , तब तक आपका चित्त सशक्त नहीं हो सकता , स्ट्रॉन्ग नहीं हो सकता।
••◆ जीवन में सारा खेल इसी चित्त का और चित्त-शक्ति का ही है।
••◆ आप आपके जीवन में , आपके चित्त को सशक्त करने में अगर आप सफल हो जाते हैं , तो जीवन की सारी सफलताएँ आपके कदम चूमेगी। लेकिन आवश्यक है , आपका चित्त सशक्त होना चाहिए , स्ट्रॉन्ग होना चाहिए।
🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹
गुढ़ी पाड़वा , वसई - महाराष्ट्र
- ट्रस्ट का पाँचवा वर्धापन दिन समारोह
२१ अप्रैल २००५
मधुचैतन्य (पृष्ठ : १५)
अप्रैल, मई, जून - २००५
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