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Showing posts from 2021
माँ-बाप सफल व्यक्ति की जड़े
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जिनके माँ-बाप उनसे प्रसन्न न हों , वे लड़के अपने क्षेत्र में भले ही सफल व्यक्ति बन जाएँ , वे अपने पारिवारिक जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकते हैं। इसलिए कौन मनुष्य कितना सफल व्यक्ति है़ , यह जानने के लिए , वह कितना सुखी है़ , यह देखना आवश्यक है़। सभी सफल व्यक्ति सुखी व्यक्ति नहीं होते हैं क्योंकि उनके , उनके माँ-बाप के साथ अच्छे संबंध नहीं होते हैं। माँ-बाप उस सफल व्यक्ति की जड़े है़। वह बिना माँ-बाप की सहायता से सफल व्यक्ति हो सकता है़ लेकिन वह सुखी व्यक्ति नहीं हो सकता है़। हिमालय का समर्पण योग ५ , पृष्ठ :२८२
चित्त
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•• एक व्यक्ति के ऊपर अगर हम उसके दोषों के ऊपर से चित्त निकालकर उसकी शुद्धता , उसकी पवित्रता की तरफ ध्यान दे तो एक अभ्यास हमारा हो जाएगा और वह अभ्यास करते-करते वह हमारा स्वभाव बन जाएगा। •• जब चित्त अच्छाइयों पर जाएगा तो आपके भीतर भी अच्छाइयाँ आनी शुरू हो जाएगी। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - गुरुपूर्णिमा महोत्सव २०१२
सुख की परिभाषा
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आज समाज में सुख की परिभाषा भी केवल शारीरिक सुविधाओं की मानी जाती है़ जो पैसे से प्राप्त हो सकती हैं और उन्हें पाना ही मनुष्य अपना लक्ष्य बना लेता है़। और जीवन के अंत में जब धरती से विदा होता है़ , तब उसकी समझ में आता है़ - जिस पैसे के पिछे की दौड़ में सबको शामिल होता देख मैं भी शामिल हो गया था , वह पैसा जीवन में मुझे केवल सुविधाएँ दे पाया लेकिन जीवन में कभी सुख मिला ही नहीं। सुख केवल आत्मा से मिल सकता है़। -- श्री शिवकृपानंद स्वामी हिमालय का समर्पण योग ४ , पृष्ठ : १८८ 🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♂🧘🏻♀🧘🏻♀🧘🏻♀🧘🏻♀🧘🏻♀
गुरु तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ
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🔹गुरु तक पहुँचने से पहले का जीवन व्यर्थ रहता है। 🔹गुरु मिलने के बाद ही हमारा आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ होता है। 🔹सद्गुरु के प्रवचन पहले सुनने चाहिए , फिर मनन करना चाहिए , फिर सोचना चाहिए , फिर ध्यान करना चाहिए और अंत में गुरुकार्य में लग जाना चाहिए। समर्पण ध्यान के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों में बाँटना चाहिए। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : दर्शन शिविर - राजपीपला
चित्तशक्ति का धन
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••◆ मेरे लिए वो लोग कार्य करते हैं - जो मुझसे ज्ञान में श्रेष्ठ है, पोस्ट में श्रेष्ठ है, विद्वता में श्रेष्ठ है; सबकुछ मुझसे अधिक है, फिर भी वो मेरे लिए कार्यरत हैं, मेरे लिए कार्य करते हैं। सिर्फ इसीलिए कार्यरत हैं और इसीलिए कार्य करते हैं क्योंकि मेरे पास चित्तशक्ति का धन है। तो ये चित्तशक्ति का धन आप प्राप्त करलो, चित्तशक्ति के आप भी धनी हो जाव, तो आपसे अधिक विद्वान लोग, आपसे अधिक धनाढ्य लोग, आपसे अधिक पहुँचे हुए लोग आपके लिए कार्य करेंगे। ••◆ यानी आपके पास जीवन में कुछ नहीं हो और आपके पास जीवन में सशक्त चित्त हो, तो वह सशक्त चित्त से आप इस दुनिया में अपनी जगह बना सकते हो। ••◆ सशक्त चित्त सिर्फ गुरुचरण पे चित्त रखके मैंने प्राप्त किया है। कैसी भी परिस्थितियाँ हो, कैसी भी कठिनाइयाँ हो, कैसा भी वातावरण हो, अनुकूल हो, प्रतिकूल हो सभी स्थितियों में वहाँ का कनेक्शन सदैव एक-सा रहा है। गुरुचरण पे चित रखने के बाद दुनिया का समस्त ज्ञान वहीं से प्राप्त हुआ है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : नवयुग का निर्माण
🌺प्रार्थनाधाम🌺
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••◆ 'आत्मधर्म समर्पण महाशिविर' (मराठी) अप्रैल २००८ में गोवा में आयोजित किया गया था। ••◆ वहाँ ४५ दिवसीय अनुष्ठान की पूर्णाहुति के लिए मुझे गोवा जाना था। •••• मेरे साथ सौ. नैमिषा बैन तथा प्रताप भाई शाह भी जाने वाले थे। •••• दिन था सात जून , जिस दिन हमें मुबई से पणजी की हवाई यात्रा करनी थी। ••◆ वर्षा ऋतु के आरंभ का समय था। सुबह से वर्षा हो रही थी। •••• हम लोग दोपहर २.३० बजे हवाई अड्डा पहुँचे। हमारे विमान का उडान समय था शाम ४ बजे। ••◆ गोवा तथा मुबंई दोनों स्थानों पर तेज वर्षा हो रही थी। पता चला विमान १ घंटा देरी से चलेगा। फिर पता चला २ घंटा देरी से। ••◆ आसमान में काले बादलों का घना डेरा था शाम चार-साढ़े चार बजे ऐसा घना अंधेरा-सा था मानो शाम ७.३०-८ बजे हों। •••• लगभग सभी उड़ाने रुकी हुई थीं। न कोई विमान आ रहा था , न जा रहा था। विमानतल यात्रियों से भरता जा रहा था। ••◆ तभी एक ईसाई साध्वी (नन) मेरे पास आकर बैठी उन्हें इंदौर जाना था। वे इथियोपिया (अफ्रीका) से आई थी। •••• हम लोगों की हँसी-ठिठोली चल रही थी पर उन्हें चिंतित देखा तो उनसे बातचीत की। उन्हें भय था कहीं उड़ान रद्द न हो जाए। ••◆
ध्यान करना इस वर्ष की अत्यंत आवश्यकता
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"ध्यान करना इस वर्ष की अत्यंत आवश्यकता है। ये शब्द मेरे याद रखना। ये आपको बार-बार याद आएँगे। इसीलिए नियमित ध्यान करना , अपने-आपको संतुलित करना , अपने-आपको बेलेंस करना ; ये २०२१ की आवश्यकता है। जिस प्रकार से अन्य चीजें आवश्यक है न , वैसे ये चीज भी अत्यंत आवश्यक है।" *- परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी*
प्रकृति का अनुभव
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मौसम बड़ा ही सुहावना, खुशनुमा तथा गर्मीला था और आसमान भी साफ था! शाम ५ बजे के करीब हमने पूज्य स्वामीजी एवं गुरुमाँ के साथ सैर हेतु समुद्रतट पर जाना निश्चित किया। एक और साधिका, लता मगन भी हमारे साथ थी। समुद्र किनारे चलते-चलते हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ अमश्लोटी नदी हिन्द महासागर से मिलती है। हमने कुछ देर नीले आसमान तले बैठकर शांत एवं मनमोहक प्रकृति के सान्निध्य का आनंद लिया तथा पुनः विला की ओर प्रस्थान करने लगे। वापस लौटते समय, रास्ते में स्वामीजी को एक स्थान अच्छा लगा और उन्होंने हम सभी को वहाँ थोड़ी देर बैठने को कहा। हम सब वहाँ बैठ गए और कुछ देर पश्चात स्वामीजी उठकर समुद्र की ओर जाने लगे। वे किनारे पर जाकर खड़े रह गए तथा अपनी हथेलियों को समुद्र के समक्ष खुली रखकर उन्होंने अपना आभामण्डल खोला। लहरें ऊँची उठने लगीं और ठीक उनके चरणों के पास आकर शांत होकर धीरे से उनके चरणों को स्पर्श करने लगीं। स्वामीजी के खड़े रहते ही, हमने देखा कि आसमान का रंग बदलने लग गया तथा बादलों की भी हलचल शुरू हो गई। लहरों की तीव्रता बढ़ गई तथा वे और ऊँची उठने लगीं किन्तु प्रत्येक लहर स्वामीजी तक पहुँचने के ठी
ऑरा, आभामण्डल काल्पनिक नहीं
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•• ऑरा, आभामण्डल काल्पनिक नहीं है। देखिए, आभामण्डल और ऑरा क्या है - मनुष्य का चित्त जितना शुद्ध होगा, मनुष्य का चित्त जितना पवित्र होगा, जितना सशक्त होगा ; उसी सशक्त चित्त का प्रकाश उसके शरीर के आसपास चौबीसों घण्टे विद्यमान रहेगा। •• यहाँ ध्यान रखने की बात है - चौबीसों घण्टे विद्यमान रहेगा। छाया , अगर आप अँधेरे में चले जाते हो तो वो आपका साथ छोड़ देती है लेकिन ये ऑरा, ये आभामण्डल आपका साथ कभी भी नहीं छोड़ता ; चौबीसों घण्टे रहता है और वो चौबीसों घण्टे आपको सुरक्षा प्रदान करता है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - चैतन्य महोत्सव २०२०
प्रार्थना कैसे करनी चाहिए जानिए परम पूज्य स्वामीजी से ...!!
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*प्रार्थना कैसे करनी चाहिए जानिए* *परम पूज्य स्वामीजी से ...!!* *. प्रार्थना आध्यामिक स्थिति को बढ़ाने के लिए बहुत बड़ी मार्गदर्शक है। लेकिन वो प्रार्थना किसी भय से नहीं होनी चाहिए, कि हे परमात्मा ये मेरा बुरा नहीं हो जाए, हे परमात्मा मेरे साथ ये बुरी घटना नहीं हो जाए! ऐसे भय से कि गयी प्रार्थना सही प्रार्थना नहीं है! क्यूंकि भय का संबंध आपके शरीर के साथ है! तो जब की प्रार्थना का संबंध आपके शरीर के साथ है ही नहीं! दूसरा किसी लालच में कुछ मिलना चाहिए, कुछ पाना चाहिए.. इस भाव के साथ ही कभी कोई प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि पाना, मिलना चाहिए ये सब भाव शरीर का है। तो शरीर के भाव के ऊपर प्रार्थना नहीं की जाती है। आत्मा के भाव के ऊपर की जाती है। तो पूर्ण आत्मा के भाव से मुझे लगता है जीवन में एक ही प्रार्थना करना चाहिए। एक ही प्रार्थना के लिए हमे शब्द इस्तेमाल करना चाहिए। और वो है...* *हे परमात्मा मुझे आत्मसाक्षात्कार करा दो।* *हे परमात्मा मुझे आत्म अनुभूति करा दो।* *हे परमात्मा मुझे आत्म समाधान प्रदान करो।* *ये सब शब्द एक ही जगे, एक ही ओर, एक ही दिशा में आपको ले जाएंगे, आपको ऐसे माध्यम
गुरु को शरीर होते हुए भी 'परब्रह्म' क्यू कहा गया ?
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•• गुरु को शरीर होते हुए भी 'परब्रह्म' क्यू कहा गया ? •• गुरु का शरीर परमात्मा नहीं है। गुरु के शरीर से बहनेवाला परम चैतन्य परमात्मा है , वो ही 'गुरुतत्त्व' है। •• हमारा ध्यान गुरु के शरीर के ऊपर नहीं होना चाहिए। हमारा ध्यान गुरु के भीतर से बहनेवाले 'गुरुतत्त्व' पे होना चाहिए। उस परम चैतन्य पे होना चाहिए। तब जाके साक्षात परब्रह्म की अनुभूति होगी। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - महाशिवरात्रि २०२१
माध्यम का सान्निध्य का लाभ
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•• हमें माध्यम का कितना सान्निध्य मिला वह महत्त्वपूर्ण नहीं है, हमने उस सान्निध्य का क्या लाभ लिया वह महत्वपूर्ण है। अगर हम सान्निध्य में रहकर भी बहस करें, व्यवस्था की बातें करे, झगड़ों की बातें करे, शिकायतें करे, निंदा करें, समस्याओं की चर्चा करें और दूसरों के दोषों की बातें करें, उससे हम जो पुण्यकर्म करके सान्निध्य प्राप्त कर रहे हैं, उसका सदुपयोग नहीं होगा। •• जीवंत माध्यम का एक-एक क्षण महत्वपूर्ण होता है। अगर हम सदुपयोग नहीं करते, तो वे क्षण हमने औरों के लिए छोड़ देने चाहिए। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : आत्मा की आवाज़
आप आपके ही गुरु बनो
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•• जीवन में त्याग में ही प्राप्ति है , देना ही जीवन है। •• आप आपके ही गुरु बनो , यह मेरी इच्छा है। और नियमित ध्यान साधना से ही यह संभव है। •• सतत अच्छे कार्य से जुड़े रहना ही हमें अच्छा बना सकता है। और मुझे विश्वास है , आप निच्छित अच्छे साधक बनोगे ही !! - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - दिनांक : २८/०२/२००८
🌺महाशिवरात्रि🌺
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•• ये अर्धनारीनटेश्वर, जो शिवजी का स्वरूप बताया गया है, वात्सव में प्रतीकात्मक है। •• प्रतीकात्मक है याने ? ये आत्मा का प्रतीक है। कोई भी पुरुष संपूर्ण पुरुष नहीं होता, उसमें स्त्री होती ही है। और कोई भी स्त्री संपूर्ण स्त्री नहीं होती, उसमें पुरुष होता ही है। •• और आत्मा में स्त्री और पुरुष ऐसा कोई भेदभाव नहीं है। आत्मा आत्मा है, न वो पुरुष का है न स्त्री का है। एक स्तर के ऊपर जाने के बाद में फिर स्त्री और पुरुष ये भेद ही समाप्त हो जाता है। •• महाशिवरात्रि के दिन आप साक्षात शिव और पार्वती स्वयं बनो यही गुरुदेव की इच्छा है। तभी गणेश का जन्म हो सकेगा। •• पूरे सालभर में महाशिवरात्रि के दिन अपनी भागदौड़ वाली जिंदगी से ब्रेक लगा करके, थोड़ा ठहर करके अपना खुद का ही अवलोकन करो। खुद का एनालिसिस करो कि हम उस महाशिवरात्रि से इस महाशिवरात्रि तक कहाँ तक पहुँचे हैं !! - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - महाशिवरात्रि २०११
३० मिनीट ध्यान
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" ३० मिनीट अकेले ध्यान करो। आप अकेले बैठोग तो भी चित्त में ५० लोग होंगे. कभी बैठे हो मेरे साथ अकेले ? ३० मिनीट केवल आप और मै होना चाहिए। अपने बीच तीसरा कोई भी नहीं चाहिए। आधा घंटा आत्मा बन कर मेरे साथ बैठो । फिर देखो आपको कहाँ से कहाँ पहुंचाता हुँ। कैसी कैसी अनुभूतियाँ करवाता हूँ। " - बाबा स्वामी गुरुपौर्णिमा २०१६
युवाशक्ति और चित्त
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•• मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की नींव 'पवित्रता' से रखी गई है। अपने चित्त को पवित्र रखे, तो मन और शरीर भी पवित्र होगा। मैंने मेरे जीवन में जो भी पाया, वह सब पवित्र चित्त के कारण ही हो सका। •• चित्त पवित्र रखने के लिए मुझे प्रार्थना करें, मेरी सामूहिक शक्ति के सामने रोए, गिड़गिड़ाए; यह रोना और गिड़गिड़ाना आपके भीतर के 'मैं' के अहंकार को चूरचूर कर देगा। और आपका चित्त शुद्ध हो जाएगा, आप स्वयं भी हलका महसूस करेंगे। गुरुचरण पर चित्त रखकर की गई प्रार्थना ही चित्त को शुद्ध कर सकती है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - युवाशक्ति और चित्त - २००८
गहन ध्यानयोग निर्गुण-निराकार है तो आप आपकी मूर्ति रूप में, सगुण रूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं ?
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साधक का प्रश्न : गहन ध्यानयोग निर्गुण-निराकार है तो आप आपकी मूर्ति रूप में, सगुण रूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं ? स्वामीजी का उत्तर : मैंने अभी आपको बताया, हमें सेल्फिश (स्वार्थी) नहीं होना है | हमें मिल गया, समाप्त हो गया - ऐसा नहीं | अगर ऐसा ही हमारे गुरु सोचते तो हम तक यह चीज पहुंचती क्या ? नहीं पहुँचती| तो यह आपके लिए है ही नहीं | यह उनके लिए है जो अपने जीवनकाल के बाद में आने वाले हैं और तब हम कोई नहीं रहेंगे | तब वह अनुभूति उन तक पहुँचाने का यह माध्यम है, वह उन तक पहुँचाने का तरीका है | उस तरीके में उसको स्थापित किया हुआ है | तो पहली बार किसी जीवंत गुरु ने अपनी जीवंत शक्तियाँ अपने जीवंत शरीर में स्थापित कीं | ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ | इसलिए हुआ है की इसका उद्देश्य है कि वह अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना है, आगे की पीढ़ियों तक जाना है | आज की पीढ़ी को उसकी कोई आवश्यकता नहीं है | मेरे मरने के बाद खोलना उसको| - मधुचैतन्य : अप्रैल,मई,जून-2007 चैतन्य धारा
🌺सच्चा समर्पण🌺
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•• जब आपके कार्य हो रहे हैं , तब जो गुरु के प्रति समर्पण होता है , वह सच्चा समर्पण नहीं है। •• सच्चा समर्पण तो तब है , जब आपके कार्य नहीं हो रहे हैं तब भी आपका समर्पण भाव है और आप सोचते हैं , यह कार्य न होना ही मेरे हित में है। यह सच्चा समर्पण भाव है। - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : आत्मा की आवाज़
✿ नवयुग की ओर ✿
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✿ आप थोड़ा सोचो! केवल पढ़ना , नौकरी या व्यवसाय करना , शादी करना , अपने बच्चों को जन्म देना , बूढ़े होना होना और बाद में अंत , मर जाना! क्या हमने इसी के लिए जन्म लिया है , क्या यही हमारे जीवन का मूल उद्देश्य है ? नहीं ! ✿ हमने जो शरीर धारण किया है , यह सब उस शरीर के जीवन चक्र का केवल अंग मात्र है। लेकिन हमने शरीर धारण किया है , हम शरीर नहीं हैं। 'हम शरीर नहीं हैं' तो फिर यह 'जीवन चक्र' भी हमारा कैसे हो सकता है? ✿ आप सामान्य बच्चे नहीं हो , आत्मसाक्षात्कारी बच्चे हो! तो आपके जीवन का उद्देश्य भी सामान्य नहीं हो सकता है। आपके जीवन का उद्देश्य 'कर्ममुक्त अवस्था' को पाना है। ✿ वह अवस्था आपको आपके जीवनकाल में ही प्राप्त करना है , उसे ही 'मोक्ष' का स्थिति कहते हैं। ✿ वह प्राप्त होने पर आप कार्य करते नहीं हो , आपसे कार्य होता है। आपके हाथों से विश्व की 'मनुष्यता' को जोड़ने का - वह मनुष्यता को जगाने का कार्य होने वाला है। ✿ 'मोक्ष' की स्थिति पाना ही आपके जन्म लेने क एकमात्र उद्देश्य हैं। ─━━━━━━✿━━━━━━─ श्री शिवकृपानन्द स्वामीजी गहन
🔅 गुरुकार्य या ध्यान ❓🔅
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साधक का प्रश्न (15) : स्वामीजी, आध्यत्मिक प्रगति करने के लिए गुरुकार्य और ध्यान, दोनों में से क्या ज्यादा उचित है ? स्वामीजी का उत्तर : गुरुकार्य और ध्यान दोनों ही मार्ग है और दोनों से आखिर में एक ही जगह पहुंचते हैं | आखिर में, अपने आप में भाव जगाने में आप सफल होने चाहिए | जब गुरु के प्रति पूर्ण भाव लाने में अपने-आपको पूरा डुबो दो, अपने अस्तित्व को शून्य कर दो, तब आप गुरुशक्ति से जुड़ने में सफल हो जाते हो | अगर गुरुकार्य करने में आपको रुचि हो तो गुरु के लिए जो भी कार्य करो, वह सब गुरु को अर्पित कर दो | जिसे ध्यान नहीं लगता हो, उसे गुरुकार्य करना चाहिए | गुरुकार्य शरीर से होता है, पर कार्य करते समय चित्त गुरु पर हो तो आखिर में गुरु से जुड़ जाओगे | गुरु के माध्यम से, आगे ऊपर का रास्ता है जो सामूहिकतामें पार करना है | जिस तरह किसी ऐतिहासिक स्थान पर अगर जाओगे, तो उस स्थान की सही जानकारी पाने के लिए गाईड की मदद लोगे | तो स्थान और गाइड दोनों अलग-अलग चीजें हैं | जब गाइड आपको माहिती (जानकारी) देगा, तब आपका पूरा ध्यान गाईड के शब्दों पर होगा | तब आप उस स्थान को सही मायने में जान पाओग
◆ चित्त से गुरु कार्य ◆
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◆ अगर आपकी स्थिती गुरुकार्य करने की नही है, तो चित्तसे गुरुकार्य करो। यानी सदैव गुरुकार्य विकसित हो इसलिये प्रार्थना करो, तो भी गुरुशक्तियां किसी और सशक्त माध्यम से वो कार्य करा लेंगी या आपको ही इतनी शक्ती और सामर्थ्य देंगी की आपसे हि गुरुकार्य घटित हो जाये। ◆ आपके जेब में एक रुपया भी नही हो और आप सौ रुपये का गुरुकार्य करने कि ईच्छा रखते हो तो आप के जेब में सौ रुपये आ जायेंगे, यह मेरा अनुभव है। ◆ सदैव बडा सोचो तो बडा होगा। अब क्या कहु? आप सभी कि सोच खूब खूब बडी हो यही प्रभूसे प्रार्थना है। ◆ आप सभी को खूब खूब आशीर्वाद। ──────⊱◈◆◈⊰────── श्री शिवकृपानंद स्वामीजी गहन ध्यान अनुष्ठान 2012 ──────⊱◈◆◈⊰──────
✿ गहन ध्यान अनुष्ठान ✿
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✿ गहन ध्यान सबके लिए खुला है। आप सभी जुड़ीये पुराने साधक नए साधक सबके लिए खुला है। ✿ 45 दिनों में कम से कम एक दिन के लिए गहन ध्यान में शामिल होना चाहिए। ✿ मैं सभी को चित्त में लेके गहन ध्यान करता हु। गहन ध्यान दौरान मुझे सभी साधको के पास जानेका मौक़ा मिलता है। सबकी स्थिति का पता चलता है। ✿ जो साधक नियमित ध्यान नहीं करते वो भी गहन ध्यान दौरान नियमित ध्यान करते है। ✿ गहन ध्यान दरमियान आश्रम में एक अच्छा वातावरण निर्माण हो जाता है। वहां पे हम जाते है तो एक स्थिति अनायास ही निर्माण हो जाती है। वो स्थिति प्राप्त करने के लिए कोई प्रयत्न करना नहीं पड़ता है। ✿ मैं जिस स्थिति में होता हूं साधक अनायास ही उस स्थिति में चले जाते जाते है। मैं अंदर क्या महसूस कर कर रहा हु, उसकी जानकारी बाहर भी हो। मैं अंदर क्या मिठाईयां खा रहा हु कम से कम बहार उसकी खुशबु तो जाये। ✿ गहन ध्यान दरमियान मेरी पतंग बहुत ऊपर तक जाती है। ये गुरु माँ है कि मुझे नीचे ले आती है। ✿ जब से मैं समाज में आया हु, तब से एक इच्छा रहती थी, छोटा सा साधको का समूह बन जाए जिनको लेके उस सात चक्रों के परे की यात्रा कर
🌺माध्यम🌺
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गुरुशक्तियों ने आपके सामने मेरे शरीर के रूप में एक आदर्श मॉडल दिया है। आपको कैसा बनना है , वह आप इस मॉडल को देखकर अपने-आप में बदलाव कर सकते हो। आदर्श मॉडल का लक्ष्य आपके सामने है। 'माध्यम' का आदर्श सामने रखकर भी आप अपने-आप को बदल सकते हैं। *(१) 'माध्यम' नियमित ध्यान करता है* ...और यह पिछले कई सालों से चला आ रहा है। यह नियम कभी भी टूटा नहीं है। *(२) 'माध्यम' ने सभी को क्षमा किया हुआ है* माध्यम भी समाज में रहता है , तो समाज के अच्छे और बुरे अनुभव उसे भी आए हैं। लेकिन उसने सभी को क्षमा कर दिया है। *(३) सामूहिकता में ध्यान* सामूहिकता में जहाँ भी विश्व में ध्यान हो रहा हो , माध्यम वहाँ होता ही है *(४) माध्यम ने अपना भूतकाल अपने गुरुदेव को पूर्णतः समर्पित कर दिया है* माध्यम ने जीवन की बुरी घटनाएँ , बुरे व्यक्ति अपने भूतकाल के साथ गुरुदेव को समर्पित कर दिया है। *(५) माध्यम का बाँटने का स्वभाव है* माध्यम कभी भी किसी भी वस्तु का अकेला आनंद नहीं लेता। वह जीवन में सदैव बाँटते चला आया है *(६) माध्यम सदैव अपनी आत्मा को प्रसन्न रखता है* माध्यम सदैव ही ऐसे कार्य करते रहत
श्री मंगल मूर्ति - 1
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💫💫💫💫💫💫💫💫💫 🔅 श्री मंगल मूर्ति - 1🔅 साधक का प्रश्न (14) : परमप्रिय सद्गुरु,आपने कहा है - जीवंत सद्गुरु के बिना आत्मसाक्षात्कार नहीं हो सकता | तो क्या मूर्ति की मदद से आत्मसाक्षात्कार हो सकता है ? स्वामीजी का उत्तर : आत्मसाक्षात्कार होगा, आप प्रश्न पूछोगे, प्रश्न के उत्तर देगी | माने, जो मैं करता हूँ सब, जो मेरे से प्राप्त करते हो, वह सब उससे प्राप्त होगा | सिर्फ मैं इधर से उधर घूम सकता हूँ, वह नहीं घूम सकती, बस इतना ही अंतर है | और कम से कम कुछ लोग तो मेरा पीछा छोड़ेंगे | दूसरा, क्या है, मूर्ति भी झुकने का निमित्तमात्र है | जैसे हम बोलते हैं ना, मैं बोलता हूँ - सर्वत्र परमेश्वर है | सर्वत्र परमेश्वर है, तो मूर्ति में भी यह परमेश्वर है | तो किसी न किसी परमेश्वर के स्वरूप को आप मानकर झुको, यही महत्वपूर्ण है | देखिए, मेरे लिए तो एक पत्थर को चैतन्य देना और मूर्ति को चैतन्य देना समान था | एक साधारण, पड़े हुए पत्थर को भी उतना ही वाइब्रेशन दे सकता हूँ, जितना मूर्ति को देख सकता हूँ | लेकिन आपकी दृष्टि से अलग है | रिसिविंग आपकी मूर्ति से होगी, पत्थर से नहीं होगी | ज
हमारे संबंध 'पूर्वजन्मों' के हैं।
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•• आपको जो दिख रहा है वो इस जन्म का है जबकि हमारे संबंध 'पूर्वजन्मों' के हैं। बस मैं जानता हूँ। •• अभी कुछ साधक जान पाए हैं , कुछ नहीं। उन्हें ही वह केवल याद कराने का प्रयास करता हूँ। •• जानने और न जानने के बीच आता है - यह 'शरीर' ! यह 'शरीर' जब छोड़ दूंगा तो सब जान जाएँगे ! ! - परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी - स्त्रोत : सद्गुरु के हृदय से
स्वामीजी के नव वर्ष के प्रावचन के मुख्य अंश, अनुसरण हेतु नयी आदतें:
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स्वामीजी के नव वर्ष के प्रावचन के मुख्य अंश, अनुसरण हेतु नयी आदतें: - अब से पानी हमेशा वाइब्रेट कर के ही पीएं ।💧 - प्रसन्न रहें, धन्याद कहें और सभी को निःस्वार्थ प्रेम करें । इस से AURA बढ़ता है ।☺️ - नकारात्मक सामूहिकता का और लोगो का त्याग करें ।🤺 - सदैव सकारात्मक रहें ।😇 - अच्छा कार्य करने के पश्चात सामने से कोई अपेक्षा न रखें । ईश्वर हिसाब रख रहा है ।🙏 - रोज नियमित आधा घंटा ध्यान करें ।🧘🏻♂️ 🍂🍃🍁 🎋🌹 🎋🍁 🍃🍂
Swamiji New Year 2021 Highlights
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Let us be thankful for protection from the divine. (Context: Protection from bad occurrences including falling sick from the corona virus) There are those who didn’t get to see the sun rise. We will talk about the things to look out for and things we need to be mindful of in the coming year. There is a need for being part of a collectivity because when we are, we are connected with constructive forces. In these circumstances, we can do so by watching video clippings of past events on youtube. When we engage in practice of Samarpan Meditation, we get an opportunity to unite with positive souls by virtue of the traits which are inculcated in it. (Some may dub it as eternal wisdom). If ever, we find ourselves fraught with tension, we can connect with those hundred thousand souls who are part of this collectivity through such videos. By doing so, our tensions will melt because we will be linked with such a huge volume of people who are not tense. Meditate every day for 30 minutes before
जिवंत गुरु का आगमन - आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत
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◈━━━━━━━💠━━━━━━━◈ जिवंत गुरु का आगमन - आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत ◈━━━━━━━💠━━━━━━━◈ 💠 जब तक जिवंत गुरु अपने जीवन में नहीं आता, तब तक आध्यात्मिकता की कोई शुरुआत ही नहीं होती। 💠 जब मैं गुरु के पास पहुँच गया, तब से मेरे लिए गुरु की खोज बंद हो गई। जो आपको अंतर्मुखी कर दे, वही आपका गुरु है। वास्तव में, गुरु आपके बाहर नहीं है, आपके अंदर है। आपकी आत्मा ही आपका गुरु है। 💠 जब तक हमें पहुँचे हुए गुरु नहीं मिलते हैं, हमारे जीवन में हमें भीतर की ओर मोड़नेवाले गुरु नहीं मिलते हैं, तब तक हमें अपने-आपका चेहरा नहीं दिखता हैं। हमें अपने-आपका चेहरा नहीं दिखता है और उसे दिखने के लिए हमें मिरर (आईने) के पास जाना पड़ता है। गुरु वह मिरर है जो हमें अपने-आपसे मिलाता है। 💠 सुख अलग है, सुविधाएँ अलग है। सुख आपके अंदर ही है और सुविधाएँ बाहर हैं। 💠 नकारात्मक विचारों का तोड़ (निदान) सकारात्मक विचार कभी नहीं हो सकता क्योंकि आप विचार करते हो तो आपकी ऊर्जा नष्ट होगी ही। पर उसका तोड़ है, निदान है - निर्विचारिता की स्थिति। 💠 पहले शक्ति का युग था, उसके बाद अब बुद्धि का युग है और आगे चित्तश
सितंबर 2020 के संदेश पुष्पों का सारांश
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✧══════•❁🌺❁•═════✧ सितंबर 2020 के संदेश पुष्पों का सारांश ✧══════•❁🌺❁•═════✧ •❁➊❁• आत्मीक प्रगति के लिये "निर्वीचार" रहने का सतत अभ्यास करना चाहिए । •❁➋❁• "निर्विचारिता" से आशय विचार शून्यता की स्थिति से है l •❁➌❁• आप कीतना पुजा पाठ करते है, इसका महत्व नहीं है, कितने आप "निर्विचार" रहते है वह महत्वपूर्ण है l •❁➍❁• "निर्विचारीता" आध्यात्मिक प्रगति का द्वार होता है l •❁➎❁• "निर्विचारिता" वह पात्र जैसी स्थिति होती है, जिसमे चैतन्य भरा जा सकता है l •❁➏❁• "निर्विचार" स्थिति मे ही सद्गुरु की उर्जा शक्ति शिष्य मे प्रवाहित होती है l •❁➐❁• "सद्गुरु" की उर्जा शक्ति पाने के लिये उससे आत्मीय संबन्ध बनाना अत्यन्त आवश्यक है l •❁➑❁• "सद्गुरु" के प्रति अत्यन्त भाव ही वह संबन्ध बना सकता है l •❁➒❁• "अत्यन्त भाव" सदैव केवल एक ही स्थान पर होता है l •❁➊⓿❁• आत्मा ने परमात्मा के लिये कीया गया कार्य ही सच्चे अर्थ मे "गुरुकार्य" होता है l •❁➊➊❁• आप सभी "गुरुकार्य&quo
प्रकृतिमय हो जाये
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•✿⊰•✾•⊱✿⊰🌲⊱✿⊰•✾•⊱✿• ❛ प्रकृतिमय हो जाये ❜ •✿⊰•✾•⊱✿⊰🌳⊱✿⊰•✾•⊱✿• 🤗 हमारे मनुष्य समाज का विकास तभी संभव है, जब हम प्रकुतिमय हो जाये। हमको जिस प्रकृति ने निर्माण किया है, वैसे ही हो जाएँ। 🏞 प्रकृति की एक विशेषता है, वह सभी को समान बाँटती है। 🌞 सूर्य भगवान सभी को प्रकाश देते हैं, सभी को समान रुप से देते हैं किसी को भी भेदभाव नहीं करते हैं। 🍃 अब हवा है, वह भी सभी को समान उपलब्ध है, वह भी किसी को अधिक या किसी को कम प्राप्त नहीं होती है। 🌍 पृथ्वी है वह सभी को वहन करती है, किसी को यह नहीं कहती कि मैं तेरे वजन नहीं उठाएगी। •✿⊰•✾•⊱✿⊰☘⊱✿⊰•✾•⊱✿• श्री शिवकृपानंद स्वामी जी हिमालय का समर्पण योग भाग - ६ - २७२/२७३ •✿⊰•✾•⊱✿⊰🍀⊱✿⊰•✾•⊱✿•
बिना ध्यान मोक्ष प्राप्ति नहीं होगी
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╭━─━─━─≪✠≫─━─━─━╮ बिना ध्यान मोक्ष प्राप्ति नहीं होगी ╰━─━─━─≪✠≫─━─━─━╯ यह आत्मज्ञान प्राप्त करना संपूर्ण नहीं है। पूरा नॉलेज (ज्ञान) ले लिया, पूरा इन्फॉर्मेशन ले लिया, पूरी जानकारी ले ली, लेकिन कृति नहीं की, कार्य नहीं किया, ध्यान नहीं किया, मेडिटेशन नहीं किया, तो मोक्ष प्राप्ति होगी क्या? यह बहुत विचित्र स्थिति है। कई लोग संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। केसेट सुनकर बोलो, प्रवचन सुनकर बोलो, सेंटर पर जाकर बोलो, पूर्ण निचोड़ ... पूरा ले लेंगे। सब एकदम ब्रह्मज्ञानी हो जाएँगे। लेकिन ध्यान नहीं करेंगे। ये कहाँ जाएँगे? (ना) घर का, ना घाट का ... कुत्ता! क्यों ? इनको पूरा ब्रह्मज्ञान हो गया है, ये दूसरा जन्म लेंगे नहीं। इनको फिर मोक्ष चाहिए और मोक्ष मिलने लायक स्थिति नहीं है। तो कहाँ जाएँगे? पथभ्रष्ट योगी भूतयोनी में जाते हैं। सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया, सारा नॉलेज प्राप्त कर लिया, ब्रह्मज्ञानी हो गए, लेकिन ध्यान नहीं किया, मोक्ष का धर्म नहीं निभाया। और इनको अपनी गलती का एहसास भी होता है तो शरीर त्यागने के बाद! फिर कुछ हाथ में नहीं रह जाता। ╭━─━─━─≪✠≫─━─━─━╮
'क्षमा' आत्मा के प्रगति की पहचान
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◎━━━━━━✾━━━━━━◎ ❛ क्षमा ❜ आत्मा के प्रगति की पहचान ◎━━━━━━✾━━━━━━◎ कमजोर आत्मा को न कभी अपने दोष दिखते है और न पाप दिख सकते है। अच्छी आत्माएं ही सदैव अपनी गलती को स्वीकार करती हैं, और गलती को पहचान कर क्षमा भी मांगती है। ❛क्षमा❜ मांगना एक आत्मा के प्रगति की पहचान है। ◎━━━━━━✾━━━━━━◎ श्री शिवकृपानंद स्वामी जी पवित्र आत्मा, ०२-०२-२०१७ ◎━━━━━━✾━━━━━━◎ @gurutattva
क्षमा का महत्त्व
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✶⊶⊷⊶⊷❍⊶⊷⊶⊷✶ चैतन्य महोत्सव 2019 ✶⊶⊷⊶⊷❍⊶⊷⊶⊷✶ ❛ क्षमा का महत्त्व ❜ ✶⊶⊷⊶⊷❍⊶⊷⊶⊷✶ ❍⊶ तो एक जो जनरल ऑब्जर्वेशन मेरा है साधकों को ही देखते इससे एक बात समझाना, कहना हैं कि सबको क्षमा कर दो, सबको क्षमा कर दो, हमारे साधक सचमुच बहुत आगे बढ़ चुके हैं। काफी क्षमाशील हो चुके हैं, तुरंत में गुस्सा भी हो जायेगे लेकिन कुछ समय मे वो क्षमा कर देते है। ❍⊶ वो सब को क्षमा कर देते है , बस एक को छोड़कर, और वो एक व्यक्ति वे स्वयं है। तो हम में से कई ऐसे साधक है जो स्वयं को क्षमा नहीं कर पाते हैं कि मुझसे ऐसी गलती कैसे हो गई। मुझसे ऐसी भूल कैसे हो गई । ❍⊶ तो जीन लोगों को महसूस नहीं होता है वाइब्रेशन वे मनमे एक बार अपने आप को टटोल करके देख लें कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम स्वयं को ही क्षमा नहीं कर पा रहे हैं, और ये बात सत्य है कि जो लोग सेंसिटिव होते हैं वो बाकी सब को तो क्षमा कर देते हैं पर कुछ भी गलती हो जाए तो स्वयं को ही क्षमा नहीं कर पाते । ❍⊶ वे इस बात को अपने आपको समझा नहीं पाते है कि जीस तरह से सभी मानव है और सभी से कोई -ना- कोई गलती हो सकती है। ❍⊶ उसी तरह कभी स्वयंम से भी गलती हो सकती है,