स्त्री के शरीर की संरचना
स्त्री के शरीर की संरचना में ही बड़ी चिवटता (जुझारूपन) होती है। जन्म लेने के लिए भी उसे संघर्ष करना होता है क्योंकि आसानी से कोई जन्म भी नहीं लेने देता है।उसके गर्भ में आने पर कोई खुशी का वातावरण नहीं होता और न कोई उसके आगमन की प्रतीक्षा करते रहता है। ऐसे विषम परिस्थितियों का सामना स्त्री भ्रूण को माँ के गर्भ में रहते हुए ही करना होता है। लेकिन ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहना , संघर्ष करना, यह गुण उसमें नैसर्गिक होता है। इसलिए जो नैसर्गिक गर्भपात होते हैं,वे प्रायःपुरुष गर्भ के ही होते हैं। स्त्री गर्भ से ही चिवट (जुझारू) होती है और संघर्षणपूर्ण स्थितियों में अपने-आपको बचा लेती है। जैसे भी परिस्थितियाँ हों,उन परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढाल लेती है क्योंकि मनुष्य समाज में उसका स्थान ' दूसरा ' ही होता है। इसलिए उसके मन में ' दूसरे ' स्थान पर जाने का डर नहीं होता है। बाद में वह जब जन्म लेती है,रहन-सहन में,खान-पान में भी उसे समान व्यवहार नहीं मिलता है लेकिन उसमें जन्म से जो सहनशीलता होती है,उसी क़े कारण वह सब सहन करती है।
मुझे लगा कि स्त्री भी स्त्री की शत्रु है। एक स्त्री जब भी कभी शिकायत करती है तो वह स्त्री की ही अधिक होती है,फिर वह रिश्ता माँ-बेटी का हो या सास-बहू का। वह ईर्ष्या करेगी तो स्त्री से ही करेगी,दुश्मनी करेगी तो वह भी स्त्री से ही करेगी। स्त्री भी समय-समय पर गुस्सा करती है स्त्री में किसी के प्रति वैरभाव कम ही पाया जाता है।...
हि.स.यो-४
पु-३६१
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