पंढरपुर
● शिर्डी में शिविर के दौरान जिस किसान के घर में मैं दस दिन रुका हुआ था_, उसने अपने पंढरपुर की वारी के बड़े सुंदर-सुंदर , अच्छे-अच्छे अनुभव बताए ।
● अठ्ठाईस दिन का कार्यकाल रहता है ।
● इस अठ्ठाईस दिन के कार्यकाल में रोज पैदल-पैदल , चलते-चलते , ये सभी लोग पंढरपुर की ओर रवाना होते हैं ।
● एकादशी के दिन सभी लोग पंढरपुर पहुँचते हैं ।
● उस किसान ने अपना अनुभव बताया कि *सब का लक्ष्य केवल 'विठ्ठल' होता है ।*
● लेकिन विठ्ठल एक निमित्य है ।
● हम शरीर से ही आत्मा की ओर जाने का प्रयास करते हैं और पूरे सालभर अपने संसार में, अपने परिवार में, अपने समाज में इतने लिप्त होते हैं कि एकसाथ, एक क्षण में शरीर से आत्मा की ओर प्रयास करना कठिन होता है ।
● इसलिए_, इस वारी का हम सहारा लेते हैं और अठ्ठाईस दिन में एक लयबद्ध तरीके से, एक क्रमबद्ध तरीके से और एक लक्ष्य को सामने रखकर हम पंढरपुर की ओर रवाना होते हैं ।
● और *जैसे-जैसे पंढरपुर की ओर जाते हुए एक-एक दिन बीतता है, हमारे अंदर भी आध्यात्मिक प्रगति होना प्रारंभ हो जाती है ।*
● यह हमारा 'रिफ्रेशर कोर्स' (पुनराभ्यास सत्र) है अठ्ठाईस दिन धीरे-धीरे, धीरे-धीरे हम उस स्तर को प्राप्त कर लेते हैं_ जहाँ शरीर के सुख सुविधाओं की, शरीर के विचारों की, शरीर की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती, कोई स्थान ही नहीं रहता ।
● *सब लोग एक दूसरे को 'माऊली' संबोधित करते हैं और संबोधित करते-करते हमारी अपनी एक सामुहिकता निर्माण हो जाती है ।*
● *फिर किसी से पहचान हो, न हो, किसी से जान-पहचान हो, न हो, प्रत्येक मनुष्य हमें अपना-सा लगना प्रारंभ हो जाता है ।*
● इसलिए हर साल हम जीवन में कितनी भी तकलीफ में हो, कितनी भी परेशानी में हो, *पंढरपुर* की वारी पर जाने का मौका कभी नहीं गँवाते _, हर साल हम वहाँ जाते ही रहते हैं ।
● *तो_, वहाँ जाने से उनको पूरे सालभर कार्य करने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है ।*
*🌹H. H. Swamiji🌹*
*गुरुपूर्णिमा महाशिविर - २०१३ , समर्पण आश्रम , दांडी*
मधुचैतन्य (पृष्ठ : १७,१८)
जुलाई, अगस्त, सितंबर - २०१३
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