गुरु साक्षात परब्रह्म
सदगुरु रूपी आग के पास आ जाने से अहंकार रूपी मैं का कपूर जल जाता है । यानी किसी सदगुरु का शिष्य बन जाना एक मैं के अहंकार को विसर्जित करने की बहुत बड़ी घटना है । इसलिए सदगुरु का प्रयास प्रत्येक शिष्य को गुरुशक्तियोँ के सामने झूकाना है । क्योंकि वह जानता है , गुरुशक्तियाँ अविनाशी है , मेरा शरीर तो नाशवान है , साधक ने गुरुशक्तियोँ के सामने झुकना चाहिए । एक साधक गुरुसत्ता के सामने नतमस्तक हुआ या नही , सदगुरु को कोई विशेष फर्क नही पड़ता है । पर फर्क पड़ता है तो साधक को., क्योंकि झुकनेका अवसर , खाली होने का अवसर साधक के जीवन में फिर से आएगा या नही , इस बात को सदगुरु जानता है , पर साधक नही । हमारी संस्कृति में हम जिन्हे भगवान मानते है , वे भी अपने गुरु को मानते थे । यानी सदगुरु की संस्कृति भारत में बहुत पुरानी है । इसीलिए कहा है " गुरु साक्षात परब्रह्म " याने गुरु ही प्रत्यक्ष परमात्मा का रूप होता है ।
✍..पूज्य गुरुदेव
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