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सभी आजीवन साधकों को मेरा नमस्कार . . .

आज से नवरात्रि का उत्सव प्रारंभ होने जा रहा है। *यह उत्सव शक्तियों की 'उपासना' का बड़ा अच्छा अवसर है आपने 'उपासना का मार्ग' गुरुकार्य को माना है। मैंने स्वयं ने भी यही मार्ग चुना था और आज जीवन के उत्तरार्ध में यह महसूस कर रहा हूँ की मेरा यह निर्णय जीवन का 'सर्वश्रेष्ठ निर्णय था।'*

अब शक्तियों की उपासना 'गुरुकार्य' को ही सर्वश्रेष्ठ करके ही की जा सकती है। क्योंकि *गुरुकार्य वह 'उपासना' है , जो 'जीव को शिव' से मिलाती है।* इसलिए , गुरुकार्य केवल और केवल आत्मिक स्तर पर ही घटित हो सकता है। *'माँ विश्वशक्ति' आप के भीतर है।* यह गुरुकार्य तो केवल उस तक पहुँचने की प्रक्रिया मात्र है। यह इस प्रकार से हो सकता है :

*(१) सर्वश्रेष्ठ कार्य करो :*
आप कोई भी कार्य करो , वह सदैव सर्वश्रेष्ठ करने की ही आदत डालो। कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है।

*(२) अपनी क्षमता से अधिक कार्य करो :*
सदैव अपनी क्षमता से अधिक कार्य करो। मैं बचपन में कुस्ती खेलता था , तो सदैव अपने से बड़े शक्तिशाली पहलवान से खेलता था , ताकि मेरी शक्ति बढ़ सके। भले ही उस समय वह मुझे पटक-पटक कर मारता हो।

*(३) भाव से गुरुकार्य करो :*
सदैव याद रखो कि मैं यह कार्य गुरु के लिए कर रहा हूँ। ऐसा भाव रखने से आपकी कार्यक्षमता भी बढ़ेगी और शारीरिक थकान भी कभी अनुभव नहीं होगी और आत्मशांति अनुभव होगी वह अलग।

*(४) सदैव गुरुचरण पर चित्त हो :*
आप जब कार्य कर रहे हैं तो आपका चित्त भी गुरुचरण पर ही होना चाहिए। इससे आसपास के स्थान और आसपास के बुरे व्यक्तियों के प्रभाव से बचे रहोगे। ऐसा स्वयं मैंने किया है।

*(५) सदैव सचेत रहो :*
कार्य करते समय 'सदैव सचेत' होकर कार्य करना चाहिए। *'आप भी किसी को मत लूटो और दुनिया भी आपको न लुटे।' यह सदैव याद रखो , बाधित लोग मुझ तक तो नहीं पहुँच सकते , लेकिन मेरे बच्चों तक तो पहुँच सकते हैं।* और वह तुम्हारे ऑरा में भी न आए , तुम्हारे करीब भी न आए , ऐसा चाहते हो , तो अपना 'मैं' का अहंकार छोड़ दो , आप नहीं 'स्वामी साक्षात आपके माध्यम से काम करेंगे।'

*(६) अनिश्चितता छोड़ो :*
आप जो कभी-कभी अपने-आपको अनिश्चितता के वातावरण में डालते हो , वह छोड़ो। कभी सोचते हो यहाँ रहना है , कभी सोचते हो मैं यहाँ नहीं रह सकता। लेकिन सदैव याद रखो , यहाँ से तो किसी भी क्षण जा सकते हो , लेकिन वापस कभी न आने के लिए। क्योंकि मेरे करीब आने के लिए मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षी भी लाइन में लगे रहते हैं। पिछले दस दिनों से ६ तोते मेरी खिड़की में आकर मुझे पुकार रहे हैं। आप जैसे अनिश्चित वातावरण में मैं कभी भी किसी गुरु के सानिध्य में नहीं रहा। *आप समर्पण ध्यान का भविष्य हो। मैं मेरे बच्चों के बारे में एक क्षण भी नहीं सोचता हूँ और कोई एक क्षण ऐसा नहीं है , जब आपके प्रति नहीं सोचता हूँ। सदैव आपके प्रति ही सोचता हुँ।*

*(७) आपनी सोच को बढ़ाओ :*
*आप जो कार्य कर रहे हो , वह कार्य आपको देखना है।* लेकिन कार्य की देखभाल तभी ठीक कर सकते हो जब वह कार्य आपने किया हो।

*(८) संयम से बात करो :*
सदैव याद रखो , आप मेरे प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे हो , मैंने आप पर सम्पूर्ण विश्वास रखा है।

*(९) किसी भी कार्य के लिए तैयार रहो :*
मैंने जिवन में चपरासी से लेकर मैनेजर तक के सभी कार्य किए हैं।

*इस नवरात्रि के उत्सव में अपने 'मैं' को पूर्णतः विसर्जित कर अब निश्चय करो कि अब गुरुदेव सारा जीवन अब तेरे लिए ही समर्पित है।* तभी हम हमारे पूर्व गुरुओं से प्राप्त *'समर्पण ज्ञान की धरोहर' अगली पीढ़ी तक पहुँचा सकते हैं।* यह मेरा और आपका एकमात्र उद्देश्य है। आप सभी को नवरात्रि की खूब-खूब शुभकामनाएँ।

धन्यवाद ,

आपका ,
*बाबा स्वामी*
८/१०/२०१०

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