आत्मिक प्रगति
◆ *अकेला व्यक्ति कभी भी स्वयं की प्रगति , स्वयं की प्रोग्रेस नहीं कर सकता है।* इसलिए मैं बार-बार सेंटरो की , सामूहिकता की बात बताते रहता हूँ। ताकि बार-बार सामूहिकता की बात उठाकर के आपको जाने-अनजाने में संकेत देता रहता हूँ। क्योंकि *बिना सामूहिकता के आत्मिक प्रगति संभव ही नहीं है।*
◆ प्रत्येक क्षण , प्रत्येक समय आवश्यक नहीं कि हम सकारात्मक हों ही , लेकिन जब हम सकारात्मक लोगों के बीच रहते हैं , जब हम सकारात्मक लोगों के सान्निध्य में रहते हैं तो जाने-अनजाने में हमारे भीतर का सकारात्मक भाव स्वयं ही बहने लग जाता है और बहने के बाद कब हम हमारी आत्मिक प्रगति की ओर , हमारे आत्मिक पादान की ओर आगे चले गए , आगे हो लिए , हमें हमारा भी पता नहीं चलता है।
◆ *इसलिए आप ध्यान के ऊपर ध्यान मत दो , ध्यान के ऊपर प्रयत्न मत करो , आप सिर्फ उस अनुभूति के ऊपर एकाग्रता करो , उस अनुभूति पर चित्त रखो , जो अनुभूति आपके जीवन में एक नया बदलाव , एक नया चेंज , एक नया दिन , एक नई दुनिया निर्माण कर सकती है।*
*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
*गुरुपूर्णिमा महोत्सव - २००४ , नवसारी*
मधुचैतन्य (पृष्ठ : १६,१७)
जुलाई, अगस्त, सितंबर - २००४
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