समर्पण की ट्रेन

समर्पण की ट्रेन में स्टेशन निश्चित करके मत चढ़ो, कोई इच्छा लेकर मत आओ, क्योकि वह इच्छा तो अवश्य पूर्ण होगी पर ध्यान छूट जाएगा। मैं तो गुरु के सानिध्य में रहने के लिए चढ़ा था, तो कोई भी स्टेशन रास्ते मे लगे तो क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि गुरु का तो अंतिम स्टेशन ही लक्ष्य है। इस यात्रा में, रास्ते मे कई सुंदर वातानुकूलित स्टेशन आएंगे, आपको उतारने के लिए आकर्षित भी करेंगे, गुरु आपको भागने का मौका भी देगे, उस सुंदर स्टेशन पर ट्रेन अधिक समय रुकेगी भी। लेकिन उतरना मत। क्योकि यह ट्रेन का रुकना ही तुम्हरी परीक्षा है। आप आपका ध्यान सद्गुरु पर ही बनाये रखो, तो रास्ते में कौन से स्टेशन आ रहे है वह दिखेंगे भी, तो फिर रास्ते में उतरने का प्रश्न ही नही उठता है।

पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामी
आत्मा की आवाज", पेज-९९

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी